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मेरे गाँव से दिल्ली जाने वाली बस में बैठा हूँ, खिड़की के बराबर वाली सीट है, मौसम कुछ ठन्डा सा ही है,बंद बस की खिडकियों से भी इक सर्द सा झोंका कभी कभी माथे को छूकर विचारों को झटका दे जाता है।