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कुंवर नारायण के बारे में

19 सितम्बर, 1927 ई. को कुंवर नारायण का जन्म उत्तर प्रदेश के फैजाबाद ज़िले में हुआ था। कुंवर जी ने अपनी इंटर तक की शिक्षा विज्ञान वर्ग के अभ्यर्थी के रूप में प्राप्त की थी, किंतु साहित्य में रुचि होने के कारण वे आगे साहित्य के विद्यार्थी बन गये थे। उन्होंने 'लखनऊ विश्वविद्यालय' से 1951 में अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. किया। 1973 से 1979 तक वे'संगीत नाटक अकादमी' के उप-पीठाध्यक्ष भी रहे। कुंवर जी ने 1975 से 1978 तक अज्ञेय द्वारा सम्पादित मासिक पत्रिका में सम्पादक मंडल के सदस्य के रूप में भी कार्य किया। कुंवर नारायण हिन्दी के सम्मानित कवियों में गिने जाते हैं। कुंवर जी की प्रतिष्ठा और आदर हिन्दी साहित्य की भयानक गुटबाजी के परे सर्वमान्य है। उनकी ख्याति सिर्फ़ एक लेखक की तरह ही नहीं, बल्कि कला की अनेक विधाओं में गहरी रुचि रखने वाले रसिक विचारक के समान भी है। कुंवर नारायण को अपनी रचनाशीलता में इतिहास और मिथक के माध्यम से वर्तमान को देखने के लिए जाना जाता है। उनका रचना संसार इतना व्यापक एवं जटिल है कि उसको कोई एक नाम देना सम्भव नहीं है। फ़िल्म समीक्षा तथा अन्य कलाओं पर भी उनके लेख नियमित रूप से पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे हैं। आपने अनेक अन्य भाषाओं के कवियों का हिन्दी में अनुवाद किया है और उनकी स्वयं की कविताओं और कहानियों के कई अनुवाद विभिन्न भारतीय और विदेशी भाषाओं में छपे हैं। 'आत्मजयी' का 1989 में इतालवी अनुवाद रोम से प्रकाशित हो चुका है। 'युगचेतना' और 'नया प्रतीक' तथा 'छायानट' के संपादक-मण्डल में भी कुंवर नारायण रहे हैं। कुंवर नारायण को 2009 में वर्ष 2005 के 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। 6 अक्टूबर को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उन्हें देश के सबसे बड़े साहित्यिक सम्मान से सम्मानित किया। कुंवर जी को 'साहित्य अकादमी पुरस्कार', 'व्यास सम्मान', केरल का 'कुमार आशान

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कुंवर नारायण की पुस्तकें

कुंवर नारायण  जी की  प्रसिद्ध  कविताएँ

कुंवर नारायण जी की प्रसिद्ध कविताएँ

कविता का उद्देश्य सौन्दर्यभाव को जागृत करना है। जिस सौन्दर्य को हम अपने आस-पास विद्यमान होते हुए भी अनुभव नहीं कर पाते उसे कविता के माध्यम से अनुभव करने लगते हैं। क्योंकि कविता श्रोता को एक सौन्दर्य बोधक दृष्टि प्रदान करती है और वे भाव - सौन्दर्य, शब

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कुंवर नारायण  जी की  प्रसिद्ध  कविताएँ

कुंवर नारायण जी की प्रसिद्ध कविताएँ

कविता का उद्देश्य सौन्दर्यभाव को जागृत करना है। जिस सौन्दर्य को हम अपने आस-पास विद्यमान होते हुए भी अनुभव नहीं कर पाते उसे कविता के माध्यम से अनुभव करने लगते हैं। क्योंकि कविता श्रोता को एक सौन्दर्य बोधक दृष्टि प्रदान करती है और वे भाव - सौन्दर्य, शब

