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खूनी बरसात...7

14 दिसम्बर 2021

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पिछले भाग में आपने पढ़ा कमु गंगा सिंह को बताता है कि उस रात कमु के घर में आग कमु के पिता ने ही लगाई थी, गंगा सिंह ये बात सुनकर हैरान होता है क्योंकि उसे लगता है ये सब ज्ञान सिंह और उसके भाइयो का काम है। कमु गंगा सिंह को और भी हैरत में डाल देता है ज़ब वो गंगा सिंह को बताता है कि सोबन की नजरों में गंगा सिंह भी गुनहगार ही है। 
तारा को अगले रोज शहर जाना है लेकिन कुछ जरूरी काम बता कर वो रुक जाती है। 
उधर गणेश बिजली आने के कारण बुरी तरह जल जाता है। अशोक को अफ़सोस है कि वो गणेश को बचा न सका। 
दूसरी सुबह कमु डॉक्टर के कमरे पर पहुंच जाता और अजीब रहस्यमयी तरीके से बातें करता है डॉक्टर भी उसी अंदाज में जवाब देता है। जाते जाते कमु डॉक्टर साहब को D.S.B कहता है। 

अब आगे........

गणेश के अंतिम संस्कार के बाद अशोक गणेश घर जाकर न जाने क्या तलाश करने लगता है। सारा सामान इधर उधर बिखेर कर भी उसे वो चीज नहीं मिलती जिसकी उसे तलाश है। वो उस तालाब के पास भी जाता है जहाँ चंदन की लाश मिली थी और अंत में जंगल के अंदर वहाँ भी पहुंच जाता है जहाँ ज्ञान सिंह को मारा गया था। इधर उधर तलाश करते हुए वो जंगल के अंदर ही कहीं गुम हो जाता है । काफ़ी देर भटकने पर उसे पत्थर से बनी एक छोटी सी गुफा नजर आती है।अशोक उस गुफा के अंदर चला जाता है वो गुफा ज्यादा बड़ी नहीं थी बस जरा सी ही थी लेकिन फिर भी जंगल में होने के कारण गुफा में पर्याप्त रोशनी नहीं थी। अशोक ने जेब से माचिस निकाली एक तीली जलाई और इधर उधर देखा। तभी उसे कुछ नजर आया उसने जली हुई तीली सामने की और गौर से देखने की कोशिश की। रेनकोट के साथ ही उसे वहाँ कुछ कपड़े मिले लेकिन ये अनुमान लगा पाना कठिन था कि आखिर वो कपड़े थे किसके!अशोक ने याद करने की कोशिश की, शायद कभी किसी को उसने इन कपड़ो में देखा हो। ज़ब उसे खुद कुछ याद नहीं आया तब उसने कपड़ो की फोटो अपने फोन में ली फिर सुन्दर, मोहन और नरेश को लेकर एक फैमिली ग्रुप बनया और ग्रुप में फोटो भेज कर पूछा, 
'तुमने इन कपड़ो में किसी को देखा है? '
सुंदर- नहीं मुझे नहीं लगता मैंने कभी किसी को इन कपड़ो में देखा हो.
मोहन - मेरा भी सेम
नरेश -लेकिन आप क्यों पूछ रहे है? और आप है कहाँ?? ताईजी आपके लिए परेशान हो रही है.
अशोक - माँ से कहो फ़िक्र न करे, मैं तुम सब के टच में हुँ. अब तुम ये बताओ पहले कभी इन कपड़ो में किसी को देखा है? 
नरेश -हूं.....हाँ याद आया.उस पागल को देखा था.
अशोक- क्या?? कब देखा था? 
नरेश - काफ़ी टाईम हो गया, ठीक से याद नहीं कब देखा था ..लेकिन उसी को देखा था मैंने इन कपड़ो में.
सुंदर- वो तो पागल है कभी भी,  कहीं भी,  किसी के भी कपड़े उठा लेता है और बाद में उतार के कहीं भी फेंक देता है. 
अशोक- बात तुम्हारी भी सही है लेकिन न जाने क्यों बार बार  उस पागल पर ही शक होता है.
सुंदर -लेकिन भैया वो कैसे कर सकता है और क्यों करेगा वो ये सब?!
अशोक - तू बार बार उसकी साइड लेना बंद कर, ज़ब तक मुझे पक्का पता नहीं चल जाता तब तक मैं कुछ भी नहीं करूँगा.समझा? 
सुंदर- ओके...भैया..

