पिछले भाग में आपने पढ़ा ज्ञान सिंह जंगल में मरा हुआ मिलता है और सबका मानना है ये सुजान के भूत या उसके बेटे का काम है।
कमु डॉक्टर के क्लिनिक जाकर डॉक्टर को एक बटन देता है, डॉक्टर को हैरानी होती है कि उसकी कमीज का बटन कमु के पास कैसे आया।
इधर तारा के पिताजी कमु पर अपना शक जाहिर करते हुए उससे रात को जंगल जाने की बात पूछते है लेकिन कमु बातों को घुमा देता है।
उसी रात ज्ञान सिंह के भाई चन्दन को सुजान का भूत दिखाई देता है! पहले तो चन्दन को डर लगता है लेकिन फिर अपनी पत्नी और बेटे को घायल करके उसके पीछे ही चल देता है।
अब आगे.......
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कमु खिड़की के बाहर खड़ा था और वहीं से एक तार अंदर डाल रहा था "अब ठीक हो गया!बहुत शौक है न तुझे जासूसी का! अब कर बराबरी कमु के दिमाग़ की!!"
कमु ने तार के जरिये खिड़की के रास्ते अंदर से दरवाज़े की कुंडी चढ़ा दी थी।
"अब न दरवाजा खुलेगा!न कमु मिलेगा!" कमु तार वापस बाहर खींचने लगा।
"हम कुछ कम थोड़े न है!!थोड़ी खुराफ़ात न की तो कमु का नाम खराब न हो जाए!" कमु ने तार पास ही छिपा दिया और खिड़की के पल्ले बाहर से ही बंद कर दिए।
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डॉक्टर साहब खिड़की के पास हाथ में फोन लिए खड़े थे, वो बार बार फोन की स्क्रीन देख रहे थे। डॉक्टर साहब ने एक बार फिर से फोन में देखा और फिर एक नजर बाहर डाली।बाहर जोरदार बारिश हो रही थी साथ में ठंडी हवा भी चल रही थी। तभी फोन बजा डॉक्टर ने फोन पर किसी से बात की और फिर से खिड़की के बाहर देखने लगे। बारिश कम होने के आसार नजर नहीं आ रहे थे।
"काफ़ी देर हो गई!एक बार देखना चाहिए!" डॉक्टर खुद से ही बोले और अपना रैनकोट निकाल कर पहन लिया। लम्बे जूते पहने, टॉर्च लिया और इस मूसलाधार बारिश में ही घर से बाहर निकल आए।
बाहर आकर डॉक्टर ने टॉर्च ऑन करने से पहले चारों तरफ नजर घुमाई, इस मूसलाधार बारिश में वैसे भी किसी का नजर आना नामुमकिन ही था। डॉक्टर साहब ने टॉर्च ऑन की एक बार टॉर्च की रोशनी चारों तरफ लगाई। इंसान का तो कहीं अता -पता नहीं था लेकिन कुछ पेड़ो के साये हवा से लहराते और बारिश की ताल पर झूम रहे थे।
पूरी तरह से आश्वत होने पर डॉक्टर साहब ने अपने कदम एक ओर बढ़ा दिए।
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बारिश अब भी जोरों से बरस रही थी,बादल गर्जना कर रहे थे। बिजली आँखों को भी चकाचौंध कर रही थी। बारिश और हवा के चलते आस पास के पेड़ पौधे भी हिलते डुलते प्रतीत होते थे।
जब जब बिजली चमकती सामने के बरसाती पोखर में चमक उठता था लाल रंग में रंगा हुए पानी और साथ ही दिखता था औंधे मुँह पड़ा हुआ 'एक इंसान'।
"इस कहानी में मेरा रोल क्या है?! मैं कातिल हुँ!, बचाने वाला हुँ !!,इन्वेस्टीगेशन वाला हुँ!!, या फिर दर्शक हुँ!!, आखिर मैं हुँ तो हुँ क्या?!रोल तो क्या मैं तो अपना करैक्टर ही भूल गया हुँ!!" रैनकोट में एक साया पोखर के चारों तरफ चक्कर लगाते हुए खुद से ही बोला वो कोई और नहीं कमु था।
