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डा० मधु चतुर्वेदी जन्म 7th july 1951, झाँसी [उत्तर प्रदेश] शिक्षा – पी.एच.डी. भाषा विज्ञान, एम.ए. [हिन्दी, इतिहास] स्नातक [ पत्रकारिता ] मान्यता प्राप्त स्वतन्त्र पत्रकार लेखिका, पूर्व अध्यापिका वेल्हम गर्ल्स स्कूल, देहरादून, इंडोरामा इंटरनेशनल स्कूल, इंडोनेशिया, पूर्व गेस्ट फैकल्टी भाषा विज्ञान विभाग ,लोक प्रशासन विभाग, लखनऊ वि० वि०, काव्य संग्रह ‘सीधी सीधी आड़ी तिरछी कुछ ऊपर की ’[९० कविताएँ] ‘हिन्दी वांग्मय निधि’ से प्रकाशित “लखनऊ छावनी का इतिहास’, बाल काव्य संग्रह ‘कलरव’ वृहत पुस्तक’path f glory का ‘गौरव के पथ पर-हिदी अनुवाद [द्वितीय संस्करण हाल ही में प्रकाशित] तीन पुस्तकों का सम्पादन, दो पुस्तकों के सम्पादकीय मंडल में सहयोग, पाँच सौ से अधिक सामयिक लेख, व्यंग्य लेख [नियमित कॉलम] ,कविता-कहानी, विभिन्न पत्र–पत्रिकाओं हिन्दुस्तान नयी दिल्ली, जनसत्ता, दैनिक ट्रिब्यून, दैनिक जागरण, अमर उजाला, राष्ट्रीय सहारा, कुबेर टाईम्स, दून दर्पण, हिदुस्तान टाईम्स, प्रमुख पत्रिका कादम्बिनी, साहित्य भारती, युगीन, सूर्या, संस्कार, यात्रा दर्पण, अंतर्राष्ट्रीय मंच’रामचरित मंथन से प्रकाशित ‘रामायण मोती’, ‘भारत काव्य पीयूष संग्रह’में प्रकाशित, आकाशवाणी लखनऊ, गांतोक [सिक्किम] , दूरदर्शन लखनऊ, गोरखपुर से वार्ताएं, इंडोनेशिया, सिंगापुर, कोलम्बो [श्री लंका] में काव्य पाठ,व अंतर्राष्ट्रीय भाषा अधिवेशन में भागीदारी आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के बच्चों की शिक्षा में गुणवत्ता लाने के प्रोजेक्ट में सतत कार्यरतI अध्यक्ष ईवा, [Ex Servicemen` Wives Welfare Association] पूर्व महासचिव नेह्नल कौंसिल औफ़ वूमेन इन इण्डिया, सदस्य कार्यकारिणी समिति [ उ.प्र बाल कल्याण परिषद्] संयोजिका कादम्बिनी क्लब संपर्क ---madhuchaturvedi1@gmail.com

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सास का बेटा

सास का बेटा

कहानी संग्रह सास का बेटा, 15 कहानियों का संग्रह है। जीवन की आपाधापी, तो कुछ जीवन के कडुवे सच की कहानियाँ हैं। कहीं हौसले की उड़ान तो कहीं रोजी-रोटी के लिए महानगरों में बसी आबादी की घर वापसी की आस, खोये हुए गुफ्रान की घर की तलाश, रिश्तों के मनोविज्ञान,

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सास का बेटा

सास का बेटा

कहानी संग्रह सास का बेटा, 15 कहानियों का संग्रह है। जीवन की आपाधापी, तो कुछ जीवन के कडुवे सच की कहानियाँ हैं। कहीं हौसले की उड़ान तो कहीं रोजी-रोटी के लिए महानगरों में बसी आबादी की घर वापसी की आस, खोये हुए गुफ्रान की घर की तलाश, रिश्तों के मनोविज्ञान,

