आधी रात का वक़्त, जोरदार बारिश, घनघोर जंगल को और भी डरावना बना रही थी। बारिश के थपेड़ों के बीच जल्दी जल्दी कदम बढ़ाता कोई उस गुफा की तरफ ही बढ़ रहा था जिस गुफा से अभी अभी अशोक निकला था वो शख्स शायद इस बात से अनजान था कि किसी को उसके इस ठिकाने की खबर लग चुकी है।अभी वो गुफा से कुछ दूरी पर ही था, उसके कदमो की रफ्तार बहुत तेज थी। इधर उधर नजर घुमाता हुआ वो साया तेजी से गुफा की तरफ बढ़ रहा था। इससे पहले कि वो गुफा के पास पहुँचता किसी ने पीछे से उसको पकड़ लिया, कुछ सोचने समझने से पहले ही उसके मुँह से एक हाथ लगा और हूंहूं... की आवाज के साथ खुद को छुड़ाने की कोशिश में ही उसकी पलकें भारी होकर बंद हो गई।
******
गंगा सिंह कमु को सब बता चुका था लेकिन ये बात उसने कमु को नहीं बताई कि उस रात जिस बच्चे को रेवती ने जन्म दिया था वो एक लड़की थी यानि तारा और हिमा ने उस रात सूरज को जन्म दिया था। अगले रोज गांव वालों को यही बताया गया था कि हिमा ने दो जुड़वा बच्चों को जन्म दिया है और तब से रेवती हिमा बन गई। सूरज और तारा जुड़वा भाई बहन। अब सब यही जानते थे कि तारा और सूरज सगे भाई बहन है जबकि सूरज तो तारा की मौसी का बेटा था।
***
डॉक्टर आज वापस जाने की पूरी तैयारी कर चुका था, गांव में सभी लोगों को उसने यहीं बताया था कि वो शहर के किसी बड़े हॉस्पिटल में डॉक्टर बन गया है इसलिए सुबह से ही डॉक्टर के घर लोगों का आना लगा हुआ था कोई बधाई दे रहा था, बड़ा डॉक्टर बनने पर तो किसी को दुख था कि इतना अच्छा डॉक्टर अब वहाँ से जा रहा था। कुछ लोग अपनी खेती की डाल भी भेंट के रूप में डॉक्टर को दे रहे थे। डॉक्टर के जाने का समय हुआ और वो घर से सामान लेकर निकल पड़ा। नाकचुला से उसे रामनगर वाली बस पकड़नी थी। डॉक्टर पैदल ही जंगल के रास्ते से होते हुए चल पड़ा। आधा रास्ता तय करने के बाद डॉक्टर थोड़ा सुस्ताने के लिए एक जगह पर रुक गया। उसने पानी निकाला और पीने लगा तभी अचानक से कोई उसके आगे आ धमका डॉक्टर अचानक हुई इस घटना से थोड़ा घबरा गया फिर अगले ही पल संभल कर बोला, "इस तरह की हरकत की वजह?"
"न पूछिए जनाब वजह का आलम कि बेवजह ही मुस्करा दीजिए
हम तो जमाने से अनजाने है, आप खैरियत ही पूछ लिया कीजिए।"
डॉक्टर ने अपना सामान उठाया और चल दिया उसे कमु की इस हरकत से कोई मतलब नहीं था लेकिन कमु ने बोलना जारी रखा...
