अन्तिम भाग
डॉक्टर की डिग्री लेने के बाद भी दिवान खुश नहीं था उसे तो कुछ और ही करना था। और आखिर उसे मौका मिला और वो पहुँच गया नाकचुला। वहाँ पहुंचते ही उसने सबसे पहले कुशराण यानि अपने पैतृक गांव के जल स्रोत में ऐसी दवा मिला दी जिससे उस पानी को पीने वाला हर इंसान उल्टी-दस्त से ग्रस्त रहे। बीमारी के चलते ज़ब लोग दिवान के पास इलाज के लिए आए तब दिवान ने कुछ चुनिंदा लोगों के गले में माइक्रो चिप लगा दी जिससे वो उनकी हर एक गतिविधि पर नजर रख सके और अपना काम सरलता से कर सके । दिवान ने अपने काम के दो स्टेप पूरे कर लिए थे और ठीक इस वक़्त कमु भी गांव आ गया। दोनों एक दूसरे से अनजान थे लेकिन मकसद एक था। उनके इस मकसद में सबसे पहले ज्ञान सिंह को मारकर तारा ने अपनी उपस्थिति दर्ज भी करा दी और किसी को भनक भी न लगने दी।एक चौथा इंसान और है जो इनका ही हमरही है। चार राही, मंजिल एक फिर भी एक दूसरे से अनजान। एक दूसरे को चारों ही जानते तो थे लेकिन इस बात की खबर किसी को नहीं थी कि उनके रास्ते और मंजिल दोनों एक ही है।
कमु गुपचुप तरीके से ज्ञान सिंह और उस के भाइयों पर नजर रखे हुआ था। पहली ही रात ज्ञान सिंह के मरने पर कमु ने भी वहीं से अपनी कार्यवाही शुरू कर दी थी। दिवान को ज्ञान सिंह के मरने की खबर लग चुकी थी अपनी चिप के जरिये। सो वो भी अपनी चिप लेने वहाँ पहुंचा (भाग 1) जंगल जाते वक़्त उसकी कमीज का बटन रास्ते में ही कहीं गिर गया था जो घर जाते वक़्त कमु को मिला और एक ही नजर में कमु ने उसे पहचान भी लिया और अगले दिन जाकर डॉक्टर को लौटा दिया(भाग 2)। ये इस बात की ओर इशारा भी था कि वो थोड़ा सतर्क रहे, करे कोई भरे कोई वाली कहानी यहाँ घटित न हो जाए।
***
अब बारी थी उस चौथे इंसान की। विजय ने उसकी तरफ कदम बढ़ाए और उसके चेहरे से नकाब हटा दिया। तारा, दिवान और कमु उस चौथे शख्स को हैरानी से देखने लगे।
"अशोक!!" तीनों के मुँह से एक साथ निकला।
उन तीनों को देखकर अशोक भी कुछ पल के लिए सकपका गया फिर सम्भल कर वो विजय की तरफ देखने लगा।
"तुम सभी के दिमाग़ में मेंढक फुदक रहे है, है न!!" विजय ने चारों पर नजर डाली, "मैं कौन हुँ? और तुम सब को यहाँ किसलिए लाया हुँ?.."
चारों ने एक दूसरे को देखा और फिर वापस विजय के चेहरे की ओर देखने लगे।
"बताता हुँ इतनी भी जल्दी क्या है? असल में तुम चारों घोड़ो को रेस में दौड़ाने वाला शख्स मैं ही हुँ!नहीं समझे?"
चारों अब भी हैरान होकर विजय को देख रहे थे, विजय ने एक एक कर के चारों के हाथ खोलने शुरू किए।
"मैं सीक्रेट एजेंट विजय हुँ! तुम चारों ने सीक्रेट एजेंसी की अलग अलग वेबसाईट पर अप्लीकेशन डाली थी।
उसके बाद तुम्हें सेलेक्ट करने के लिए एजेंसी ने तुम्हें तुम्हारे ही दुश्मन को खत्म करने का टास्क दिया गया। जिसे तुमने ठीकठाक कर लिया। " विजय ठीक ठाक पर जोरदार देते हुए बोला।
"दिवान ने जैसे ही महामारी वाला प्लान शुरू किया। कमल को तुरंत वहाँ भेज दिया गया और कमल के आते ही तारा को उसी रात ज्ञान सिंह को मारने का ऑर्डर दे दिया गया। तारा ने बिलकुल भी देरी नहीं की और ठीक समय पर ज्ञान सिंह को मार दिया। तुम सब ने ही सही समय पर अपना अपना टारगेट पूरा किया। एक दूसरे के बारे में भी काफ़ी कुछ जान गए लेकिन ये भूल गए कि खुद को छुपा कर रखना भी बहुत जरूरी है। तुम्हारे साथी को भी तुम्हारी कोई जानकारी तब तक नहीं होनी चाहिए ज़ब तक तुम न चाहो। कोशिश बहुत अच्छी थी तुम सबकी। फिर भी चूक हुई तुमसे कई बार!
