माँग का सिंदूर(2)
प्रेयर के अंत तक नवीन विदुषी की और निगाहें गड़ा कर खड़ा था।
जैसे ही प्रेयर खत्म हुई तो सब अपनी अपनी क्लास में जाने लगे।
नवीन तुरन्त विदुषी के पास गया और उसके साथ क्लास की और चलने लगा और-
"विदुषी आपको स्कूल में कैसा लग रहा है"
नवीन विदुषी से बोला । शायद विदुषी से बात करना चाहता था ।
"बहुत अच्छा ... और आपसे मुलाकात हुई तो और भी अच्छा लगा । आपका बिहेवियर बहुत अच्छा है"
विदुषी ने हल्की मुस्कान देते हुए कहा।
"अच्छा ...आपको मेरा आचरण अच्छा लगा ।
लिसिन मैं बिल्कुल भी अच्छा नही हूँ। मुझसे जरा बचकर रहना।"
नवीन ने मजाकिया मूड में हँसते हुए कहा।
"नवीन आप शायद ये नही जानते कि हम हर किसी के चेहरे को देख कर उसकी सोच जान सकते हैं।
और हमारे हिसाब से आप बहुत नाइस पर्सन हैं।"
विदुषी के ऐसा बोलते ही नवीन जोरदार हँस पडा।
"ओह! रियली ... ऐसा है तो मुझे शायद आपसे बचकर रहना होगा।" नवीन फिर मुस्कुराया।
"यस बिकॉज़ हम जादूगरनी जो हैं । सब कुछ जान सकती है । आपकी भी तो कोई खासियत होगी ना"
विदुषी इस बार मंद मंद मुस्कान बिखेरते हुए बोली।
"हे ना....आप जैसी जादूगरनी को वश में करना"नवीन ने विदुषी की निगाहों में निगाहें डाली।
"वो कैसे...."
विदुषी ने पूछा।
"वो ऐसे की देखिए हम पहली बार मिले और हम एक दूसरे के लिए अनजान हैं।फिर भी आप मुझ्से खुलकर बाते कर रहीं हैं।"
नवीन हँसा।
विदुषी कुछ बोल पाती की-
"हाय गायज ..."विजय ने विदुषी के चाँद से चेहरे पर हल्की सी नज़र डालते हुए कहा।
"हाय...नवीन व विदुषी ने एक साथ कहा।
विजय ने विदुषी पर से जैसे ही नज़र हटाई तो-
"विदुषी ये मेरे विजय भैया हैं। और ये 12वीं साइंस में हैं। और भैया ये विदुषी मेरी क्लासमेट है ।"
नवीन ने इंट्रोडक्शन करवाया।
"आपसे मिलकर बहुत खुशी हुई" विजय ने हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा ।
"हमे भी बहुत खुशी हुई आपसे मिलकर " विदुषी ने हाथ मिलाते हुए कहा।
इस तरह तीनो बातें करते हुए अपनी अपनी क्लासेज में पहुंच गए।
छुट्टी के बाद नवीन विदुषी के साथ -साथ आते हुए-
"मुझे विश्वास नही था कि मेरा स्कूल में पहला दिन इतना अच्छा होगा की आप जैसी क्लासमेट मिल जाएगी"
नवीन मन ही मन बहुत हैप्पी होते हुए बोला।
"रियली हमने तो बिल्कुल भी नही सोचा था कि हमे पहले ही दिन इतनी तारीफ सुनने को मिलेगी।इससे तो ये साबित होता है कि आपसे अच्छा दिन तो हमारा है "
विदुषी ने जोर का ठहाका लगाया।
"अच्छा वैसे आपका घर कहाँ है?"नवीन ने प्रश्न किया।
"हमारा घर प्रेम नगर में है" विदुषी ने फटाक से उत्तर दिया।
"क्या हम भी जान सकते हैं आप कहाँ रहते है?" विदुषी ने जिज्ञासा जाहिर की।
"स्योर .... मैं प्रेम नगर से आगे गणेश विहार में रहता हूँ।"नवीन ने तपाक से जवाब दिया।
इसी तरह नवीन और विदुषी अपनी अपनी स्कूल बस की ओर चल पड़ते हैं।
नवीन का दिल पहले ही दिन विदुषी से दूरी सहन नही कर पा रहा था। घर पर आने के बाद भी उसके सामने बार बार वही हसीन चेहरा आ रहा था।
विजय का भी यही हाल था वह भी उस चाँद से चेहरे
के ख्यालों में मानो पागल सा हो रहा था।
दोनो का मन बिल्कुल पढ़ाई में नही लग रहा था।
विदुषी भूले से भी भुलाई नही जा रही थी।
शाम को अचानक जब नवीन ने अपनी रिस्ट वॉच पर नज़र डाली तो-
"ओह...5 बज गए हैं । और मैं अभी भी उसी के ख्यालो में खोया हूँ।
चलो आज प्रेम नगर ही घूम आते हैं।"नवीन ने प्लान बनाते हुए खुद से ही कहा।
और नवीन प्रेम नगर की और अपनी साईकिल से चल पड़ा।
क्रमशः.........
Ravi jangid (kavi Mr Ravi)