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शब्दों का परिसर

17 अगस्त 2022

11 बार देखा गया 11

मेरे हाथों में

एक भारी-भरकम सूची-ग्रन्थ है

विश्व की तमाम

सुप्रसिद्ध और कुप्रसिद्ध जीवनियों का :

कोष्ठक में जन्म-मृत्यु की तिथियाँ हैं।


वे सब उदाहरण बन चुके हैं।


कुछ नामों के साथ

केवल जन्म की तिथियाँ हैं।

उनकी अन्तिम परीक्षा

अभी बाक़ी है।


ज़ो बाक़ी है

वह कितना बाक़ी रहने के योग्य है

एक ऐसा सवाल है

जिसके सही उत्तर पर निर्भर है

केवल एक व्यक्ति की नहीं

बल्कि व्यक्तियों के पूरे समाज की

सफलता या असफलता।


पढ़ते-पढ़ते एक दिन मुझे लगा

एक ही जीवनी को बार-बार पढ़ रहा हूँ

कभी एक ही अनुभव के विभिन्न पाठ

कभी विभिन्न अनुभवों का एक ही पाठ!


अन्तिम समाधान के नाम पर

उतने ही विराम

जितने वाक्य,

और जितने वाक्य

उससे कहीं अधिक विन्यास।


शब्दों का विशाल परिसर-

मानो एक-दूसरे से लगे हुए

छोटे-छोटे अनेक गुहा-द्वार,


भीतर न जाने कितने

विविध अर्थों को

आपस मं जोड़ता हुआ

भाषाओं का मानस-परिवार।


अचानक ही घोषित होता- "समाप्त"

हम चौंक पड़ते

अमूल्य सामग्री,साज-सज्जा,

सारा किया-धरा

तितर-बितर।


विषय

और वस्तु

वही रहते।

'समाप्ति' को उलट कर

रेतघड़ी की तरह

फिर रख दिया जाता आरम्भ में :

और फिर शुरू होती

धूमधाम से

किसी नए अभियान की

उल्टी गिनती


ढिंढोरा पिटता-

इस बार बिल्कुल मौलिक!

लेकिन इस बार भी यदि

अधूरा ही छूट जाए कोई संकल्प

तो इतना विश्वास रहे

कि सही थी शुरूआत

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रचनाएँ
कुंवर नारायण जी की प्रसिद्ध कविताएँ
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कविता का उद्देश्य सौन्दर्यभाव को जागृत करना है। जिस सौन्दर्य को हम अपने आस-पास विद्यमान होते हुए भी अनुभव नहीं कर पाते उसे कविता के माध्यम से अनुभव करने लगते हैं। क्योंकि कविता श्रोता को एक सौन्दर्य बोधक दृष्टि प्रदान करती है और वे भाव - सौन्दर्य, शब्द सौन्दर्य तथा ध्वनि सौन्दर्य सभी की अनुभूति करने लगते हैं। कविता में कवि द्वारा प्रयोग किए गए इन शब्दों की पुनरावृत्ति मनुष्य को आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। कवि के अनुसार मनुष्य को संघर्षमय जीवन में स्वयं के लिए सुखों की अभिलाषा नहीं रखनी चाहिए क्योंकि विधाभोगी मनुष्य का संघर्ष शक्ति समाप्त हो जाती है। कविता के प्रमुख तत्व हैंः रस, आनन्द, अनुभूति, रमणीयता इत्यादि संवेदना से जुड़े तत्व। काव्‍य के अव्यव से हमारा तात्पर्य उन तत्त्वों से है जिनसे मिलकर कविता बनती है, अथवा कविता पढ़ते समय जिन तत्त्वों पर मुख्य रूप से हमारा ध्यान आकर्षित होता है। इस कृति की विरल विशेषता यह है कि 'अमूर्त'को एक अत्यधिक सूक्ष्म संवेदनात्मक शब्दावली देकर नई उत्साह परख जिजीविषा को वाणी दी है। जहाँ एक ओर आत्मजयी में कुँवरनारायण जी ने मृत्यु जैसे विषय का निर्वचन किया है, वहीं इसके ठीक विपरीत 'वाजश्रवा के बहाने'कृति में अपनी विधायक संवेदना के साथ जीवन के आलोक को रेखांकित किया है।
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सुबह हो रही थी

17 अगस्त 2022
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सुबह हो रही थी कि एक चमत्कार हुआ आशा की एक किरण ने किसी बच्ची की तरह कमरे में झाँका कमरा जगमगा उठा "आओ अन्दर आओ, मुझे उठाओ" शायद मेरी ख़ामोशी गूँज उठी थी।

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अंग अंग उसे लौटाया जा रहा था

17 अगस्त 2022
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अंग-अंग उसे लौटाया जा रहा था। अग्नि को जल को पृथ्वी को पवन को शून्य को। केवल एक पुस्तक बच गयी थी उन खेलों की जिन्हें वह बचपन से अब तक खेलता आया था। उस पुस्तक को रख दिया गया था ख़ाली पद

