उसने पूरी निर्दयता से उसके गले पर एक वार किया कुछ पल उसी तरह झुक कर बैठा रहा और फिर उठकर चाकू वहीं फेंक कर चल दिया।
बारिश भी अब कुछ हल्की हो चुकी थी, उस आकृति के जाते ही कुछ ही दूरी पर झाड़ी हिली, कोई साया बाहर आया और उस लाश के बिलकुल करीब आकर गौर से देखा, "अजीब पागल था! मरे हुए को और मार गया(फिर लाश की तरफ देखकर )तेरे दुश्मन संख्या में कुछ ज्यादा ही लगते है मुझे और तुझसे नफ़रत भी बेपनाह करते हैं!"उसने बीड़ी सुलगा ली और धुंआ उड़ाता हुआ, बेपरवाह चाल से जंगल के अँधेरे में गुम हो गया।
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पहाड़ी क्षेत्र के नाकचुला बाजार में बरसात से भीगी हुई एक सुबह और भीगी हुई सुबह को महका रही थी चाय की खुशबू !इसी खुशबू से महकती चाय की एक दुकान पर कुछ लोगों के बीच चर्चा का विषय थी, एक बीमारी!आजकल ये चर्चा आम थी।
दस बजे वाली बस का समय हुआ और वो अपने नियत समय से पहुँचकर अपने नियत स्थान पर खड़ी हो गई। दो चार लोकल सवारी और एक आध दूर से आने वाली सवारी।सभी बस से नीचे उतरते ही बारिश से बचने के लिए किसी न किसी दुकान के अंदर चले गए।
एक नौजवान युवक बस के गेट पर आया इधर उधर देखा फिर नीचे उतर कर दौड़ते हुए सामने चाय की दुकान पर पहुँच गया।उसकी नजर पूरी दुकान का चक्कर लगाकर एक खाली बैंच पर गई और वो उस पर यूं लुढ़क गया मानो शरीर में जान ही न हो।दुकान में चाय की चुस्की लेते कुछ लोगों ने उसे गौर से देखा फिर वापस अपनी बातों में आए विराम को चाय की चुस्कियों के साथ शुरू कर दिया।
"अरे! कौन सी बीमारी फैला दी तुमने अपनें पड़ोस वाले गाँव में?" पचपन की उम्र के करीब का व्यक्ति धर्म बोला उसके हाथ में स्टील का एक गिलास था जिसमें से उड़ती भाप देखकर और भीगी हवा में फैली खुशबू से सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता था कि उस गिलास में कड़क पहाड़ी चाय भरी हुई थी।
"हमनें कहाँ कुछ किया है!हमनें भी चाय के उबाल की तरह ही सुना है कि कोई महामारी फैली है!" दूसरा व्यक्ति जो करीब पचास साल का अधेड़ था, गंगा सिंह उसने गरम और कड़क चाय से भरा स्टील का गिलास मुँह से लगाते हुए बताया।
"कैसी महामारी फैल गई?जिसकी खबर हमको न हुई!"तीसरे व्यक्ति नरेंद्र ने अपनी चाय होंठो के पास रोक कर पूछा।
"अरे! क्या बताएं हमारे पड़ोस में, जो गाँव है कुशराण! वहाँ.. किसी को उल्टियां हो रही हैं बल तो कोई अंदर बाहर मतलब दस्त से परेशान है! बाहर वाला भी कोई उस गाँव जाता है तो बीमार होकर लौटता है।" गंगा सिंह ने चाय की एक और चुस्की लेते हुए बताया।
