पिछला - आपने अब तक पढ़ा कमु और गंगा सिंह अतीत की तह खोल रहे है,कमु को याद आता है कि कैसे बचपन में उसने और दिवान ने साथ में एक वादा किया था और गंगा सिंह बताता है कि उसे लगा था कि सोबन सिंह मर चुका है। गंगा सिंह ने दिवान और कमु को बहुत तलाश किया लेकिन दोनों का कहीं कुछ पता नहीं चला। उधर गणेश अजीब हरकते करते हुए बिजली के खम्बे पर चढ़ गया है, सुन्दर को अशोक ने हरीश पर नजर रखने को कहा है क्योंकि उसे शक है कि इन सब के पीछे उसके किसी दुश्मन का हाथ है।
इधर गणेश बिजली के खम्बे पर तारों से छेड़छाड़ कर रहा है कि तभी अचानक बिजली आ जाती है।
अब आगे.......
"ज़ब तुम पहली बार गांव आए थे और मुझे बताया कि सोबन जिन्दा है, मुझे हैरानी हुई थी लेकिन हैरानी से भी ज्यादा ख़ुशी हुई थी।" गंगा सिंह होंठो पर मुस्कान लाते हुए बोला।
"उस बार भी मैं पापा को बताए बिना गांव आया था पापा नहीं चाहते कि मैं वापस यहाँ आऊं। " कमु आँखे बंद करते हुए बोला।
आज फिर एक बार दोनों बीती बातों की गठरी लेकर बैठे थे लेकिन आज एक इंसान और इनके साथ जुड़ गया था वो इंसान तारा थी। उसने शहर में किसी नौकरी के लिए अप्लाई किया था और अब वहीं से बुलावा आ गया था तारा को कल ही निकलना था इसलिए आज वो अपने पापा के पास ही बैठी थी। कमु ने जैसे ही पिछली बातों का जिक्र किया तारा की माँ वहाँ से उठकर सोने के लिए चली गई थी।
"तुमने बात पूरी नहीं की कल रात, तुम्हारे पापा की नजरों में मैं क्यों गुनहगार बन गया?!एक मिनट... कहीं उसे ऐसा तो नहीं लगता कि मैं उसकी मदद को जानबूझ कर नहीं आया था! उसके बाद हमारी मुलाक़ात हो नहीं पाई तो शायद उसने ये गलतफहमी पाल ली हो। " गंगा सिंह
"उस रात ज़ब आप हमारे घर से निकल आए थे, तब वहाँ आग लग गई थी!!" कमु ने गंगा सिंह की तरफ देखकर कहा।
"हाँ मैंने भी देखा था, तब तक मैं तुम्हारे घर से कुछ दूर निकल गया था।" गंगा सिंह याद करता सा बोला।
"आप जानते है, वो आग किसने लगाई थी?!" कमु ने पूछा।
"और कौन!! उन्ही चारों का किया धरा होगा ये भी!" गंगा सिंह थोड़ा नफ़रत से बोला।
"नहीं! ये उनका काम नहीं था!!" कमु शून्य में देखते हुए बोला।
"फिर?!!किसने किया??" गंगा सिंह ने हैरानी से पूछा
"मेरे पापा ने!" कमु ने खुलासा किया।
"सोबन ने!! लेकिन क्यों?? उसने ऐसा क्यों किया?!!" गंगा सिंह की आँखें फ़ैल गई थी।
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किसी पके फल की तरह वो पलक झपकते ही नीचे आ गिरा! सभी लोग सन्न रह गए। देखते ही देखते ये क्या हो गया! अशोक तो जैसे कुछ भी समझने की हालत में नहीं था। मोहन भी कुछ पल के लिए जैसे जम ही गया था। उमा की आँखे खुली थी लेकिन जैसे वो कुछ देख ही नहीं पा रही थी, उसकी आँखें स्थिर हो गई थी सामने के दृश्य पर!