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बीमार नहीं है वह

17 अगस्त 2022
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बीमार नहीं है वह कभी-कभी बीमार-सा पड़ जाता है उनकी ख़ुशी के लिए जो सचमुच बीमार रहते हैं। किसी दिन मर भी सकता है वह उनकी खुशी के लिए जो मरे-मरे से रहते हैं। कवियों का कोई ठिकाना नहीं न जाने

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और जीवन बीत गया

17 अगस्त 2022
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इतना कुछ था दुनिया में लड़ने झगड़ने को पर ऐसा मन मिला कि ज़रा-से प्यार में डूबा रहा और जीवन बीत गया..।

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मौत ने कहा

17 अगस्त 2022
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फ़ोन की घण्टी बजी मैंने कहा — मैं नहीं हूँ और करवट बदल कर सो गया। दरवाज़े की घण्टी बजी मैंने कहा — मैं नहीं हूँ और करवट बदल कर सो गया। अलार्म की घण्टी बजी मैंने कहा — मैं नहीं हूँ और करवट

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आवाज़ें

17 अगस्त 2022
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यह आवाज़ लोहे की चट्टानों पर चुम्बक के जूते पहन कर दौड़ने की आवाज़ नहीं है यह कोलाहल और चिल्लाहटें दो सेनाओं के टकराने की आवाज़ है, यह आवाज़ चट्टानों के टूटने की भी नहीं है घुटनों के टूटने

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अलविदा श्रद्धेय!

17 अगस्त 2022
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अबकी बार लौटा तो बृहत्तर लौटूँगा चेहरे पर लगाए नोकदार मूँछें नहीं कमर में बाँधे लोहे की पूँछें नहीं जगह दूँगा साथ चल रहे लोगों को तरेर कर न देखूँगा उन्हें भूखी शेर-आँखों से अबकी बार लौटा तो

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उजास

17 अगस्त 2022
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तब तक इजिप्ट के पिरामिड नहीं बने थे जब दुनिया में पहले प्यार का जन्म हुआ तब तक आत्मा की खोज भी नहीं हुई थी, शरीर ही सब कुछ था काफ़ी बाद विचारों का जन्म हुआ मनुष्य के मष्तिष्क से अनुभवों स

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एक हरा जंगल

17 अगस्त 2022
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एक हरा जंगल धमनियों में जलता है। तुम्हारे आँचल में आग...            चाहता हूँ झपटकर अलग कर दूँ तुम्हें उन तमाम संदर्भों से जिनमें तुम बेचैन हो और राख हो जाने से पहले ही उस सारे दृश्य को बचाकर कि

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कमरे में धूप

17 अगस्त 2022
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हवा और दरवाज़ों में बहस होती रही, दीवारें सुनती रहीं। धूप चुपचाप एक कुरसी पर बैठी किरणों के ऊन का स्वेटर बुनती रही। सहसा किसी बात पर बिगड़ कर हवा ने दरवाज़े को तड़ से एक थप्पड़ जड़ दिया ! ख

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घंटी

17 अगस्त 2022
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फ़ोन की घंटी बजी मैंने कहा- मैं नहीं हूँ और करवट बदल कर सो गया दरवाज़े की घंटी बजी मैंने कहा- मैं नहीं हूँ और करवट बदल कर सो गया अलार्म की घंटी बजी मैंने कहा- मैं नहीं हूँ और करवट बदल कर सो गय

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अच्छा लगा

17 अगस्त 2022
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पार्क में बैठा रहा कुछ देर तक अच्छा लगा, पेड़ की छाया का सुख अच्छा लगा, डाल से पत्ता गिरा- पत्ते का मन, "अब चलूँ" सोचा, तो यह अच्छा लगा.

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अयोध्या, 1992

17 अगस्त 2022
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हे राम, जीवन एक कटु यथार्थ है और तुम एक महाकाव्य ! तुम्हारे बस की नहीं उस अविवेक पर विजय जिसके दस बीस नहीं अब लाखों सर - लाखों हाथ हैं, और विभीषण भी अब न जाने किसके साथ है. इससे बड़ा क्या

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कभी पाना मुझे

17 अगस्त 2022
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तुम अभी आग ही आग मैं बुझता चिराग   हवा से भी अधिक अस्थिर हाथों से पकड़ता एक किरण का स्पन्द पानी पर लिखता एक छंद बनाता एक आभा-चित्र और डूब जाता अतल में एक सीपी में बंद कभी पाना मुझे सदियो

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जिस समय में

17 अगस्त 2022
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जिस समय में सब कुछ इतनी तेजी से बदल रहा है वही समय मेरी प्रतीक्षा में न जाने कब से ठहरा हुआ है ! उसकी इस विनम्रता से काल के प्रति मेरा सम्मान-भाव कुछ अधिक गहरा हुआ है ।

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दीवारें

17 अगस्त 2022
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अब मैं एक छोटे-से घर और बहुत बड़ी दुनिया में रहता हूँ कभी मैं एक बहुत बड़े घर और छोटी-सी दुनिया में रहता था कम दीवारों से बड़ा फ़र्क पड़ता है दीवारें न हों तो दुनिया से भी बड़ा हो जाता है

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उत्केंद्रित?

