तुम्हें खोकर मैंने जाना
हमें क्या चाहिए-कितना चाहिए
क्यों चाहिए सम्पूर्ण पृथ्वी?
जबकि उसका एक कोना बहुत है
देह-बराबर जीवन जीने के लिए
और पूरा आकाश खाली पड़ा है
एक छोटे-से अहं से भरने के लिए?
दल और कतारें बना कर जूझते सूरमा
क्या जीतना चाहते हैं एक दूसरे को मार कर
जबकि सब कुछ जीता
हारा जा चुका है
जीवन की अंतिम सरहदों पर?