"तू ही बता दे!.. मेरा करैक्टर! तुझे तो पता होगा ही न!अरेरेरे....तुझे पता तो है लेकिन..बताने लायक नहीं रहा न तू!.... छोड़ा ही नहीं तुझे इस लायक!!" इतना बोल कर कमु ने जेब से एक केला निकाला और बड़े इत्मीनान से खाने लगा मानो पिकनिक पर आया हो।
"सुना है प्यासा कुएँ के पास जाता है, लेकिन तू तो डूब ही गया! ऐसी भी क्या प्यास !!" कमु केला खाते हुए बोला। केला ख़त्म करके कमु ने छिलका वापस जेब में डाला और चला गया।
"सुहाना सफर और ये मौसम हंसी...."गुनगुनाते हुए कमु दूर निकल गया।
एक बार फिर पास की झाड़ियों से एक साया निकल कर आया उसने दूर जाते कमु की तरफ देखा फिर पोखर की तरफ देखा।
"चिंता मत कर!एक बार ये कहानी पूरी हो जाए तो सबको अपना किरदार अच्छे से पता भी चलेगा और समझ भी आएगा!!" पता और समझ पर खासा जोर देते हुए बोला।
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तारा पूरी तरह से भीगी हुई थी उसके हाथ में एक छोटा सा टॉर्च था जिसकी रोशनी नाम मात्र थी लेकिन शायद तारा को आदत थी इसलिए इस नाकाफ़ी रोशनी में भी उसे कोई दिक्क़त नहीं हो रही थी। बारिश भी कुछ हल्की हो चुकी थी। तारा घर के आँगन में आई, उसने कमु के दरवाज़े को हल्का सा धक्का दिया लेकिन दरवाजा मजबूती से बंद था,एक नजर दरवाज़े पर डालकर तारा अपने कमरे के दरवाज़े तक आई हल्का सा धक्का दिया और बाहर से ही दरवाज़े से अंदर की तरफ हाथ डाला,थोड़ा टटोलने के बाद उसने हाथ बाहर निकाला, उसके हाथ में एक तौलिया था,वो आँगन के एक तरफ गई गीले कपड़े उतार कर पास ही टांक दिए और तौलिया लपेट कर जल्दी से कमरे के अंदर घुस गई।
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एक तरफ चंदन की हरकतों ने पूरे गांव में खौफ पैदा कर दिया था तो वहीं दूसरी तरफ गणेश और हरीश न जाने क्या खाकर सोये थे कि उन्हें अपने भाई की ऐसी हरकतों की भनक तक न लगी या फिर वो दोनों भी डर की वजह से अपने कमरों में कैद थे। गणेश की पत्नी ने दरवाज़े पर दस्तक भी दी थी लेकिन गणेश ने नींद में ही उसे डपट दिया। उसकी पत्नी कुंती की दोबारा गणेश को जगाने की हिम्मत नहीं हुई। उसके दोनों बेटे भी सो चुके थे,कुंती और उसकी सोलह साल की बेटी उमा खिड़की से बाहर देख रहे थे लेकिन उन्हें कोई नजर नहीं आया शायद चंदन अब दूर जा चुका था।
"माँ चाचा कहाँ चले गए?!" उमा ने खिड़की से बाहर देखते हुए पूछा।
"पता नहीं!मुझे तो डर लग रहा है! कहीं तेरे ताऊजी की तरह...." कुंती आगे बोल न सकी।
"हम बाहर जाकर देखे?!" उमा ने माँ की तरफ देखा।
"नहीं!हम भला कैसे जाए, जिन्हे जाना चाहिए वो तो घोड़े बेच कर सो रहे है!!" कुंती कमरे के बंद दरवाज़े की तरफ देखती हुई बोली।
"चाची और भैया ने चाचा को बाहर आने से रोका नहीं!?"उमा के शब्दों में सवाल और हैरानी दोनों महसूस की जा सकती थी।
"ये तो भगवान ही जाने!चल तू भी सो जा, चाचा शायद घर चले गए!" कुंती की आवाज में डर और चिंता दोनों थे।
बेटी के सोते ही कुंती ने बत्ती बुझा दी। खिड़की के पास आकर एक नजर बाहर डाली और फिर खिड़की बंद कर दी।