17 अगस्त 2022
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मैं ज़िंदगी से भागना नहीं उससे जुड़ना चाहता हूँ।  उसे झकझोरना चाहता हूँ उसके काल्पनिक अक्ष पर ठीक उस जगह जहाँ वह सबसे अधिक बेध्य हो कविता द्वारा। उस आच्छादित शक्ति-स्त्रोत को सधे हुए प्रहारों

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जन्म-कुंडली

17 अगस्त 2022
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फूलों पर पड़े-पड़े अकसर मैंने ओस के बारे में सोचा है किरणों की नोकों से ठहराकर ज्योति-बिन्दु फूलों पर किस ज्योतिर्विद ने इस जगमग खगोल की जटिल जन्म-कुंडली बनायी है ? फिर क्यों निःश्लेष किया

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अबकी बार लौटा तो

17 अगस्त 2022
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अबकी बार लौटा तो बृहत्तर लौटूंगा चेहरे पर लगाए नोकदार मूँछें नहीं कमर में बांधें लोहे की पूँछे नहीं जगह दूंगा साथ चल रहे लोगों को तरेर कर न देखूंगा उन्हें भूखी शेर-आँखों से अबकी बार लौटा तो

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घर पहुँचना

17 अगस्त 2022
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हम सब एक सीधी ट्रेन पकड़ कर अपने अपने घर पहुँचना चाहते हम सब ट्रेनें बदलने की झंझटों से बचना चाहते हम सब चाहते एक चरम यात्रा और एक परम धाम हम सोच लेते कि यात्राएँ दुखद हैं और घर उनसे मुक्

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कविता

17 अगस्त 2022
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कविता वक्तव्य नहीं गवाह है कभी हमारे सामने कभी हमसे पहले कभी हमारे बाद कोई चाहे भी तो रोक नहीं सकता भाषा में उसका बयान जिसका पूरा मतलब है सचाई जिसका पूरी कोशिश है बेहतर इन्सान उसे कोई हड़ब

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कविता की ज़रूरत

17 अगस्त 2022
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बहुत कुछ दे सकती है कविता क्यों कि बहुत कुछ हो सकती है कविता ज़िन्दगी में अगर हम जगह दें उसे जैसे फलों को जगह देते हैं पेड़ जैसे तारों को जगह देती है रात हम बचाये रख सकते हैं उसके लिए अपने

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यक़ीनों की जल्दबाज़ी से

17 अगस्त 2022
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एक बार ख़बर उड़ी कि कविता अब कविता नहीं रही और यूँ फैली कि कविता अब नहीं रही ! यक़ीन करनेवालों ने यक़ीन कर लिया कि कविता मर गई, लेकिन शक़ करने वालों ने शक़ किया कि ऐसा हो ही नहीं सकता और इस

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उनके पश्चात्

17 अगस्त 2022
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कुछ घटता चला जाता है मुझमें उनके न रहने से जो थे मेरे साथ मैं क्या कह सकता हूँ उनके बारे में, अब कुछ भी कहना एक धीमी मौत सहना है। हे दयालु अकस्मात् ये मेरे दिन हैं ? या उनकी रात ? मैं हूँ

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दूसरी तरफ़ उसकी उपस्थिति

17 अगस्त 2022
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वहाँ वह भी था जैसे किसी सच्चे और सुहृद शब्द की हिम्मतों में बँधी हुई एक ठीक कोशिश .जब भी परिचित संदर्भों से कट कर वह अलग जा पड़ता तब वही नहीं वह सब भी सूना हो जाता जिनमें वह नहीं होता । उस

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किसी पवित्र इच्छा की घड़ी में

17 अगस्त 2022
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व्यक्ति को विकार की ही तरह पढ़ना जीवन का अशुद्ध पाठ है। वह एक नाज़ुक स्पन्द है समाज की नसों में बन्द जिसे हम किसी अच्छे विचार या पवित्र इच्छा की घड़ी में भी पढ़ सकते हैं । समाज के लक्षणों

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आँकड़ों की बीमारी

17 अगस्त 2022
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एक बार मुझे आँकड़ों की उल्टियाँ होने लगीं गिनते गिनते जब संख्या करोड़ों को पार करने लगी मैं बेहोश हो गया होश आया तो मैं अस्पताल में था खून चढ़ाया जा रहा था आँक्सीजन दी जा रही थी कि मैं चिल्ला

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घबरा कर

17 अगस्त 2022
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वह किसी उम्मीद से मेरी ओर मुड़ा था लेकिन घबरा कर वह नहीं मैं उस पर भूँक पड़ा था । ज़्यादातर कुत्ते पागल नहीं होते न ज़्यादातर जानवर हमलावर ज़्यादातर आदमी डाकू नहीं होते न ज़्यादातर जेबों में