"किसी पाप का फल मिल रहा होगा पूरे गाँव को।" नरेंद्र चाय की चुस्की का भरपूर आनंद लेते हुए यूं ही बोल गया।
"अरे भैजी (भैया) ऐसा भी क्या पाप कि पूरा गाँव का गाँव ही ऊपर और नीचे से निकाले!!" धर्म बोला।
"क्यों? भूल गए बीस-बाईस साल पहले क्या हुआ था!"गंगा सिंह चाय ख़तम करते हुए बोला।
"बड़ा बुरा हुआ था!!शायद उसी रात का फल पूरा गाँव भोग रहा है।"धर्म गरम चाय का आखरी घूंट भरते हुए बोला।
"जैसी करनी वैसी भरनी,ये कहावत यूं ही तो नहीं बनी.....सबको अपना किया मिलता ही है,देर से ही सही।क्यों भैजी!" नरेंद्र थोड़ा ऊंचे स्वर में अपना गिलास टेबल पर रखते हुए बोला।
"बिल्कुल सही कह रहे हो भुला (छोटा भाई)।" गंगा सिंह ने सहमति जताई।
"मुझे तो लगता है श्राप लगा है पूरे गाँव को!" धर्म फिर से उनकी बातों में शामिल होता हुआ बोला।
" किया धरा तो कुछ लोगों का था न?!" गंगा सिंह ने मन की शंका जाहिर की
"लेकिन तमाशा तो पूरे गाँव ने देखा था!सुना हमने कि सब जानकर भी गाँव वाले खामोश ही रहे बल (पहाड़ी शब्द)।" धर्म बोला
"सुना है वो हर दरवाजे पर मदद मांगने गया लेकिन कोई सामने नहीं आया!"नरेंद्र बोला।
"उस परिवार का दबदबा था,सभी डरते थे उनसे।"धर्म ने बात पूरी की।
"मुझे लगता है, बल्कि हमारे गाँव वालों का भी यही मानना है , उसकी आत्मा आई है बीमारी बनके। ताकि पूरे गाँव से बदला ले सके।"गंगा सिंह बोला।
"सही कहते हो!मैंने भी सुना है, कुछ गाँव वाले गए थे बल ओझा के पास,उस ओझा ने भी इस बीमारी का कारण कर्मो का फल बताया बल।"धर्म ने बताया।
तीनों अपनी बातों में मशगूल थे लेकिन कोई था जो इनकी बातों को बहुत ध्यान से सुन रहा था।
तभी उसकी दाईं जांघ पर थरथराहट होने लगी उसने चौंक कर देखा,फोन वाइब्रेट मोड़ पर था।उसने जेब से फोन निकाला,"हैलो!हैलो! मैं कुछ भी नहीं भूला हूँ!सब याद है!!...अब अगर बार बार फोन किया तो वापसी की बस पकड़ लूंगा।"उसने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।
"अंकल लम्बाड़ी का रास्ता ......"
"हाँ.. हाँ! पीछे से निकल जाओ।जंगल के तीन राह से बाईं ओर मुड़ जाना फिर सामने ही गाँव नजर आ जाएगा।ये पहाड़ है यहाँ के रास्ते सालों में भी नहीं बदलते।"दुकान वाला जल्दी जल्दी बोला उसकी बातों से ही लग रहा था कि वो उस युवक को जानता है।
"थैंक यू अंकल!" उसने चाय के पैसे दिए और दुकान से बाहर निकल आया।
🦋पच्चीस साल पहले.....