कुंती एक चीख के साथ अपनी सीट से उठ गई, "नहीं...!!" की जोरदार चीख के साथ वो भी फटी हुई आँखों से गणेश का जला हुआ शरीर देख कर वहीं गिर पड़ी। लोग गणेश की ये हालत देख कर इतने सदमे में थे कि किसी का भी ध्यान दूसरी ओर था ही नहीं। कुंती बेहोश हो चुकी थी लेकिन किसी ने उसकी तरफ देखा भी नहीं सामने का दृश्य था ही इतना खौफनाक!! देखते ही देखते एक अच्छा भला इंसान कोयला हो चुका था। कुछ देर बाद जैसे लोगों की चेतना लौटी! उमा ने अपनी माँ की तरफ देखा, "माँ!!...." उमा जोर से चिल्लाई।
कुछ औरतों ने जल्दी से कुंती को उठाया और उसके चेहरे पर पानी के छींटे मारने लगे।
इधर कुछ लोगों ने मोहन और अशोक को झकझोरा!! अशोक को जैसे होश आया हो वो तुरंत गणेश की तरफ लपका उसके पीछे मोहन भी गणेश के करीब आया। गणेश के करीब आकर अशोक फूट फूट कर रोने लगा।
"मैं आपको नहीं बचा सका!मुझे माफ कर दो चाचा!!" अशोक रोते हुए बोला और अचानक!! वो उठ खड़ा हुआ! उसका रोना भी एकदम से शांत हो गया।
"नहीं!!रोकर मैं खुद को कमजोर नहीं करूँगा!!मैं पता लगा कर रहूंगा, आखिर ये सब कौन कर रहा है।" अशोक ने अपना चेहरा साफ कर लिया और मोहन को भी न रोने का इशारा किया। दोनों ने गणेश की लाश को उठा लिया कुछ और हाथ भी मदद को तुरंत आगे आए। इस वक़्त रात हो चुकी थी अंत्येष्टि कल ही हो सकती थी इसलिए इस वक़्त लाश को घर के अंदर ले जाया गया।
घटना स्थल से कुछ दूरी पर एक पेड़ के पीछे से एक काला साया इस पूरी घटना का गवाह था और अब सब के वहाँ से हटते ही वो भी पेड़ के पीछे से निकल कर दूसरी दिशा में जाने लगा।
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तारा आज सुबह जल्दी ही डॉक्टर के कमरे पर दूध लेकर पहुँच गई थी, उसने जल्दी से दूध डॉक्टर को दिया और जाने लगी।
"अरे!आज चाय नहीं पिलाओगी?!" डॉक्टर साहब बोले।
"नहीं!आज से आप को खुद ही चाय बना कर पीनी होगी!तारा कब तक आपको चाय पिलाती रहेगी?!" तारा ने मुस्करा कर कहा और जल्दी से निकल गई।
"अरे!कमाल की लड़की है!" डॉक्टर साहब जाती हुई तारा को देखते हुए बोले।
"अभी की चाय तो हम आप को बना कर दे देंगे! तारा के हाथ की चाय तो अब भूल ही जाइये!" तभी कमु न जाने कहाँ से अचानक प्रकट होकर बोला। डॉक्टर के चेहरे पर नापसंदगी के भाव आए लेकिन तुरंत ही गायब भी हो गए।
"क्यों??"
"चिड़िया फुर्र होने की तैयारी में है!" कमु गैस पर चाय चढ़ाते हुए बोला।
"मतलब?!!"
"उसकी छोड़िए! आप अपनी बताइए?!" कमु ने एक तिरछी नजर डॉक्टर पर डालते हुए पूछा।
डॉक्टर साहब के चेहरे पर प्रश्नवाचक भाव आए
"आपका काम तो हो गया!!" कमु चाय कप में डालते हुए बोला।
डॉक्टर ने एक हैरत भरी नजर कमु पर डाली और चाय की प्याली उठा ली।
"चाय! चाय पीने का काम तो हो गया! अब काम हो गया तो आपको निकलना होगा न!!" कमु बड़े ही रहस्यमयी अंदाज में चाय की चुस्की लेते हुए बोला।, "क्लिनिक!" कमु ने चुस्की लेकर कहा।
"तुम अपना ख्याल रखो! बारिश में भीगना ठीक नहीं है! तबियत बिगड सकती है!" डॉक्टर भी उसी अंदाज में बोले।
"हम तो पहाड़ो की बारिश का भरपूर मजा ले रहे है! यही तो काम है मेरा !!" कमु ने चाय की एक और चुस्की ली।
"कोई ढंग का काम कर लेते!" डॉक्टर ने खाली कप नीचे रख दिया।
"आप लोगों के बात करने का तरीका बड़ा अजीब है।" तभी तारा अंदर आती हुई बोली।
" तुम!! मतलब तुम्हें तो जाना था न?!" कमु ने हैरान होते हुए पूछा।
"कल चली जाऊंगी, आज कुछ काम रह गया है। वैसे क्या बातें हो रही थी।" तारा ने पूछा।
"कुछ खास नहीं! तुम्हारे दोस्त को समझा रहा था कि कोई ढंग का काम कर ले, इधर उधर भटकना ये कब तक होगा!" डॉक्टर साहब बोले।
"ये तो सही सलाह दी आपने, लेकिन ये माने तब! मैं आपके लिए नाश्ता बना देती हुँ!" तारा ने कमु की तरफ देखते हुए कहा।
"ठीक है। मैं क्लिनिक में हुँ। " डॉक्टर के पीछे कमु भी क्लिनिक में आ गया।
"अब मुझे मेरा काम करने दोगे! " डॉक्टर ने कमु की तरफ देखते हुए कहा।
"बिलकुल!! मैं रोकने की जुर्रत कर भी नहीं सकता मिस्टर D.S.B " कमु ने क्लिनिक का गेट खोला और बाहर निकल आया। डॉक्टर साहब गेट के पार जा चुके कमु को काफ़ी देर तक देखते रहे। डॉक्टर साहब के चेहरे के भाव समझना मुश्किल था।
अगले भाग में जारी है.......