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बात सीधी थी पर

17 अगस्त 2022
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बात सीधी थी पर एक बार भाषा के चक्कर में ज़रा टेढ़ी फँस गई । उसे पाने की कोशिश में भाषा को उलटा पलटा तोड़ा मरोड़ा घुमाया फिराया कि बात या तो बने या फिर भाषा से बाहर आये लेकिन इससे भाषा के सा

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भाषा की ध्वस्त पारिस्थितिकी में

17 अगस्त 2022
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प्लास्टिक के पेड़ नाइलॉन के फूल रबर की चिड़ियाँ टेप पर भूले बिसरे लोकगीतों की उदास लड़ियाँ एक पेड़ जब सूखता सब से पहले सूखते उसके सब से कोमल हिस्से- उसके फूल उसकी पत्तियाँ । एक भाषा ज

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गले तक धरती में

17 अगस्त 2022
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गले तक धरती में गड़े हुए भी सोच रहा हूँ कि बँधे हों हाथ और पाँव तो आकाश हो जाती है उड़ने की ताक़त जितना बचा हूँ उससे भी बचाये रख सकता हूँ यह अभिमान कि अगर नाक हूँ तो वहाँ तक हूँ जहाँ तक हवा

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शब्दों की तरफ़ से

17 अगस्त 2022
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कभी कभी शब्दों की तरफ़ से भी दुनिया को देखता हूँ । किसी भी शब्द को एक आतशी शीशे की तरह जब भी घुमाता हूँ आदमी, चीज़ों या सितारों की ओर मुझे उसके पीछे एक अर्थ दिखाई देता जो उस शब्द से कहीं बड़ा

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गुड़िया

17 अगस्त 2022
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मेले से लाया हूँ इसको छोटी सी प्‍यारी गुड़िया, बेच रही थी इसे भीड़ में बैठी नुक्‍कड़ पर बुढ़िया मोल-भव करके लया हूँ ठोक-बजाकर देख लिया, आँखें खोल मूँद सकती है वह कहती पिया-पिया। जड़ी सितार

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एक यात्रा के दौरान

17 अगस्त 2022
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सफ़र से पहले अकसर रेल-सी लम्बी एक सरसराहट मेरी रीढ़ पर रेंग जाया करती है। याद आने लगते कुछ बढ़ते फ़ासले- जैसे जनता और सरकार के बीच, जैसे उसूलों और व्यवहार के बीच, जैसे सम्पत्ति और विपत्ति के ब

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एक यात्रा के दौरान / दो

17 अगस्त 2022
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सुबह चार बजे मुझे एक ट्रेन पकड़ना है। मुझे एक यात्रा पर जाना है। मुझे काम पर जाना है। मुझे कहाँ जाना है दशरथ की पत्नियों के प्रपंच से बच कर ? मुझ तरह तरह के कामों के पीछे कहाँ कहाँ जाना है ?

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एक यात्रा के दौरान / तीन

17 अगस्त 2022
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एक गहरे विवाद में फँस गया है मेरा कर्तव्य-बोध : ट्रेन ही नहीं एक रॉकेट भी पकड़ना है मुझे अन्तरिक्ष के लिए ताकि एक डब्बे में ठसाठस भरा मेरा ग़रीब देश भी कह सके सगर्व कि देखो हम एक साधारण आदमी

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एक यात्रा के दौरान / चार

17 अगस्त 2022
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घटनाचक्र की तरह घूमते पहिये  वह भी एक नाटकीय प्रवेश होता है चलती ट्रेन पकड़ने वक़्त, जब एक पाँव छूटती ट्रेन पर और दूसरा छूटते प्लेटफ़ार्म पर होता है सरकते साँप-सी एक गति दो क़दमों के बीच की फि

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एक यात्रा के दौरान / पाँच

17 अगस्त 2022
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कभी कभी दूसरों का साथ होना मात्र हमें कृतज्ञ करता दूसरों के साथ होने मात्र के प्रति, किसी का सीट बराबर जगह दे देना भी हमें विश्वास दिलाता कि दुनिया बहुत बड़ी है, जब अटैची पर एक हल्की-सी पकड़ भी

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एक यात्रा के दौरान / छह

17 अगस्त 2022
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कुछ आवाज़ें । कोई किसी को लेने आया है । कुछ और आवाज़ें । कोई किसी को छोड़ने आया है। किसी का कुछ छूट गया है। छूटते स्टेशन पर छूटे वक़्त की हड़बड़ी में । अब एक बज रहा स्टेशन की घड़ी में । 

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एक यात्रा के दौरान / सात

17 अगस्त 2022
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क्यों किसी की सन्दूक का कोना अचानक मेरी पिण्डली में गड़ने लगा ? क्यों मेरे सिर के ठीक ऊपर टिका गिरने-गिरने को वह बिस्तर अखरने लगा ? कौन हैं वे ? क्यों मेरी चिन्ताओं का एक कोना उनसे भरने लगा ?