करीब आधी रात का वक़्त,पहाड़ी इलाका, भादौ माह की मूसलाधार बारिश! किसान अपने जानवरों के साथ, खेतों में घास-फूस के छप्पर तले,रस्सियों से बनी खाट पर पसरे हुए थे।
कुछ किसान दिन भर की थकान से चकनाचूर होकर, इस मूसलाधार बारिश से बेखबर, बेसुध से नींद की आगोश में समाए हुए थे तो कुछ किसी भी तरह रात कटने या बारिश थमने के इंतजार में कम्बल के अंदर लिपटे हुए एकटक अंधियारी रात को निहार रहे थे। घास से बने इस रैन बसेरे को पहाड़ी इलाके में गोठ के नाम से जाना जाता है। सावन-भादौ के महीने में कुछ पहाड़ी इलाकों में इसी तरह जानवरों के साथ खेतों में रात गुजारी जाती है,इससे गोबर के रूप में खेतों को खाद मिल जाती है।
ऐसे ही एक किसान बाकी किसानों से थोड़ा दूर अपनी गोठ में अपनें पाँच साल के बेटे दिवान को अपने सीने से चिपका कर कम्बल के अंदर ही घुसा हुआ था। बीच बीच में वो सिर निकाल कर बाहर देख लेता।
"दीवान को भी जाने क्या जिद सूझी, आज ही गोठ आने की! अपनी बोई (माँ) के साथ रह जाता घर में...कम से कम चैन से सोता...यहाँ बारिश का शोर और हवा के थपेड़े.. परेशानी हो रही होगी...ठंड भी लग रही होगी!!" सुजान खुद से ही बोला।
बेटे को सीने से चिपका कर सुजान इसी तरह के ख्यालों में रात निकालने की कोशिश कर रहा था।
सुजान को बस इंतजार था कि सुबह का आभास हो और बारिश थमे तो वो दीवान को घर जाकर आराम से सुला दे और खुद चूल्हे की आग के पास बैठ कर घरवाली के हाथों से गरमागरम चाय पिए।
ठंड का असर और दिन भर की थकान आखिर सुजान की आँखो पर बोझ बनने लगी जब पलकें इस बोझ को उठाकर थक गई थी तब उन्हें झुकना ही पड़ा। पलकों के झुकते ही सुजान मीठी नींद की डाली पर जा बैठा।
अभी सुजान की आँख लगी ही थी कि अचानक उसे अपने बदन में एक तीव्र पीड़ा का अहसास हुआ!उसके मुँह से एक दर्द भरी चीख निकल पड़ी!!उसने आँखे खोली तो देखा कोई हाथ में लठ लिए उसके सामने खड़ा था! उसके शरीर में झुरझुरी दौड़ गई।
उसके आस पास किसी भी दूसरे किसान कि गोठ नहीं थी,मदद के लिए चिल्लाना बेकार था,उसने देखा बारिश अब भी लगातार हो रही थी।वो तुरन्त खाट से नीचे उतर आया! और लठ मारने वाले के पैरों में गिर पड़ा।
उसे अपने बेटे दिवान की फिक्र थी,इस कारण वो फुर्ती से खाट से उठ गया था ताकि अगर लठ का दूसरा प्रहार हो तो दीवान को चोट न लगे।
लठ मारने वाला सुजान को अपने पैरों से लिपटते हुए देखकर घमंड से भर उठा,उसने लठ उठाकर एक और प्रहार सुजान के ऊपर करना चाहा लेकिन तब तक सुजान ने उसके पैर खींचकर उसे धूल की जगह कीचड़ चटा दिया था।
लेकिन!सुजान को इस बात की खबर नहीं थी कि उसके ऐसा करते ही उस पर कौन सी आफत गिरने वाली है!!
लठ वाले को कीचड़ में लिटा कर सुजान खुद उठने की कोशिश कर ही रहा था जब उसके ऊपर दनादन लाठियों के प्रहार होने लगे। वहाँ सुजान के अलावा चार लोग और थे जिनमें से एक अब भी कीचड़ से लथपथ होकर उठने की कोशिश कर रहा था और बाकी के तीन सुजान पर लगातार लाठियां बरसा रहे थे।आखिर सुजान की चेतना खो गई।
🦋पच्चीस साल बाद........वर्तमान में
वहीं गाँव,वहीं खेत वैसी ही हरियाली, ऊंचे-ऊंचे चीड़ के पेड़ खूबसूरत वादियां!!वहीं बरसात का मौसम!सब कुछ सुंदर-सुहाना!!