"बरसो बरसे है नैन मेरे तेरे दरस को तरस कर
न थमी ये सांसे,बदली भी बदली बरस कर"
"इस पागल के घर वाले कैसे झेलते होंगे इसे?!" डॉक्टर अपने आप से बोला और आगे बढ़ गया।
*****
हरीश का अंतिम संस्कार करने के बाद अशोक घर न जाकर एक पेड़ के नीचे बैठा गहरे विचारों में डूबा हुआ था तभी उसकी नजर सूरज पर पड़ी और उसे याद कि नरेश ने उसे उन कपड़ो में देखा था जो अशोक को उस गुफा में दिखाई दिए थे, अशोक ने चारों तरफ नजर घुमाई आस पास कोई नहीं था। सही मौका जान कर उसने सूरज को दबोच लिया, उसके मुँह पर हाथ लगाकर अशोक उसे एक तरफ ले जाने लगा सूरज ने बहुत कोशिश की अशोक की पकड़ से छूटने की लेकिन वो कामयाब न हो सका।
अशोक सूरज को गांव के बाहर एक खंडहर हो चुके मकान के करीब ले आया। सूरज ने आस पास नजर दौड़ाई लेकिन उसे कोई मददगार नजर नहीं आया अब उसे खुद ही कोशिश करनी थी, उसने अपनी कोहनी का इस्तेमाल करते हुए अशोक के पेट पर जोरदार वार किया, अशोक को ऐसी उम्मीद नहीं थी उसकी पकड़ थोड़ा ढीली हुई..और सूरज ने एक जोरदार किक वापस अशोक के पेट पर मारी और वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गया।
अशोक सूरज को बस देखता ही रह गया और कुछ पल बाद उसके होठों पर एक मुस्कान तैर गई, "तू मेरी सोच से ज्यादा ही निकला!"
****
उस पतले-दुबले व्यक्ति ने जिसका नाम विजय था उनमें से एक के चेहरे से काला कपड़ा हटाया। सामने कमु का चेहरा नजर आया, उसके मुँह पर टेप थी। विजय ने झटके से टेप हटा दी।आँखों को मिचमिचाने के सिवा कमु ने कुछ खास रिएक्शन नहीं दिया, मानो कुछ हुआ ही न हो।
"जमुरे शुरू हो जाओ,क्यों?कब? कैसे? " विजय बोला
कमु ने विजय की तरफ देखा फिर पूरे हॉल पर एक सरसरी नजर डाली।
"स्वागत का तरीका पसंद आया मुझे" कमु मुस्करा कर बोला।
"तुम बको वरना मेहमान नवाजी के इंतजाम और भी है "विजय ने लापरवाही से हाथ झटका
"ज्यादा मुश्किल कुछ भी नहीं था, बीमारी के चलते अक्सर लोग घर के बाहर आ जाते थे। रात का वक़्त! बारिश का मौसम!.... कुछ भी कठिन नहीं था। हरीश खुद ही जंगल की तरफ चला आया और मुझे उसे मारने का मौका मिल गया। पेड़ पर रस्सी से उलटा लटका दिया और उसी की पी हुई शराब की बोतल के टुकड़ो पर बार बार उसका सर पटका कुछ ही टाईम बाद वो बेहोश हो गया। ज्यादा वक़्त नहीं था मेरे पास, इसलिए गले पर चाकू का एक वार और हरीश ने हमेशा के लिए संसार को बाय कर दिया।
वो डॉक्टर ही दिवान सिंह बेलवाल है ,तारा भी कुछ घुटी हुई सी लगी और वो पागल......." कमु की बात बीच में ही रुक गई क्योंकि विजय ने उसके मुँह पर टेप चिपका कर फिर एक बार काले कपड़े से उसका मुँह ढक दिया था।
विजय ने उसी अंदाज से चलते हुए दूसरे नंबर वाले शख्स का नकाब हटाया। वो तारा थी, कपड़ा हटाते ही तेज रोशनी के कारण तारा ठीक से आँखें खोल नहीं पाई। विजय ने तारा के मुँह से टेप हटा दी। तारा ने अपने अगल-बगल देखा, उसके आलावा तीन लोग और थे वहाँ लेकिन चेहरे पर काला कपड़ा था। तारा ने असमंजस के भाव लाते हुए विजय की तरफ देखा।
"चालू कर दो अपना स्पीकर, लेकिन ये मत पूछना कौन सी न्यूज सुनाऊ ! तुम्हारे कारनामें की लेटेस्ट न्यूज तुम्हारे मुँह से सुनने में ज्यादा मजा आएगा, तो शुरू हो जाओ। " विजय तारा के सामने टेबल पर बैठते हुए बोला।