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एक यात्रा के दौरान / आठ

17 अगस्त 2022
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शायद मैं ऊँघ कर लुढ़क गया था एक स्वप्न में  एक प्राचीन शिलालेख के अधमिटे अक्षर पढ़ते हुए चकित हूँ कि इतना सब समय कैसे समा गया दो ही तारीख़ों के बीच कैसे अट गया एक ही पट पर एक जन्म एक विवरण ए

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एक यात्रा के दौरान / नौ

17 अगस्त 2022
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शायद उसी वक़्त मैंने गिरते देका था ट्रेन से दो पांवों की और चौंक कर उठ बैठा था । पैताने दो पांव क्यों हैं यहां ? क्या करूं इनका ? सोच रात है अभी, सुबह उतार लूँगा इन्हें अपने सामान के साथ । स

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एक यात्रा के दौरान / दस

17 अगस्त 2022
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नींद खुल गई थी शायद किसी बच्चे के रोने से या किसी माँ के परेशान होने से या किसी के अपनी जगह से उठने से या ट्रेन की गति के धीमी पड़ने से या शायद उस हड़कम्प से जो स्टेशन पास आने पर मचता है. बाह

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एक यात्रा के दौरान / ग्यारह

17 अगस्त 2022
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बाहर किसी घसीट लिखावट में लिखे गए परिचित यात्रा-वृत्तान्त के फरकराते दृश्यों को बिना पढ़े पन्नों पर पन्ने उलटती चली जाती रफ़्तार  विवरण कहीं कहीं रोचक प्लॉट अव्यवस्थित, उथले विचार, उबाऊ विस्तार !

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एक यात्रा के दौरान / बारह

17 अगस्त 2022
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यहाँ और वहाँ के बीच कहीं किसी उजाड़ जगह अनिश्चित काल के लिए खड़ी हो गई है ट्रेन । दूर तक फैली ऊबड़खाबड़ पहाड़ियाँ, जगह जगह टेसू और बबूल की झाड़ियाँ, काँस औऱ जँगली घास के झाड़झंखाड़, जहाँ तहाँ ब

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एक यात्रा के दौरान / तेरह

17 अगस्त 2022
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धीमी पड़ती चाल । अगले ठहराव पर उतर जाना है मुझे । एक सिहरन-सी दौड़ जाती नसों में । पहली बार वहाँ जा रहा हूँ । हो सकता है कोई लेने आये, या कोई नहीं केवल एक सपाट प्लटफॉर्म मिले, बर्फीली ठंढक, अ

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एक यात्रा के दौरान / चौदह

17 अगस्त 2022
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कुछ लोग मुझे लेने आये हैं । मैं उन्हें नहीं जानता  जैसे कुछ लोग मुझे छोड़ने आये थे जिन्हें मैं जानता था । ट्रेन जा चुकी है एक अस्थायी भागदौड़ और अव्यवस्था बाद प्लेटफ़ॉर्म फिर एक सन्नाटे में जम

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एक यात्रा के दौरान / पंद्रह

17 अगस्त 2022
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आश्चर्य ! वह स्त्री और बच्चा भी अकेले खड़े हैं उधर । क्या मैं कुछ कर सकता हूँ उनके लिए ? स्त्री मुझे निरीह आँखों से देखती है - “वो आते होंगे, मेरे लिए भी ....” कुछ दूर चल कर ठहर गया हूं उसक

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आदमी का चेहरा

17 अगस्त 2022
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“कुली !” पुकारते ही कोई मेरे अंदर चौंका । एक आदमी आकर खड़ा हो गया मेरे पास सामान सिर पर लादे मेरे स्वाभिमान से दस क़दम आगे बढ़ने लगा वह जो कितनी ही यात्राओं में ढ़ो चुका था मेरा सामान मैंन

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ये शब्द वही हैं

17 अगस्त 2022
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यह जगह वही है जहां कभी मैंने जन्म लिया होगा इस जन्म से पहले यह मौसम वही है जिसमें कभी मैंने प्यार किया होगा इस प्यार से पहले यह समय वही है जिसमें मैं बीत चुका हूँ कभी इस समय से पहले वही

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ये पंक्तियाँ मेरे निकट

17 अगस्त 2022
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ये पंक्तियाँ मेरे निकट आईं नहीं मैं ही गया उनके निकट उनको मनाने, ढीठ, उच्छृंखल अबाध्य इकाइयों को पास लाने  कुछ दूर उड़ते बादलों की बेसंवारी रेख, या खोते, निकलते, डूबते, तिरते गगन में पक्षियों

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एक अजीब दिन

17 अगस्त 2022
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आज सारे दिन बाहर घूमता रहा और कोई दुर्घटना नहीं हुई। आज सारे दिन लोगों से मिलता रहा और कहीं अपमानित नहीं हुआ। आज सारे दिन सच बोलता रहा और किसी ने बुरा न माना। आज सबका यकीन किया और कहीं धोखा नही