हाँ!रहन सहन में काफी फर्क है,लेकिन प्रकृति अब भी अपने रूप से सबको निहाल कर रही है।लोग खेती बाड़ी के अलावा दूसरे व्यवसाय ज्यादा करने लगे है।मार्केट पहले के मुकाबले काफी बड़े है और अब लगभग जरूरी सेवाएं पास ही उपलब्ध हो जाती है,शहरों के मुकाबले तो आज भी बहुत कठिन है पहाड़ी जीवन।लेकिन पहाड़ियों को शहरों से क्या मतलब, वो खुश है अपने पहाड़ में।
लम्बाड़ी गाँव की हँसमुख,चंचल लड़की जिसका नाम है तारा बहुत सुंदर नहीं लेकिन सादगी से भरपूर,अपने यौवन की चमक से अनजान! चहकती हुई!चंचल पहाड़ी लड़की!चेहरे पर कोमलता बातों में चपलता, जंगल जाकर लकड़ियां लाती है, घास काटती है ,कॉलेज प्राइवेट से कर रही है इसलिए घर पर ही रात के वक़्त पढ़ाई करती है।
शाम के वक़्त तारा अपने खेत में कोई पहाड़ी गीत गुनगुनाते हुए हरी घास काट रही थी आकाश के बादल भी मानो उसी के सुर में थिरक रहे हो इसलिए कभी कुछ बूंदे बिखेर देते।बहुत सुन्दर तो नहीं थी वो लेकिन अपने काम में मग्न तारा इस वक़्त बेहद सुन्दर लग रही थी और इस सुंदरता के आगे प्रकृति भी निहाल थी। तारा अपने काम और गीत में व्यस्त थी,तभी तारा की नजर उस पर पड़ी।
पीठ पर बैग लगाए टेढ़े मेढे ढंग से बॉडी को हिलाते हुए! फटे बांस की तरह मुँह से ही फटा हुआ ढोल बजाता! वो चला जा रहा था।
तारा कुछ देर तो बस उसे देखती रही फिर आवाज लगाई।
"ओ फटे हुए ढोल के टेढ़े मेढे मालिक!ये हमारे खेत है! सर्कस का मैदान नहीं!! जो यूं करतब दिखाते हुए हमारी फसल और घास को रौंदते हुए चले जा रहे हो।"तारा ऊंची आवाज में चिल्लाई
वो थोड़ा रुका,शरीर को झटका दिया!फिर कान से हेडफोन निकालते हुए पीछे देखा
"तुमने मुझ से कुछ कहा?" वो तारा को देखते हुए बोला
"नहीं!...जो भैंसा घास को खाने की बजाए.... रौंद रहा है उससे कह रही थी!!" तारा मासूम सी शक्ल बनाते हुए उसके पैरों की तरफ देखते हुए बोली
"ओह! फिर ठीक है!!" उसने गरदन हिलाते हुए कहा फिर बेफिक्री से सिर वापस सामने की ओर किया और आगे की ओर एक कदम बढ़ाया ही था, फिर जैसे उसे कुछ समझ आया हो उसने चौंक कर अपने पैरो के नीचे की ओर देखा फिर पीछे की ओर जमीन पर देखा ।वो कटी हुई घास के ऊपर म्यूजिक की धुन पर थिरकते हुए चला जा रहा था।
उसने गरदन उठा कर तारा की ओर देखा!तारा एक हाथ में दरांती पकड़े दूसरे हाथ को कमर पर रख कर उसे ही घूर रही थी।
"सॉरी!!मेरा मतलब...गलती हो गई।दोबारा नहीं होगा!!" उसने हड़बड़ाते हुए कहा
"क्या मतलब!दोबारा नहीं होगी!!तारा तुम्हें दोबारा करने देगी?" तारा दरांती वाला हाथ हवा में हिलाते हुए बोली
"ओके,दोबारा नहीं होगा!" वो मुस्कराते हुए बोला
तारा उसके पास आई और उसके हाथ में दरांती पकड़ाते हुए बोली," चलो अब फटाफट उतना घास काट दो जितना रौंदा है।"
वो कुछ बोलना चाहता था लेकिन तारा के तेवर देख कर बोल न सका,उसने हाथ में पकड़ी हुई दरांती को देखा!इससे पहले उसने कभी दरांती शब्द भी सुना हो ऐसा उसे याद नहीं आया!उसने नजर उठाकर तारा की ओर देखा तारा बड़बड़ाती हुई वापस अपने काम पर लग गई थी।
"मूर्ति महाराज!अब हिलिए!! और किए गए नुकसान की भरपाई कर दीजिए।"तारा की आवाज सुन वो हिला और सामने घास के पास कुछ सेकेंड खड़ा रहा ।
फिर दरांती को दोनों हाथ से आकाश की ओर उठाया जैसे वो कुल्हाड़ी हो और भरपूर ताकत के साथ दोनों हाथों से दरांती थामे कोमल घास पर एक भयानक वार करने ही वाला था,जब तारा जोर से चिल्लाई!!