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कुंवर नारायण के लेख

वाजश्रवा

17 अगस्त 2022
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पिता, तुम भविष्य के अधिकारी नहीं, क्योंकि तुम ‘अपने’ हित के आगे नहीं सोच पा रहे, न अपने ‘हित’ को ही अपने सुख के आगे। तुम वर्तमान को संज्ञा देते हो, पर महत्त्व नहीं। तुम्हारे पास जो है, उसे ही बार-

पूर्वाभास

17 अगस्त 2022
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ओ मस्तक विराट, अभी नहीं मुकुट और अलंकार। अभी नहीं तिलक और राज्यभार। तेजस्वी चिन्तित ललाट। दो मुझको सदियों तपस्याओं में जी सकने की क्षमता। पाऊँ कदाचित् वह इष्ट कभी कोई अमरत्व जिसे सम्मानित करत

शब्दों का परिसर

17 अगस्त 2022
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मेरे हाथों में एक भारी-भरकम सूची-ग्रन्थ है विश्व की तमाम सुप्रसिद्ध और कुप्रसिद्ध जीवनियों का : कोष्ठक में जन्म-मृत्यु की तिथियाँ हैं। वे सब उदाहरण बन चुके हैं। कुछ नामों के साथ केवल जन्म क

अपना यह 'दूसरापन'

17 अगस्त 2022
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कल सुबह भी खिलेगा इसी सूरजमुखी खिड़की पर फूल-सा एक सूर्योदय फैलेगी घर में सुगन्ध-सी धूप चिड़ियों की चहचहाटें लाएंगी एक निमन्त्रण कि अब उठो-आओ उड़ें बस एक उड़ान भर ही दूर है हमारे पंखों का

अपने सोच को सोचता है एक 'मैं'

17 अगस्त 2022
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अपने सोच को सोचता है एक 'मैं' अपने को अनेक साक्ष्यों में वितरित कर वह एक 'लघु अहं' में सीमित बचकाना अहंकार मात्र? या एक जटिल माध्यम लाखों वर्षों में विकसित असंख्य ब्रह्माण्डों से निर्मित महाप

पुन: एक की गिनती से

17 अगस्त 2022
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कुछ इस तरह भी पढ़ी जा सकती है एक जीवन-दृष्टि- कि उसमें विनम्र अभिलाषाएं हों बर्बर महत्वाकांक्षाएं नहीं, वाणी में कवित्व हो कर्कश तर्क-वितर्क का घमासान नहीं, कल्पना में इंद्रधनुषों के रंग हों ईर

तुम्हें खोकर मैंने जाना

17 अगस्त 2022
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तुम्हें खोकर मैंने जाना हमें क्या चाहिए-कितना चाहिए क्यों चाहिए सम्पूर्ण पृथ्वी? जबकि उसका एक कोना बहुत है देह-बराबर जीवन जीने के लिए और पूरा आकाश खाली पड़ा है एक छोटे-से अहं से भरने के लिए?

उपरान्त जीवन

17 अगस्त 2022
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मृत्यु इस पृथ्वी पर जीव का अंतिम वक्तव्य नहीं है किसी अन्य मिथक में प्रवेश करती स्मृतियों अनुमानों और प्रमाणों का लेखागार हैं हमारे जीवाश्म। परलोक इसी दुनिया का मामला है। जो सब पीछे छूट जा

पिता से गले मिलते

17 अगस्त 2022
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पिता से गले मिलते आश्वस्त होता नचिकेता कि उनका संसार अभी जीवित है। उसे अच्छे लगते वे घर जिनमें एक आंगन हो वे दीवारें अच्छी लगतीं जिन पर गुदे हों किसी बच्चे की तुतलाते हस्ताक्षर, यह अनुभूति अ

वह उदय हो रहा है पुनः

17 अगस्त 2022
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वह उदय हो रहा पुनः कल जो डूबा था उसका डूबना उसके पीठ पीछे का अन्धेरा था उसके चेहरे पर लौटते जीवन का सवेरा है एक व्यतिक्रम दुहरा रहा है अपने को जैसे प्रतिदिन लौटता है नहा धो कर सवेरा, पहन

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