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सवेरे-सवेरे

17 अगस्त 2022
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कार्तिक की हँसमुख सुबह। नदी-तट से लौटती गंगा नहा कर सुवासित भीगी हवाएँ सदा पावन माँ सरीखी अभी जैसे मंदिरों में चढ़ाकर ख़ुशरंग फूल ठंड से सीत्कारती घर में घुसी हों, और सोते देख मुझ को जगाती हों

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यकीनों की जल्दबाज़ी से

17 अगस्त 2022
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एक बार खबर उड़ी कि कविता अब कविता नहीं रही और यूं फैली कि कविता अब नहीं रही ! यकीन करनेवालों ने यकीन कर लिया कि कविता मर गई लेकिन शक करने वालों ने शक किया कि ऐसा हो ही नहीं सकता और इस तरह बच

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उदासी के रंग

17 अगस्त 2022
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उदासी भी एक पक्का रंग है जीवन का उदासी के भी तमाम रंग होते हैं जैसे फ़क्कड़ जोगिया पतझरी भूरा फीका मटमैला आसमानी नीला वीरान हरा बर्फ़ीला सफ़ेद बुझता लाल बीमार पीला कभी-कभी धोखा होता उ

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लापता का हुलिया

17 अगस्त 2022
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रंग गेहुआं ढंग खेतिहर उसके माथे पर चोट का निशान कद पांच फुट से कम नहीं ऐसी बात करताकि उसे कोई गम नहीं। तुतलाता है। उम्र पूछो तो हजारों साल से कुछ ज्यादा बतलाता है। देखने में पागल-सा लगता-- है नह

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बाकी कविता

17 अगस्त 2022
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पत्तों पर पानी गिरने का अर्थ पानी पर पत्ते गिरने के अर्थ से भिन्न है। जीवन को पूरी तरह पाने और पूरी तरह दे जाने के बीच एक पूरा मृत्यु-चिह्न है। बाकी कविता शब्दों से नहीं लिखी जाती, पूरे अस्

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प्यार के बदले

17 अगस्त 2022
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कई दर्द थे जीवन में एक दर्द और सही, मैंने सोचा  इतना भी बे-दर्द होकर क्या जीना ! अपना लिया उसे भी अपना ही समझ कर जो दर्द अपनों ने दिया प्यार के बदल

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रोते-हँसते

17 अगस्त 2022
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जैसे बेबात हँसी आ जाती है हँसते चेहरों को देख कर जैसे अनायास आँसू आ जाते हैं रोते चेहरों को देख कर हँसी और रोने के बीच काश, कुछ ऐसा होता रिश्ता कि रोते-रोते हँसी आ जाती जैसे हँसते-हँसते आँस

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ऐतिहासिक फ़ासले

17 अगस्त 2022
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अच्छी तरह याद है तब तेरह दिन लगे थे ट्रेन से साइबेरिया के मैदानों को पार करके मास्को से बाइजिंग तक पहुँचने में। अब केवल सात दिन लगते हैं उसी फ़ासले को तय करने में  हवाई जहाज से सात घंटे भी नही

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एक चीनी कवि-मित्र

17 अगस्त 2022
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यह मेरे एक चीनी कवि-मित्र का झटपट बनाया हुआ रेखाचित्र है मुझे नहीं मालूम था कि मैं रेखांकित किया जा रहा हूँ मैं कुछ सुन रहा था कुछ देख रहा था कुछ सोच रहा था उसी समय में रेखाओं के माध्यम

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अगली यात्रा

17 अगस्त 2022
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"अभी-अभी आया हूँ दुनिया से थका-मांदा अपने हिस्से की पूरी सज़ा काट कर..." स्वर्ग की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए जिज्ञासु ने पूछा − "मेरी याचिकाओं में तो नरक से सीधे मुक्तिधाम की याचना थी, फिर बीच में यह स

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प्रस्थान के बाद

17 अगस्त 2022
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दीवार पर टंगी घड़ी कहती − "उठो अब वक़्त आ गया।" कोने में खड़ी छड़ी कहती − "चलो अब, बहुत दूर जाना है।" पैताने रखे जूते पाँव छूते "पहन लो हमें, रास्ता ऊबड़-खाबड़ है।" सन्नाटा कहता − "घबराओ म

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कोलम्बस का जहाज

17 अगस्त 2022
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बार-बार लौटता है कोलम्बस का जहाज खोज कर एक नई दुनिया, नई-नई माल-मंडियाँ, हवा में झूमते मस्तूल लहराती झंडियाँ। बाज़ारों में दूर ही से कुछ चमकता तो है  हो सकता है सोना हो सकती है पालिश हो सक