उसका हाथ ज्यों का त्यों हवा में ही ठहर गया और वो हैरानी से तारा को देखने लगा।
"घास काटने को कहा था!...घसीटा राम का कत्ल करने को नहीं!!"तारा पास आते हुए बोली
"घसीटा राम!!"वो हैरान होकर नीचे देखते हुए बोला,"कौन घसीटा राम.... कहाँ है घसीटा राम?"
"जिसकी तुम निर्दयता से हत्या करने जा रहे थे!....घास काटने का भी तरीका होता है!नहीं आता था तो बोल देते!!"तारा उसके हाथ से दरांती लगभग छीनते हुए बोली
वो बस हैरानी से तारा को देखता ही रहा
"वैसे तुम हो कौन? और यहाँ क्या कर रहे हो?"
"सबसे पहले पूछने वाली बात अब पूछी वो भी इस अंदाज से जैसे पूछ कर अहसान कर रही हो।" वो मन ही मन। बुदबुदाता हुए प्रत्यक्ष बोला,"अब क्या फायदा?!"
तारा ने उसे अजीब नजरों से देखा फिर पूछा,"मतलब!!"
"कुछ नहीं... मैं कलम सिंह हुँ।मेरे पिताजी ...
"तुम सोबन अंकल के... आवारा! निखटू!मनमौजी!!बेटे कमु हो न!!" तारा बेहिचक धड़धड़ाते हुए बोली
"लास्ट वाला ज्यादा अच्छा है।"
"क्या??"
"नाम!तुमने मेरे इतने सारे नाम रखे न अभी अभी! उनमें से लास्ट वाला,"मनमौजी" मुझे पसंद आया।" कमु तारा के ही अंदाज में बोला
"कितने दिन का भार बनकर आए हो?हमारे इस गाँव पर आ-भार करने!" तारा नाक सिकोड़ कर आँखों को मटकाते हुए बोली
"ये मेरा भी गाँव है!! और आ....भार नहीं आभार मानो मेरा"
"अब ज्यादा बाते मत बनाओ,नुकसान किया है मेरा, हर्जाना तो देना पड़ेगा...."
"यू मींस मनी...ओके...कितने ?"कमु अपना वॉलेट खोलते हुए बोला
"ओ पैसा फेंक तमाशा देख!अपने इन पैसों की चमक अपने शहर में दिखाना।मेरे साथ ये सारा घास गौशाला तक पहुँचा दो।फिर जाओं जहाँ जाना हो!" तारा ऐसे इतराती हुई बोली जैसे घास न हो हीरे मोती हो।
कमू को तारा की बात माननी ही पड़ी। आखिर उसको तारा के घर पर ही तो ठहरना था।
(कमु यानी कलम सिंह फनियाल एक ऐसा चरित्र जो मनमौजी है जब जहाँ मन ले चले चल देता है,अपने खर्चों के लिए कोई भी छोटा बड़ा काम करता है।ज्यादातर अपने शहर से बाहर ही रहता है,जब शहर में होता है तब कुछ दिन कोई काम करके कुछ रुपए जोड़ता है और चल पड़ता है अपने मन की राह,उसके पिता चाहते है बेटा एक जगह जम जाए और अपना घर बसा ले लेकिन कमू.. उसे ये सब बातें सोचने की भी फुर्सत नहीं या उसकी जिंदगी में ये सब जरूरी नहीं।
जो भी हो फिलहाल उसके मन की राह उसे उसके पैतृक गाँव ले आई और आते ही मुलाकात भी किससे हुई? तारा से!! अब इन दोनों की ये मुलाकात किसको कौन सी राह ले जाएगी ये तो वक़्त ही बताएगा।)