******
फिर एक बार रात और बारिश ने हाथ मिलाया था, अशोक आज और भी चौकन्ना था। हरीश को कमरे में मे बंद करके खाना भी अंदर ही दे दिया गया था। अशोक नहीं चाहता था कि हरीश, गणेश जैसी कोई हरकत करे। 
हरीश बार बार उससे कह रहा था कि उसे किसी जरुरी काम से बाहर जाना जाना है लेकिन अशोक ने उसकी एक न सुनी। 
अशोक और नरेश, हरीश के कमरे के बाहर ही सो गए। सुंदर और मोहन को फिलहाल घर पर ही रहने को कहा गया था। 
दिन भर की भागदौड़ से अशोक काफ़ी थक गया था इसलिए उसे ये सोचकर नींद आ गई कि चाचा कमरे में है और बाहर पहरे पर नरेश भी उसके साथ ही है। 
आधी रात को अशोक की नींद खुली,उसकी नजर नरेश पर पड़ी, नरेश बेसुध सोया हुआ था। अशोक ने चाचा जे कमरे की तरफ देखा, दरवाजा बंद था वो निश्चिन्त होकर करवट बदलने लगा लेकिन तभी न जाने क्या सोच कर वो झटके से उठा और दरवाजा खोला, अंदर कमरे में कोई नहीं था!उसने पूरे कमरे में अच्छे से तलाश किया ज़ब उसे हरीश कहीं नजर नहीं आया तब वो कमरे से बाहर आया। अशोक ने नरेश को हिला कर उठाया और खुद बाहर की तरफ दौड़ लगा दी। अशोक टॉर्च की लाईट में इधर उधर देखने लगा। बाहर जोरदार बारिश हो रही थी। लेकिन अशोक को बस हरीश की फ़िक्र सता रही थी वो हरीश को पागलों की तरह ढूंढने लगा। अशोक ने जंगल की तरफ दौड़ लगा दी। 
अशोक उसी गुफा के पास पहुंचा जहाँ दिन में उसे कपड़े दिखाई दिए थे। अशोक गुफा के अंदर गया वहाँ उसे वो कपड़े नहीं मिले। अशोक कुछ देर खड़ा होकर सोचता रहा कि वो क्या करे? किधर जाए? फिर अगले ही पल उसने फैसला किया और चल पड़ा एक तरफ। 

****
अतीत की वो काली रात 

सोबन जंगल में था ज़ब उसे होश आया। उसने उठने की कोशिश की तो उसके शरीर में दर्द की एक लहर उठी। बारिश अब भी जारी थी उसे वक़्त का कुछ अंदाजा नहीं लगा। उसने याद करने की कोशिश की...
सुजान के खेत पर सुजान भला चंगा खड़ा था उसके साथ ज्ञान सिंह भी था दोनों कुछ बातें कर रहे थे, सोबन ने उनकी बातें सुनने की कोशिश ही नहीं की। 
"अभी थोड़ी देर पहले इससे मार खाकर इसके साथ ही शांति से खडे होकर बातें कर रहे हो? दिवान को भी बेवजह मैं घर पर ही छोड़ आया, उसे भी साथ ही ले आना चाहिए था मुझे!" सोबन अपनी ही बातें बोले जा रहा था जबकि सोबन को अचानक इस तरह अपने सामने पाकर ज्ञान सिंह चौंक गया था। सोबन सुजान से बोले जा रहा था उसने उनके चेहरों के भाव देखने तक की कोशिश नहीं की और अचानक उसके सर पर एक जोरदार वार हुआ और सोबन वहीं गिर पड़ा। 

"मुझे तुरंत घर जाना होगा !" सोबन खुद से ही बोला और उठने की कोशिश की दर्द हुआ लेकिन इस वक़्त सोबन को ये दर्द बहुत कम लगा। सोबन घर पहुंचा तब तक उसकी पत्नी अस्त व्यस्त हालत में जमीन पर पड़ी हुई थी। सोबन उसके पास गया, उसकी सांसे थम चुकी थी। सोबन ने किसी तरह खुद को जब्त किया उसे अपने बेटे कमु की फ़िक्र हुई वो अंदर कमरे में गया। वहाँ उसने खिड़की की निकली हुई सलाखों को देखा और तुरंत खिड़की के पास आया। 
उसने देखा गंगा सिंह वहीं से भाग रहा था, सोबन का खून खौल उठा। 
"अच्छा तो इन सबके पीछे तू भी है। " सोबन ने पूरे घर में अच्छी तरह चेक किया उसे कहीं भी अपना बेटा कमु नहीं दिखाई दिया। उसने आनन फानन में अपने और कमु के कुछ कपड़े एक बैग में रखे। अपनी पत्नी के ज़ेवर भी बैग में डाले और फिर पूरे घर में तेल छिड़क कर आग लगा दी। 