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सृजन के क्षण

17 अगस्त 2022
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रात मीठी चांदनी है, मौन की चादर तनी है, एक चेहरा ? या कटोरा सोम मेरे हाथ में दो नयन ? या नखतवाले व्‍योम मेरे हाथ में? प्रकृति कोई कामिनी है? या चमकती नागिनी है? रूप- सागर कब किसी की चाह मे

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प्यार की भाषाएँ

17 अगस्त 2022
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मैंने कई भाषाओँ में प्यार किया है पहला प्यार ममत्व की तुतलाती मातृभाषा में कुछ ही वर्ष रही वह जीवन में: दूसरा प्यार बहन की कोमल छाया में एक सेनेटोरियम की उदासी तक : फिर नासमझी की भाषा में

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मामूली ज़िन्दगी जीते हुए

17 अगस्त 2022
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जानता हूँ कि मैं दुनिया को बदल नहीं सकता, न लड़ कर उससे जीत ही सकता हूँ हाँ लड़ते-लड़ते शहीद हो सकता हूँ और उससे आगे एक शहीद का मकबरा या एक अदाकार की तरह मशहूर. लेकिन शहीद होना एक बिलकुल

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मैं कहीं और भी होता हूँ

17 अगस्त 2022
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मैं कहीं और भी होता हूँ जब कविता लिखता कुछ भी करते हुए कहीं और भी होना धीरे-धीरे मेरी आदत-सी बन चुकी है हर वक़्त बस वहीं होना जहाँ कुछ कर रहा हूँ एक तरह की कम-समझी है जो मुझे सीमित करती है

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नई किताबें

17 अगस्त 2022
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नई नई किताबें पहले तो दूर से देखती हैं मुझे शरमाती हुईं फिर संकोच छोड़ कर बैठ जाती हैं फैल कर मेरे सामने मेरी पढ़ने की मेज़ पर उनसे पहला परिचय...स्पर्श हाथ मिलाने जैसी रोमांचक एक शुरुआत.

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लिपटी परछाइयाँ

17 अगस्त 2022
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उन परछाइयों को, जो अभी अभी चाँद की रसवंत गागर से गिर चाँदनी में सनी खिड़की पर लुढ़की पड़ी थीं, किसने बटोरा? चमकीले फूलों से भरा तारों का लबालब कटोरा किसने शिशु-पलकों पर उलट दिया अभी-अभी?

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धब्बे और तसवीर

17 अगस्त 2022
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वह चित्र भी झूठा नहीं : तब प्रेम बचपन ही सही संसार ही जब खेल था, तब दर्द था सागर नहीं, लहरों बसा उद्वेल था; पर रंग वह छूटा नहीं : उस प्यार में कुंठा न थी तुम आग जिसमें भर गए, तुम वह जहाँ कटु

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नीली सतह पर

17 अगस्त 2022
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सुख की अनंग पुनरावृत्तियों में, जीवन की मोहक परिस्थितियों में, कहाँ वे सन्तोष जिन्हें आत्मा द्वारा चाहा जाता है ? शीघ्र थक जाती देह की तृप्ति में, शीघ्र जग पड़ती व्यथा की सुप्ति में, कहाँ वे प

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ओस-नहाई रात

17 अगस्त 2022
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ओस-नहाई रात गीली सकुचती आशंक, अपने अंग पर शशि-ज्योति की संदिग्ध चादर डाल, देखो आ रही है व्योमगंगा से निकल इस ओर झुरमुट में सँवरने को .... दबे पाँवों कि उसको यों अव्यवस्थित ही कहीं आँखें न मग

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अजीब वक्त है

17 अगस्त 2022
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अजीब वक्त है  बिना लड़े ही एक देश- का देश स्वीकार करता चला जाता अपनी ही तुच्छताओं के अधीनता ! कुछ तो फर्क बचता धर्मयुद्ध और कीट युद्ध में  कोई तो हार जीत के नियमों में स्वाभिमान के अर्थ को फि

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जल्दी में

17 अगस्त 2022
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प्रियजन मैं बहुत जल्दी में लिख रहा हूं क्योंकि मैं बहुत जल्दी में हूं लिखने की जिसे आप भी अगर समझने की उतनी ही बड़ी जल्दी में नहीं हैं तो जल्दी समझ नहीं पायेंगे कि मैं क्यों जल्दी में हूं ।  

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क्या वह नहीं होगा

17 अगस्त 2022
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जिसका हमें डर है ? क्या वह नहीं होगा जिसकी हमें आशा थी? क्या हम उसी तरह बिकते रहेंगे बाजारों में अपनी मूर्खताओं के गुलाम? क्या वे खरीद ले जायेंगे हमारे बच्चों को दूर देशों में अपना भविष्य

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तबादले और तबदीलियां

17 अगस्त 2022
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तबदीली का मतलब तबदीली होता है, मेरे दोस्‍त सिर्फ तबादले नहीं वैसे, मुझे ख़ुशी है कि अबकी तबादले में तुम एक बहुत बड़े अफसर में तबदील हो गए बाकी सब जिसे तबदील होना चाहिए था पुरानी दरखास्‍तें लिए