रात लगभग पूरी तरह शाम के जाम को भरने ही वाली थी। चीड़, बाँज और बुँराश के पेड़ों से ढका हुआ घनघोर जंगल वो चमकीली आँखे दहशत से इधर उधर देखती तेजी से एक दिशा में बढ़ी जा रही थी।
तभी सामने से अचानक जैसे कोई प्रकट हुआ,चमकीली आँखों में खौफ पूरी तरह फ़ैल गया।
"तारा!" एक मर्दाना स्वर उभरा
"हं... कमु तू!" तारा आश्चर्य के साथ अब भी खौफ में लग रही थी,"वो...चंपा...नहीं मिली!" तारा डर और घबराहट के मिले जुले स्वर में बोली
"हाँ! चंपा.. वो घर आ गई है,रात होने वाली थी इसलिए चाची ने मुझे भेज दिया तुझे बताने को..और साथ लाने को, चल!अंधेरा भी हो गया है।"कमु बोला
"थैंक यू!...मुझे बहुत डर लगने लगा था।" तारा पीछे देखते हुए बोली
"ये थैंक यू तू रहने दे,बस अगली बार घास लाने को मत बोलना"कमु मुस्कराते हुए बोला।
"तू मेरा घास बरबाद मत करना!"तारा भी उसी के अंदाज मे बोली
"तारा याद है,बचपन में मैं जब भी गाँव आता ,हमारी कभी नहीं बनती थी।"
"वो तो अब भी नहीं बनेगी।" तारा बोली और दोनों खिलखिला दिए
कमु ने तारा की तरफ देखा। तारा ने आज एकदम चटख रंगों से सजा हुए सूट पहना हुआ था। अलग अलग रंगो से सजी एकदम अजीब ड्रेस थी वो, दुप्पटा भी एकदम चटख लाल था, सूट पर भी ऐसे प्रिंट थे मानो पेंट की डब्बी ही उड़ेल दी हो।
"वैसे तू काफी बदल गया है,पहले जैसा तो बिल्कुल नहीं लगता" तारा कमु का चेहरा देखते हुए बोली
"ठीक से देखो,कहीं कमू के वेश में डमू तो नहीं।" कमु गहरे स्वर में रहस्यात्मक अंदाज बनाते हुए बोला....कुछ सेकेंड दोनों ने एक दूसरे का चेहरा देखा और फिर खिलखिला दिए
🦋उसी रात
अँधेरे से लिपटा हुए माहौल,घनघोर जंगल और जंगल में होती बहुत सी आवाजो के बीच उठती दर्द से कहराती इंसानी चीख....
वो बेपरवाह सा एक पत्थर के ऊपर बैठ कर केले का छिलका उतारने लगा फिर उसने केले को सूंघा और कुछ इस तरह के भाव चेहरे पर आए मानों केला सूंघ कर ही वो तृप्त हो गया हो।केला खाते हुए उसने एक नजर उस कहराते इंसान पर डाली, एक बार उसके चेहरे पर नफरत के भाव आए फिर जल्द ही वो मुस्कराते हुए बोला,"ऐसे मौकों पर मैं केला खाना पसंद करता हूँ!इसकी खुशबू मेरे मन को शांत और ठंडा करती है... और केला मेरे पेट को....हूं.. तुम सोच रहे हो मैं कौन हूँ....जो सबसे पहले पूछना चाहिए वो सबसे आखिर में पूछ रहे हो....हाँ...मतलब वही..पूछने की हालत में तुम हो ही कहाँ लेकिन मन में तो सोच रहे हो न!!" वो थोड़ा झुका और उसके चेहरे पर अजीब से भाव आए...