"ज्ञान सिंह को मैंने मारा था!अपनी गाय ढूंढने के बहाने मैं जंगल गई और मार डाला उस ज्ञान सिंह को,उस कमीने की नजर शुरू से ही मेरी माँ पर थी। एक दिन ज़ब माँ जंगल में घास काट रही थी, उसने माँ से बदतमीजी करनी चाही। मैं माँ से थोड़ा दूर घास काट रही थी और मेरा भाई सूरज भी उधर पास ही था। वो गाय को चराने के लिए जंगल ही ले आया था। सूरज ज्ञान सिंह से लड़ने लगा मैं और माँ दोनों घबरा गए हम बीच बचाव करने लगे, ज्ञान सिंह ने सूरज को धक्का दिया और सूरज जमीन पर गिर गया। मैं और माँ सूरज को उठाने दौड़े लेकिन उस ज्ञान सिंह ने हमारे कुछ करने से पहले ही सूरज के सर पर एक पत्थर दे मारा। सूरज के सर से खून निकलने लगा और वो वही बेहोश हो गया। ज्ञान सिंह वहाँ से भाग गया।
हमने सूरज का बहुत इलाज कराया लेकिन वो अपना मानसिक संतुलन खो बैठा, कभी कभी तो वो हमें भी नहीं पहचानता।" तारा ने बात खत्म की
"सच में!!" विजय तारा को अजीब नजरों से घूरते हुए बोला।
"और दूसरा कोई कारण मेरे पास तो नहीं है।" तारा दृढ़ स्वर में बोली।
"तुम्हारा भाई सच में उस हादसे के बाद अपना मानसिक संतुलन खो बैठा?!" विजय ने अर्थपूर्ण लहजे में कहा
"हाँ, लेकिन इस हादसे का असली कारण मुझे और मेरी माँ को ही पता है। पापा को हमने असली वजह नहीं बताई।" तारा ने बताया
"तुम जानती हो इस वक़्त तुम कहाँ हो?" कहीं भी रहूँ, मेरा जवाब नहीं बदलेगा।" तारा पूरे आत्मविश्वास से बोली।
विजय ने तारा के मुँह पर टेप चिपका कर वापस उसका मुँह काले कपड़े से ढक दिया और तीसरे इंसान की तरफ बढ़ गया। वो तीसरा इंसान कोई और नहीं डॉक्टर यानि दिवान सिंह था।
"तुम भी अपना मीटर चालू कर दो, लेकिन तुम बाकि सब की तरह झूठ की गोलियां मत उगलना । बिलकुल सच सच बताओ तुमने गणेश को क्यों मारा?" विजय दिवान की आँखों में देखते हुए बोला।
" मैंने उसे नहीं मारा, वो खुद ही बिजली के खम्बे से चिपका था। गांव के सभी लोगों ने देखा था। " दिवान ने दो टूक जवाब दिया।
"इस पूरी कहानी के शाहजहाँ, मुमताज़ पर ताजमहल यूहीं तो नहीं बना, मजदूरी किससे और कैसे करवाई बता दो, वरना इतना ही बता दो शहर के किस हॉस्पिटल में तुम्हारी ड्यूटी है?! हम तुम्हारी कहानी का पोस्टमार्टम वहीं करवा लेंगे।" विजय दिवान को देखकर व्यंग से बोला।
"उसे मैंने मना किया था दवा के साथ अल्कोहल लेने से लेकिन उसने मेरी बात नहीं मानी। शराब और दवा साथ लेने के कारण उसे रिएक्शन हो गया जिस के कारण उसका दिमाग़ उसके ही कंट्रोल से बाहर हो गया।" दिवान अपनी बात पर ही टिका रहा।
"ठीक है नाटक से पर्दा हम ही गिराएंगे।" विजय ने ये कहकर तारा और कमु के चेहरे से भी काला नकाब और टेप हटा दी। तीनो ही एक दूसरे को इस तरह देखकर हैरान थे।
"हैरान हो? तुम तीनों यहाँ!एक साथ!अभी एक और है तुम्हारा साथी" विजय ने चौथे इंसान की तरफ इशारा किया तीनों के सिर उसी तरफ घूम गए और सबके दिमाग़ में एक ही बात थी 'चारों भाइयों को चार अलग अलग लोगों ने मारा था !!'और साथ ही सबके दिमाग़ में एक सवाल गूंज रहा था,
'आखिर ये चौथा इंसान है कौन??'
जारी....
तब तक आप भी दिमाग़ लगाइये कि आखिर ये चौथा इंसान है कौन?? और 'विजय' ये कौन सा नया करैक्टर है?? आपके सभी सवालों के जवाब अगले और अंतिम भाग में....