एक सीक्रेट एजेंट को हमेशा अलर्ट रहना चाहिए। इसके आलावा अभी तुम्हें बहुत कुछ सीखना समझना है। अशोक अपनी जेब चेक करो। " विजय अचानक अशोक से बोला।
अशोक ने हड़बड़ा कर अपनी जेब में हाथ डाला, उसमें से एक पर्ची निकली अशोक ने उसे हैरानी से देखा।
"पढ़ो" विजय आदेश देता हुआ बोला,अशोक ने तुरंत उसे खोला और पढ़ने लगा।
"ज़ब तक तुम तैयार होकर आओगे तब तक मैं भी तैयार रहूंगा अपने पापा और तीनों चाचा की मौत का बदला लेने के लिए।"अशोक ने पढ़ा और हैरानी से विजय को देखा।
"उसने पता लगा लिया था कि तुम कौन हो, इधर तुम फौलाद बनोगे उधर वो भी अपनी शक्ति बढ़ाने की कोशिश करेगा। यानि तुम्हारे साथ साथ तुम्हारा एक दुश्मन भी तैयार हो रहा है।
तुम सब ने सिर्फ जाती दुश्मनी के चलते उन्हें नहीं मारा बल्कि उनकी पूरी खोज खबर ली यानि उनके सच का पता लगाया।!
ज्ञान सिंह और उसके भाई सालों से जंगली जानवरो की खाल के सौदागर थे सिर्फ जानवर ही नहीं कई बार इंसानों को मार कर उनके शरीर के अंग भी ये सप्लाई करते थे।साथ ही कई बार उन्होंने प्राचीन मूर्तियों को भी विदेश सप्लाई किया है। यही बात दिवान के पिता को पता चली जिसके चलते उन्हें न सिर्फ अपनी जान से हाथ धोना पड़ा बल्कि उनके बेटे और पत्नि को भी काफ़ी कुछ सहना पड़ा।
तुम चारों ने अलग अलग रहकर भी,थोड़ी सी गंदगी साफ की है।बदला लिया है देश के अंदर पल रहे गद्दारों से।अपनी भावनाओं में बहकर तुमने कोई भी गलत कदम नहीं उठाया। इसलिए तुम सब अभी यहाँ हो।"
चारों विजय की बात ध्यान से सुन रहे थे।
"और सब तो ठीक है लेकिन "अशोक!!" दिवान अशोक की तरफ से शंकित होते हुए बोला। तारा और कमु के चेहरे पर भी वही भाव थे।
"इसका थोड़ा अलग है, इसे टास्क में इसके ही चाचा को मारने के लिए कहा गया। इसने क्यों अपने ही चाचा को मार दिया। ये बात ये खुद बताए तो ज्यादा बेहतर होगा। " विजय अशोक की तरफ देखते हुए बोला।
"मैं जानता हुँ तुम सब के मन में बहुत सवाल होंगे, शायद मेरे एजेंट बनने की तुम कल्पना भी नहीं कर सकते। लेकिन ये सच है। मुझे बचपन से अपने पापा और चाचा के बारे में सब पता चल चुका था और न जाने क्यों मेरे दिल में धीरे धीरे उनके लिए नफ़रत पनपने लगी। एक तरफ मेरे पापा मुझे फौज में भेजना चाहते थे तो वहीं दूसरी तरफ वो खुद ही देश के दुश्मन थे।मैं ने भी मन ही मन एक फैसला लिया, जिस दिन मैं फौज या सीक्रेट एजेंट में सेलेक्ट हो जाऊंगा अपने पापा और चाचा को उनकी गलतियों का अहसास जरूर कराऊंगा। संयोग से एजेंसी ने मुझे सेलेक्ट करने से पहले ही ये मौका दे दिया।
मेरे पापा और हरीश चाचा को किसने मारा ये तो मैं पता नहीं लगा सका लेकिन उनकी आख़री सांस पर मैं उनके साथ था और मरने से पहले उन्हें उनके पाप याद दिलाए और ये भी बताया कि मुझे उनसे नफ़रत है।" अशोक चुप हो गया।
"लेकिन मेरी जानकारी के अनुसार तुम अपने पिता के कातिल को ढूंढ रहे थे। ताकि तुम बदला ले सको" दिवान ने बताया।
"बिकुल ढूढ़ रहा था, लेकिन बदला लेने के लिए नहीं बल्कि ये जानने के लिए कि ऐसा कौन है जो मुझ से पहले ही ये काम कर गया। मुझे उनकी मौत का कोई गम नहीं। उन्होंने खुद न जाने कितनो का घर बर्बाद किया। जिसका जीता जागता उदाहरण तुम खुद हो। " अशोक ने बात ख़त्म की।
चारों वापस विजय की तरफ देखने लगे।
"लेकिन हमें इस तरह यहाँ क्यों लाया गया।" कमु ने पूछा