दर्द से बिलखते,खून से लथपथ उस आदमी ने असहाय नजरों से उसकी ओर देखा लेकिन ज्यादा देर अपनी आँखे खुली न रख सका एक चीख के साथ उसने आँखे मूंद ली।उसके शरीर पर जगह जगह से खून बह रह था,खून बहुत ज्यादा बह चुका था ।
उसने फिर जोर लगाकर पलकें उठाई और उसे देखने लगा।
वो केला खाते हुए इत्मीनान से बैठा हुआ शायद इसी इंतजार में था कि वो घायल व्यक्ति आँखे खोले।
"तू तो भूल गया होगा न!तेरे लिए बेहद मामूली बात होगी, है न!..इससे पहले कि तू मर जाए और ये सस्पेंस भी यहीं ख़तम हो जाए मैं तुझे मेरा परिचय करा ही दूं...सुन! मैं वो हूँ जिसको तूने बेघर कर दिया,मेरे पिता को रात ही रात यहाँ से भागने पर मजबूर कर दिया....."
कमु की बात पूरी भी न हुई थी कि खून से लथपथ उस इंसान ने फिर पलकें मूंद ली! कमु उसके नजदीक गया,केले का आखरी टुकड़ा मुँह में डाला और छिलका जेब में रख लिया। थोड़ा नीचे झुक कर उसे चेक किया,वो मर चुका था।
"आधी बात सुनकर ही मर गया...भगवान तेरी आत्मा को आधी शांति दे,बल्कि वो भी न दे,तूने कौन से अच्छे काम किए है कि तुझे शांति प्राप्त हो।" वो मरे हुए व्यक्ति को देखकर बोला।
उसके मरने की तसल्ली होने पर उसने भी अपने कदम घर की ओर बढ़ा दिए।
मूसलाधार बारिश शुरू हो चुकी थी, रात भी गहराने लगी थी। बारिश की वजह से लाश से काफ़ी खून साफ हो चूका था। तभी इस मूसलाधार बरसती बारिश में रेनकोट पहने, एक आकृति उस लाश की तरफ बढ़ने लगी।पता नहीं उसने रेनकोट बारिश की वज़ह से पहना हुआ था या खुद को छिपाने के लिए!
वो आकृति पास आई लाश का अच्छे से मुआयना किया फिर उसकी नजर पास ही एक चाकू पर गई, बारिश की वजह से चाकू से खून भी धुल चुका था। कातिल ने अगर निशान छोड़ा भी होगा तो वो अब साफ हो चुका था। वो आकृति हाथ मे चाकू लिए लाश के पास बैठी और उसने पूरी निर्दयता से उसके गले पर एक वार किया कुछ पल उसी तरह झुक कर वो आकृति बैठी रही और फिर उठकर चाकू वहीं फेंक कर चल दी।
बारिश भी अब कुछ हल्की हो चुकी थी, उस आकृति के जाते ही कुछ ही दूरी पर झाड़ी हिली, कोई साया बाहर आया और उस लाश के बिलकुल करीब आकर गौर से देखा, "अजीब पागल था! मरे हुए को और मार गया!!(फिर लाश की तरफ देखकर )तेरे दुश्मन संख्या में कुछ ज्यादा ही लगते है मुझे और तुझसे नफ़रत भी बेपनाह करते हैं!"उसने बीड़ी सुलगा ली और धुंआ उड़ाता हुआ, बेपरवाह चाल से जंगल के अँधेरे में गुम हो गया।
🌄अगले दिन......
सुबह के दस बजे तक आस पास के गाँव में ये खबर फैल गई थी। ज्ञान सिंह जंगल में मरा हुआ मिला है।तुरंत उसकी लाश को घर लाया गया,लाश देखकर हर इंसान अंदर तक कांप गया।
उसका शरीर जगह जगह से छिला हुआ था। किसी धारदार हथियार से उसका शरीर छिला हुआ था,वैसे तो बारिश ने काफ़ी खून साफ कर दिया था लेकिन अब भी पुरे शरीर पर खून था,वो बहुत ही भयावह लग रहा था। उसके दोनों हाथों और पैरों पर चमड़ी उधेड़ कर एक शब्द लिखने की कोशिश की गई थी जो काफी हद तक पहचान में आ रहा था,उस शब्द को पहचानते ही सबकी रूह भी कांप गई थी।वो शब्द था.... ’बदला’
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जारी है......
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