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पुनश्‍च

17 अगस्त 2022
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मैं इस्‍तीफा देता हूं व्‍यापार से परिवार से सरकार से मैं अस्‍वीकार करता हूं रिआयती दरों पर आसान किश्‍तों में अपना भुगतान मैं सीखना चाहता हूं फिर से जीना... बच्‍चों की तरह बढ़ना घुटनों के बल

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दुनिया की चिन्ता

17 अगस्त 2022
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दुनिया की चिन्ता छोटी सी दुनिया बड़े-बड़े इलाके हर इलाके के बड़े-बड़े लड़ाके हर लड़ाके की बड़ी-बड़ी बन्दूकें हर बन्दूक के बड़े-बड़े धड़ाके सबको दुनिया की चिन्ता सबसे दुनिया को चिन्ता ।

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वह उदय हो रहा है पुनः

17 अगस्त 2022
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वह उदय हो रहा पुनः कल जो डूबा था उसका डूबना उसके पीठ पीछे का अन्धेरा था उसके चेहरे पर लौटते जीवन का सवेरा है एक व्यतिक्रम दुहरा रहा है अपने को जैसे प्रतिदिन लौटता है नहा धो कर सवेरा, पहन

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पिता से गले मिलते

17 अगस्त 2022
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पिता से गले मिलते आश्वस्त होता नचिकेता कि उनका संसार अभी जीवित है। उसे अच्छे लगते वे घर जिनमें एक आंगन हो वे दीवारें अच्छी लगतीं जिन पर गुदे हों किसी बच्चे की तुतलाते हस्ताक्षर, यह अनुभूति अ

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उपरान्त जीवन

17 अगस्त 2022
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मृत्यु इस पृथ्वी पर जीव का अंतिम वक्तव्य नहीं है किसी अन्य मिथक में प्रवेश करती स्मृतियों अनुमानों और प्रमाणों का लेखागार हैं हमारे जीवाश्म। परलोक इसी दुनिया का मामला है। जो सब पीछे छूट जा

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तुम्हें खोकर मैंने जाना

17 अगस्त 2022
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तुम्हें खोकर मैंने जाना हमें क्या चाहिए-कितना चाहिए क्यों चाहिए सम्पूर्ण पृथ्वी? जबकि उसका एक कोना बहुत है देह-बराबर जीवन जीने के लिए और पूरा आकाश खाली पड़ा है एक छोटे-से अहं से भरने के लिए?

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पुन: एक की गिनती से

17 अगस्त 2022
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कुछ इस तरह भी पढ़ी जा सकती है एक जीवन-दृष्टि- कि उसमें विनम्र अभिलाषाएं हों बर्बर महत्वाकांक्षाएं नहीं, वाणी में कवित्व हो कर्कश तर्क-वितर्क का घमासान नहीं, कल्पना में इंद्रधनुषों के रंग हों ईर

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अपने सोच को सोचता है एक 'मैं'

17 अगस्त 2022
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अपने सोच को सोचता है एक 'मैं' अपने को अनेक साक्ष्यों में वितरित कर वह एक 'लघु अहं' में सीमित बचकाना अहंकार मात्र? या एक जटिल माध्यम लाखों वर्षों में विकसित असंख्य ब्रह्माण्डों से निर्मित महाप

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अपना यह 'दूसरापन'

17 अगस्त 2022
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कल सुबह भी खिलेगा इसी सूरजमुखी खिड़की पर फूल-सा एक सूर्योदय फैलेगी घर में सुगन्ध-सी धूप चिड़ियों की चहचहाटें लाएंगी एक निमन्त्रण कि अब उठो-आओ उड़ें बस एक उड़ान भर ही दूर है हमारे पंखों का

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शब्दों का परिसर

17 अगस्त 2022
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मेरे हाथों में एक भारी-भरकम सूची-ग्रन्थ है विश्व की तमाम सुप्रसिद्ध और कुप्रसिद्ध जीवनियों का : कोष्ठक में जन्म-मृत्यु की तिथियाँ हैं। वे सब उदाहरण बन चुके हैं। कुछ नामों के साथ केवल जन्म क

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पूर्वाभास

17 अगस्त 2022
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ओ मस्तक विराट, अभी नहीं मुकुट और अलंकार। अभी नहीं तिलक और राज्यभार। तेजस्वी चिन्तित ललाट। दो मुझको सदियों तपस्याओं में जी सकने की क्षमता। पाऊँ कदाचित् वह इष्ट कभी कोई अमरत्व जिसे सम्मानित करत

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वाजश्रवा

17 अगस्त 2022
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पिता, तुम भविष्य के अधिकारी नहीं, क्योंकि तुम ‘अपने’ हित के आगे नहीं सोच पा रहे, न अपने ‘हित’ को ही अपने सुख के आगे। तुम वर्तमान को संज्ञा देते हो, पर महत्त्व नहीं। तुम्हारे पास जो है, उसे ही बार-

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