"ये एजेंसी का अपना तरीका है, ज़ब तक तुम पूरी तरह से नालायक(विजय को उसके पापा नालायक ही समझते है, इसलिए विजय ने ये शब्द इस्तेमाल किया। वैसे भी विजय की बातें हमेशा टेढ़ी ही होती है) नहीं बन जाते तब तक तुम्हें एजेंसी के किसी भी ठिकाने की खबर नहीं होगी।" विजय बोला।
चारों के चेहरे पर समझने के भाव थे।
"वैसे सीक्रेट एजेंट के ठिकाने ऐसे ही होते है?? " कमु पूरे हॉल को देखते हुए बोला।
"फ़िल्मी कीड़े को अपने दिमाग़ से निकाल दो" विजय कमु के मन की बात ताड़ते हुए बोला।, " ये असल जिंदगी है, फिल्मो की तरह झटके में कुछ भी नहीं होगा यहाँ और न ही फ़िल्मी हथकंडे होंगे।पहली ही मुलाक़ात में सब जान लोगे?" विजय कमु को देखते हुए बोला कमु चुप ही रहा।
"फ़िल्मी दुनिया से बाहर आओ अब। तुम्हारी ट्रेनिंग होगी जिसमें तुम्हें अलग अलग टास्क भी दिए जायेंगे। लोहा ज़ब अच्छी तरह गर्म हो जायेगा तब उस पर सीक्रेट एजेंट का हथौड़ा मारा जायेगा। ट्रेनिंग के बाद तुम्हारा पहला काम ज्ञान सिंह से जुड़े हर व्यक्ति का पता लगा कर बड़ी गंदगी को भी साफ करना है।
आज से बल्कि अभी से तुम्हारी ट्रेनिंग शुरू होती है अगर तुम लोग अच्छे से ट्रेनिंग पूरी करते हो तो तुम पूरी तरह एक सीक्रेट एजेंट बन जाओगे। जिनके नाम और पहचान हमेशा छुपी हुई रहती है लेकिन फिर भी वो देश के लिए जीते मरते है। ये एक ऐसा काम है जिसे नाम के लिए नहीं बल्कि गुमनाम रहकर सच्ची देशभक्ति के लिए किया जाता है। तुम्हारी पहचान सिर्फ कुछ लोगों तक ही सिमित होगी ज़ब जितनी जरूरत होगी तब उतने ही लोगों से तुम्हारा परिचय होगा और सिर्फ उनको ही तुम्हारे बारे में पता होगा। सीक्रेट एजेंसी से संबंधित कोई भी बात एक सीक्रेट एजेंट के सिवा तुम किसी को नहीं बता सकते। अपने घरवालों को भी नही!धीरे धीरे तुम्हें सब समझा दिया जायेगा।
मेरी नजर तुम पर हर वक़्त थी और आगे भी मेरी नजर तुम पर ही रहेगी।
..तो तुम सब तैयार हो देशभक्ति निभाने के लिए"
"यस सर।" चारों एक साथ सीधे तन कर बोले।
समाप्त
समर्पित वेद प्रकाश शर्मा सर को, मैंने उनके ज्यादातर उपन्यास पढ़े है, उनका ही एक जासूसी चरित्र है 'विजय'
उनकी तरह मैं विजय का चरित्र नहीं रख पाई हुँ और न ही कभी रख सकती हुँ लेकिन सिर्फ उनके प्रति अपनी श्रद्धा दिखाने के लिए मैंने 'विजय' नाम का एक जासूसी किरदार अपनी इस कहानी में दिखाया है। इस किरदार को मैं आगे भी अपनी कहानियो में दिखाती रहूंगी लेकिन सिर्फ जरा सा! ये वेद सर का गढ़ा हुआ चरित्र है और हमेशा उनका ही रहेगा हाँ कभी कभी मेरे जासूसी किरदारों के मार्गदर्शन के लिए विजय को अतिथि के रूप में लाया जरूर जायेगा। मेरी कहानी वेद सर के मुकाबले कुछ भी नहीं है और न ही कभी होगी फिर भी कोशिश रहेगी हमेशा कुछ बेहतर करने की।
इस कहानी को यही विराम देती हुँ, भविष्य में इस कहानी का अगला भाग लिखूँगी जिसमें होगी तारा, अशोक, दिवान और कमु की ट्रेनिंग के रोचक कारनामें और साथ ही कुछ नए कारनामें। अभी तो दिवान का ये जानना भी बाकि है कि रेवती जिन्दा है और सबसे बड़ा सच जो कमु भी नहीं जानता, तारा दिवान की बहन है। क्या तारा जानती है कि वो सुजान की बेटी है?? और बरसो पहले उसकी माँ के साथ क्या हुआ था?? फिलहाल दिवान का सच भी अभी अधूरा ही है क्या ये वहीं दिवान है?? या कोई और!!.........
ऐसे ही सवालों का जवाब होगा अगला भाग....
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