"मुझे माफ करना कमु की माँ! इस वक़्त मैं इसी तरह तुम्हारी चिता जला सका!अब मुझे कमु को ढूंढना होगा।" सोबन सिंह वहाँ से निकल गया। उसे खुद नहीं पता था कि उसे कमु कहाँ मिलेगा? वो बस एक दिशा में बढ़ रहा था। 
ये एक संयोग ही था कि उसे कमु की  आवाज सुनाई दी। सोबन ने आवाज की दिशा में अपने कदम बढ़ा दिए। कुछ दूरी पर ही उसे कमु नजर आ गया। कमु लगातार दिवान का नाम लेकर उसे पुकार रहा था। सोबन उसके पास गया और उसके मुँह पर हाथ लगा दिया। 
"शश....इतना चिल्लाओ मत " सोबन कमु से बोला। सोबन को देखते ही कमु उससे लिपट गया। 
"पापा वो दिवान... न जाने कहाँ चला गया?अभी तो मेरे साथ ही था।" कमु सोबन से लिपट कर बोला। 
"तुम उसकी फ़िक्र छोड़ दो बेटा, चलो हम यहाँ से चलते है।" सोबन ने कमु को गोद में उठाया और पक्की सड़क की तरफ चलने लगा। 

*****
"लेकिन मैंने कुछ भी गलत नहीं किया था! तुम्हारे पापा को गलतफहमी हुई थी।" गंगा सिंह के चेहरे पर गहरे दुख के भाव थे। 
कमु कुछ नहीं बोला वो बस खामोश ही रहा। तारा अपने कमरे में थी। उसे कल शहर जाना था वो उसी की तैयारी कर रही थी। 
गंगा सिंह कुछ देर खामोश रहा, उसके मन में कई बातें चल रही थी। 
"लेकिन फिर भी तुम्हारे पापा को गांव छोड़ने की क्या जरूरत थी? वो गांव वालों से मदद मांग सकते थे!" गंगा सिंह बोला 

"पापा गांव वालों से मदद मांग तो लेते लेकिन फिर भी इस बात की क्या गारंटी थी कि ज्ञान सिंह, सुजान और आप हमें मारने की कोशिश नहीं करते?!" कमु बोला। 
"कैसी अजीब बात कर रहे हो तुम?! मैं भला तुम्हें क्यों मारता?!! और सुजान!वो तो खुद ही मर चुका था!!" गंगा सिंह चेहरे पर हैरानी के भाव लिए हुए बोला। 

"हाँ, लेकिन पापा को कहाँ पता था कि आप ने कुछ भी नहीं किया और सुजान भी मर चुका है !!"

"फिर भी मेरे पास तुम्हें या तुम्हारे पापा को मारने का कोई तो कारण होना चाहिए था न!!" गंगा सिंह खीज कर बोला। 

"आपके पास नहीं था!लेकिन पापा को यही लगता था कि आप भी ज्ञान सिंह के साथ मिले हुए हो। सुजान को भी ज्ञान सिंह के साथ समझ कर पापा डर गए!आखिर सुजान ने ही तो ज्ञान सिंह का राज पापा को बताया था। "

"राज!! कैसा राज?!"

"वो तो पापा ने कभी मुझे बताया ही नहीं!"

****

जंगल में बारिश और अँधेरे के बीच पेड़ पर रस्सी से बँधा हुआ एक इंसानी जिस्म लटक रहा था, उसके एक ही पैर को रस्सी से बंधा गया था। दोनों हाथ जमीन को छू रहे थे, उसके ठीक नीचे जमीन पर टूटे हुए कांच के टुकड़े बिखरे हुए थे, उसका सर लहूलुहान था और खून नीचे कांच के टुकड़ो पर टपक रहा था शायद उसी कांच के टुकड़ो से वो जख़्मी हुआ था। तभी आसमान में जोर से बिजली चमक उठी और चमक उठा उस पेड़ से कुछ दूरी पर खड़ा एक काला साया!!


जारी.....


Anita Singh

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