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कमु सावधानी से जा रहा था, तारा के घर के पास पहुँच कर वो थोड़ा और सतर्क हो गया। चाचाजी को उस पर शक था, तारा को शक है ऐसा कमु को लगा नहीं लेकिन फिर भी कमु के कमरे में न होने की बात उसने ही चाचाजी को बताई थी तो क्या पता तारा अब भी उस पर नजर रख रही हो। कमु ने टॉर्च बंद कर दिया और अँधेरे में ही रास्ता देख कर आगे बढ़ने लगा।
कमु ठीक घर के आगे पहुंचा ही था ज़ब आसमान में एक जोरदार बिजली कड़की और एक पल के लिए पूरा वातावरण रोशनी से नहा उठा और उसी एक पल की रोशनी में कमु की नजर तारा पर पड़ी।
"अरे यार!ये तो सामने ही दिख गई,अब क्या बहाना बनाऊं?" कमु मन में सोचते हुए अपने दिमाग़ के घोड़े तेजी से दौड़ाने लगा।
"मेरा पेट खराब था! बार बार इस बारिश में बाहर आने से तबियत ज्यादा खराब होती इसलिए डॉक्टर साहब के कमरे तक गया था दवा लेने लेकिन फिर सोचा डॉक्टर साहब थके हारे सो रहे होंगे, इस वक़्त उनको क्यों परेशान करूँ यही सोचकर मैं आधे रास्ते से वापस लौट आया।" कमु बिना रुके एक सांस में जल्दी जल्दी बोला।
कुछ पल कमु खामोश रहा तारा की प्रतिक्रिया के लिए लेकिन तारा अस्थिर खड़ी थी उसके कपड़े हवा में लहरा रहे थे। कमु को हैरानी हुई, "तारा कुछ बोल क्यों नहीं रही!? " कमु ने मन में सोचा और टॉर्च की लाइट ऑन करके तारा के चेहरे की तरफ लगाई।
"अरे!ये क्या....!!" कमु के मुँह से निकला और आधे शब्द कमु के मुँह में ही रह गए।
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डॉक्टर करीब दो घंटे बाद वापस कमरे पर आया उसने सावधानी से इधर उधर नजर घुमाई। अंधेरा बारिश की वजह से और भी घना हो चुका था। डॉक्टर कुछ देर खड़ा ही रहा, वो अच्छी तरह से किसी भी आहट को सुनने की कोशिश कर रहा था, ज़ब काफ़ी देर तक कुछ सुनाई नहीं दिया तब डॉक्टर ने आहिस्ता से दरवाजा खोला और कमरे में घुस गया।
रेनकोट एक खूंटे पर टांक कर जूते उतारे तभी डॉक्टर कर फोन बज उठा।
"हैलो!मैंने कहा था..!!अभी अभी बाहर से आया हुँ।क्या? अशोक!!...लेकिन!! ठीक है!...अब मुझे नींद आ रही है गुडनाइट।" डॉक्टर ने उबासी लेते हुए कहा और फोन काट दिया
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"अरे!यार फालतू में ही मेरी हालत खराब हो गई!वैसे भी मुझे डरने की जरूरत नहीं है,वो भी तारा से!!पागल लड़की!कपड़े इस तरह कौन रखता है भला!!" कमु खुद से बातें कर रहा था सामने तारा के कपड़े एक लकड़ी पर इस तरह लगे हुए थे जैसे कोई इंसान खड़ा हो इसलिए अँधेरे में कमु भी धोखा खा गया। वो खुद पर ही हँसा और अपने कमरे की खिड़की की तरफ बढ़ गया।
उसने तार निकाल कर कुंडी सरकाई और दरवाज़े की तरफ बढ़ गया। एक नजर चारों तरफ दौड़ा कर उसने दरवाजा खोला और कमरे के अंदर चला गया।
कपड़े बदल कर वो बिस्तर के अंदर घुस गया। जल्द ही उसे नींद भी आ गई। इस वक़्त कमु बहुत ही मासूम और भोला लग रहा था। कौन यकीन करता कि यही मासूम अभी थोड़ी देर पहले एक लाश के पास गीत गुनगुना रहा था वो भी ऐसी तूफानी रात में!