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अपने को तलाशती जिन्दगी

14 अक्टूबर 2022
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ट्रेन की रफ्तार धीमी होनी शुरू होते ही अन्दर यात्रियों की हलचल तेज होने लगी थीI एक अजब सी धक्का मुक्की होती ही हैI सभी को उतरना है, ट्रेन में कितनी भी देर बैठ लें, लेकिन स्टेशन आने पर धैर्य से उतरने

विवशता न समझे ममता

14 अक्टूबर 2022
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शीना–टीना स्कूल जा चुकी थींI दो कप चाय बनाकर तसल्ली से चाय पीना और चाय के साथ अखबार पढ़ना एक दिनचर्या थी सौमिक और हम बाहर आकर लॉन में बैठ गए थेI सौमिक पहले अंग्रेजी का अखबार पढ़ते हैं, हम हिन्दी का ,

छूटे हुए छोर

14 अक्टूबर 2022
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मीनल सड़क के इस पार कार में अकेली बैठी है और उस पार शवदाह गृह में मयंक और मयूरी हमेशा के लिए राख हो जाएंगे I कैसा विचित्र–अद्दभुत संयोग है मयूरी–मयंक आज उस कहावत [विज्ञापन की यू.एस.पी. ] को ‘जीवन के सा

इस ब्याही से कुँआरी भली थी

14 अक्टूबर 2022
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दीदी शादी के बाद पहली बार घर आ गई थीI औरों का नहीं मालूम, मैं सबसे ज्यादा खुश थीIदीदी के गले में बाँह डालकर लटक गई “ आप अब कितने दिन बाद जाओगी?” दीदी ने कुछ जबाब नहीं दिया, मुझे लगा मैंने कुछ गलत बोल

अभिशप्त नंबर तेरह

14 अक्टूबर 2022
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आज उसका वार्ड बदला जा रहा थाI स्ट्रेचर पे लेट हुए रोगी की विवशता भी कितनी असाध्य होती हैI जिसकी जिन्दगी पिछले पाँच माह से एक पलंग के आसपास सीमित हैI उसे क्या फर्क पड़ता है कि वो किस वार्ड में शिफ्ट

अधूरे पूरे नाम

14 अक्टूबर 2022
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कभी–कभी सर्दी के मौसम में मनचाही धूप भी कितनी बोझिल हो जाती है! कैसा विरोधाभास है, चाहय वस्तु ग्राह्य नही हो पातीI बोझ भरे नौकरी के दायित्व के लिए कितनी बार ऐसे हॉलि डे ब्रेक को चाहा था, लेकिन आज जब

रिश्तों के गणित

14 अक्टूबर 2022
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‘ मुझे छोड़ दो, मुझे जाने दो मुझे विवेक के साथ जाने दो ! सुमेध ! तुम्हारा तो विवेक ने कुछ नहीं बिगाड़ा था, तुम तो हम लोगों को इतना प्यार करते हो? तुम क्यों विवेक के पास जाने से रोक रहे हो? मुझे---------

अनब्याहा वैधव्य

14 अक्टूबर 2022
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जमीन पर बिछी सफ़ेद चादर पर शान्त, निर्जीव सोया बुआ का शरीर हिम शिला सा लग रहा था मानों गंगा की प्रस्तर मूर्ति मंदिर में प्रतिष्ठित कर रखी थीI चारो ओर अगरबत्तियाँ जल रहीं थींI. सन से सफेद बाल, सफ़ेद मर्

पहला जूता

14 अक्टूबर 2022
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बाटा की दूकान में अन्दर घुसते ही, हैरानी में सात साल के सुल्लू की गोल–गोल आँखें और गोल हो रहीं थी, ” इतने सारे जूते! चप्पल ही चप्पल! बाप रे बाप! मैडम ! कितने जूते-चप्पल हैं इस दूकान में, हमने तो अपनी

पगार की बेटी

14 अक्टूबर 2022
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ललिता हमें बंगलौर में मिली थी। डायमंड डिस्ट्रिक्ट सोसायटी में बेटी रचना के पास गई थी। मेट्रो सिटी की ये सोसायटी अपने आप में एक पूरा शहर होती हैं। दो हजार फ्लैट, आठ ब्लॉक, २५ से ३० मंजिलें, हर मंजिल

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