पिछले भाग में आपने पढ़ा वीणा अपनी बेटी को स्कूल लेने के लिए आई है और वहाँ वह अपने अतीत में खो जाती है इस स्कूल से उसकी बहुत सी यादें जुड़ी हुई थीं। बेटी को लेकर वह मार्केट जाती है। वे दोनों खाना
समाज में गुम हो चुकी संवेदनशीलता को जगाने का प्रयास करती एक कहानी है, जीवन सारथि! एकसाथ कईं सामाजिक मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करती,स्त्री सशक्तिकरण का उदाहरण प्रस्तुत करती, 'भिखारी' कह कर समाज से अलग क
अरे! क्या हुआ? आखिर क्या हुआ? अरे कल की आई बहुरिया को आखिर क्या हुआ? चारो ओर चर्चा हो रही है आखिर हुआ क्या दयाराम की पतोह को। कोई कुछ कह रहा है कोई कुछ। अभी एक रात ही बीती है और दयाराम की पतोह का यह
उस अद्भुत साल के वसंत में, मैं बेरुत में था। बगीचे निसान के फूलों से भरे हुए थे और पृथ्वी ऐसे लग रही थी जैसे हरी घास का कालीन बिछा दिया गया हो, यह सब ऐसा था जैसे पृथ्वी ने अपने रहस्य को आसमान के सामने
जब से विनय ने हर्षित को बताया था कि पापा जी के साथ क्या घटा है ? तब से हर्षित को उन बदमाशों के अलावा अपने पिता गोविंद प्रकाश पर भी गुस्सा आ रहा था। पिताजी हाथ पर हाथ रखकर कैसे बैठ सकते हैं ? पिताजी को
महेंद्र प्रकाश जिंदगी की जंग तो जीत गए लेकिन असली जंग तो अभी बाकी थी जिन लोगों ने उनके साथ यह अत्याचार किया था अभी उनको सजा देना बाकी था । एक माह बाद उनको डॉक्टर ने छुट्टी दे दी और सभी खुशी खुशी उन्हे
सुबह हो चुकी थी । गोमती देवी बहुत बेचैन हो रही थी । पता नहीं क्यों आज मन नहीं लग रहा था ? अभी तक महेंद्र प्रकाश के नहीं आने से मन नहीं लग रहा था। किसी अनहोनी की आशंका से दिल बैठा जा रहा था। तभी
सुबह हो चुकी थी । गोमती देवी बहुत बेचैन हो रही थी । पता नहीं क्यों आज मन नहीं लग रहा था ? अभी तक महेंद्र प्रकाश के नहीं आने से मन नहीं लग रहा था। किसी अनहोनी की आशंका से दिल बैठा जा रहा था। तभी अचानक
महेंद्र प्रकाश को यूं ही बहाना बनाते हुए अभी 10 मिनट ही गुजरे होंगे तभी उन्हें बाहर पदचाप कमरे की तरफ आती सुनाई दी। महेंद्र प्रकाश समझ गए कि वह बदमाश अब उनके पास आ रहे हैं 1 मिनट बाद दरवाजा खुला और कु
जीवन में कब क्या होगा ये विधाता को पता होता है . पता नहीं विधना क्या लिखे बैठा है आपके लिए . विधाता की ताकत ही है राम को राजगद्दी मिलते - मिलते चौदह वर्ष का बनवास हो गया था . सत्यवादी राजा हरिश्च
अगले दिन सुबह कृष जल्दी ऑफिस के लिए निकल गया ,वो राभ्या से नही मिल पाया,,, इधर शादी की तैयारियां भी चल रही थी तो कृष के पास वक्त ही नही था ,,वो कब घर आता कब जाता कुछ नही पता था ,,। एक दिन क
राभ्या , कृष और विशाल तीनों तैयार होकर ऑफिस के लिए निकल गए ,,। ड्राइवर के बराबर में विशाल जानबूझ कर पहले बैठ गया , तो कृष को राभ्या के बराबर से बैठना हालांकि वो ख़ुद भी यही चाहता था ,,,। पर सामने मुंह
कृष पर दुखो का पहाड़ एक साथ टूट पड़ा था ,,। पर उसने खुद को टूटने नही दिया वो किसी भी तरह से तनीषा को ढूढना चाहता था । कृष इस केस पर काम करने से पहले विशाल के साथ रावी के घर गया ,,,कृष - रावी तुम्
रावी और विशाल घर पहुंचे तो वहां दक्ष पहले से मौजूद था ,,,कृष की आंखो में आंसू थे वो लैपटॉप के सामने बैठा हुआ था ,,, स्क्रीन पर एक मेल खुली हुई थी जिसमे कनाडा का न्यूज़ पेपर की फोटो थी और दिया की फोटो
कृष - दिया तुम मेरा विश्वास नही तोड़ोगी कभी मैं जानता हूं , रही बात नफरत की तो कृष कभी अपनी दिया से नफरत नही कर सकता ,,,। इतना कहकर कृष ने दिया को अपने आगोश में ले लिया , कृष की जान ने उसे उसके जिस्म
रात का खाना खत्म होने के बाद सब अपने अपने रूम में चले गए ,,,। अगले दिन शाम को एल विशाल जब ऑफिस से वापस लौटा , वो अपने रूम में बैठा हुआ था अचानक कृष उसके रूम में आया विशाल ने उसे और मुस्कुरा दिया,
विशाल गुस्से में कार में बैठ गया और ड्राइव करने लगा और कृष बार बार उसे मनाने की कोशिश कर रहा ।विशाल ने रास्ते भर कर कृष से कोई बात नही की , वो उससे नाराज था , कुछ ही देर ने दोनो चंद्रवंशी कुंज पांच गए
विशाल ने अपनी आंखों से आंसू साफ करते हुए एक गहरी सांस ली और कहना शुरू किया , तुम जानना चाहती हो ,,,, कृष के अतीत के बारे में तो मैं तुम्हे बताऊंगा ,,, आज जो कृष दिखता है,,, ये वो कृष है ही नही ,,
अन्तिम भाग