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सुबह एक बार फिर पूरा गांव सकते में था!! चन्दन मर चुका था। इस बार गांव वालों का शक यकीन में बदल चुका था, आखिर!सुजान आ ही गया बदला लेने!!
अशोक सुबह जागा तब उसे अपने चाचा के मरने कि खबर मिली और साथ ही कल रात का पूरा घटना क्रम भी उसने सुना।
"किसी ने कल रात मुझे जगाया क्यों नहीं!चाचा गांव भर में डरते फिरते रहे और तुम में से किसी ने भी उनकी मदद नहीं की! न मुझे जगाना ही ठीक समझा!आखिर क्यों??" अशोक बहुत गुस्से में था।
"सुंदर!कम से कम तुम तो चाचा को बाहर जाने से रोकते या मुझे जगाने ही आ जाते!" अशोक सुंदर के दोनों कंधे झकझोर कर बोला तभी उसकी नजर सुंदर के हाथ पर गई जहाँ पट्टी बंधी हुई थी।
"ये...ये क्या हुआ तुम्हें? "अशोक ने सुंदर का हाथ पकड़ कर पूछा।
"ये.... पापा को बाहर जाने से रोका तो उन्होंने मुझ पर और माँ पर भी हमला कर दिया।" सुंदर ने बताया।
"क्या?!!..लेकिन क्यों? आखिर यहाँ हो क्या रहा है!!" अशोक अब भी गुस्से में था।
लाश को बाहर निकाला गया, रात भर पानी में रहने के कारण शरीर फूल गया था! चेहरे पर चोट के कई निशान थे! लाश बेहद भयानक लग रही थी।
विधिवत चन्दन का अंतिम संस्कार कर दिया गया। अशोक सुबह से ही एक अलग ही सोच में गुम था। अंतिम संस्कार के बाद अशोक सीधे सुंदर से मिलने उसके घर गया।
"सुंदर!..जो हो गया उसे बदला नहीं जा सकता। लेकिन जो होने वाला है हमें उसे बदलना ही होगा!"अशोक चंदन के पास बैठते हुए बोला,सुंदर ने लाल हो चुकी आँखों से अशोक की तरफ सवालिया नजरों से देखा।
"देख! हमारे परिवार ने दो दिन में दो-दो मौत देखी है, सबका कहना है ये किसी भूत का काम है लेकिन मुझे पक्का यकीन है ये हमारे किसी दुश्मन का काम है! या हो सकता है सच में सुजान का बेटा हमारे आस पास ही अपनी पहचान बदल कर रह रहा हो और इस सब के पीछे उसी का हाथ हो!" अशोक ने सुंदर की तरफ देखते हुए कहा, सुंदर भी अशोक की तरफ देख रहा था, वो समझने की कोशिश कर रहा था कि असल में अशोक चाहता क्या है?
"हमने अपने पिता को खोया है लेकिन अब और नहीं! हम अपने छोटे भाई बहनो के सर से उनके पिता का साया नहीं उठने देंगे। जो भी होगा मुझे सब पता करके किसी भी तरह अपने दोनों चाचाओं को बचाना है। मैं इन सब की जड़ तक जाना चाहता हुँ! क्या तू मेरा साथ देने के लिए तैयार है?" अशोक ने उम्मीद भरी नजरों से सुंदर को देखा।
सुंदर ने आँखों से आंसू साफ करते हुए दृढ स्वर में कहा, "हाँ भैया! मैं आपके साथ हुँ। बताइये क्या करना है?"
"सबसे पहले तो चाचाजी के मरने का गम तुझे अब और नहीं करना है, तुझे चाचीजी को भी तो संभालना है। उनकी आस अब तू ही है।.. दूसरा काम तुझे ये करना है कि अपने कान और आँखों को खुला रखना होगा!कुछ भी, थोड़ा भी अजीब लगे तो तुरंत मुझे बताना। " अशोक बोला
"अजीब!" सुंदर हैरानी से बोला।
"हाँ!जैसे किसी कोई हरकत, किसी की कोई बात। जैसी बात उसने पहले कभी न की हो।समझ आया?? " अशोक ने सुंदर को समझा कर पूछा।
"हूं..!" सुंदर ने सर हिलाकर जवाब दिया।
"ठीक है, तू चाची को संभाल मैं जरा दवा लेकर आता हुँ। " अशोक सुंदर कर कंधा थपथपा कर उठ गया और छिपा बैंड की तरफ मुड़ गया।
अशोक अभी आधे रास्ते में था तभी उसके पेट में गड़बड़ शुरू हो गई। घर भी पीछे रह गया था। वैसे तो केवल पंद्रह मिनट कर रास्ता था कुशराण से छिपा बैंड का लेकिन ज़ब पेट खराब हो तो एक कदम चलना भी भारी हो जाता है। अशोक के पेट में मरोड़ सी उठने लगी थी। उसने इधर-उधर देखा पास ही एक बड़ा सा पत्थर उसे दिखाई दिया,अशोक उसके पीछे चला गया।
काम निपटा कर वो पत्थर के पीछे से निकल ही रहा था जब उसे किसी की आवाज सुनाई दी। अशोक धीरे धीरे आवाज की दिशा में बढ़ने लगा। काफ़ी करीब पहुँचने पर उसे वो आवाज बिकुल साफ सुनाई दी।
"दो को मार दिया!अब बस दो और रह गए!पापा कितने खुश होंगे!!जल्दी से ये काम खत्म करता हुँ फिर ये खून वाले कपड़े भी फेंक दूंगा!!सब बहुत होशियार समझते है खुद को!लेकिन मैंने कैसे तड़पा-तड़पा के मारा दोनों को!छोटा सा बच्चा था मैं! दर्द से तड़प रहा था ...लेकिन तुमको जरा भी दया नहीं आई!! इसलिए तुम्हारी किस्मत में भी तड़पना ही लिखा है!" एक मर्दाना स्वर अशोक को सुनाई दिया। अशोक ने झाड़ी हटाई सामने कोई खड़ा था उसके कपड़ो पर खून के धब्बे थे और हाथ में एक चाकू चमक रहा था।
अशोक एक पल को अंदर तक सिहर उठा फिर उसे अपने पिता और चाचा की मौत याद आई और उसकी आँखों में बदले की भावना जाग गई,उसने कातिल को ढूंढ लिया था!!
वो झाड़ियों के पीछे से निकला उसकी चाल में तेजी थी! चेहरे के भाव बदल गए थे।अशोक सीधा उसके पास गया और सबसे पहले उसका चाकू वाला हाथ कस कर पकड़ लिया!वो अचानक हुई इस घटना से हैरान हुआ!! उसने पलट कर देखा और उसका चेहरा देखते ही अशोक को जैसे बिजली कर करंट लगा हो!!
"तू..!!" अशोक हैरान होकर बोला।
"ऐ! मुझे क्यों पकड़ा?!दिखाई नहीं देता, मैं कुछ काम कर रहा हुँ। तू गाड़ी लेकर आ गया?" वो बोला।
"बंद कर अपना नाटक!अब मेरे शक को यकीन में बदलने का वक़्त आ गया है। गांव वालों को भी मानना पड़ेगा! जो मैं कहा रहा था वो सच था। तू ही है कातिल!!"अशोक बहुत गुस्से में था।
"छोड़ दे भाई!हाथ में दर्द हो गया!तुझे भी दे दूंगा यार!तू चिंता मत कर!!" सूरज दर्द से बिलबिला उठा था अशोक ने गुस्से में उसकी कलाई बड़े जोर से दबा रखी थी।
"चुप!!एकदम चुप! तेरा खेल अब खत्म!" अशोक गुस्से में भयंकर गर्जना के साथ बोला। सूरज सहमा हुआ सा दर्द से कसमसाते हुए चुपचाप अशोक की तरफ देखने लगा।
अशोक ने जेब से फोन निकाला और सुंदर कर नंबर मिलाया।
"हैलो!सुंदर, मैंने कातिल को पकड़ लिया है! तू जल्दी से छिपा बैंड वाले रास्ते पर आ जा और साथ ही पुलिस को भी फोन कर के बता दे।... इसे अकेले संभालना मुश्किल है। जरा जल्दी आजा.." अशोक ने तुरंत ही फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।
आगे अगले भाग में........