मीनल सड़क के इस पार कार में अकेली बैठी है और उस पार शवदाह गृह में मयंक और मयूरी हमेशा के लिए राख हो जाएंगे I कैसा विचित्र–अद्दभुत संयोग है मयूरी–मयंक आज उस कहावत [विज्ञापन की यू.एस.पी. ] को ‘जीवन के साथ भी और जीवन के बाद भी ‘ सच साबित कर रहे हैंI दोनों साथ-साथ हैंI दोनों साथ हैं पर एकदम बिलकुल अकेले हैंI अपने अपने पी=पी किट के कफ़न में सील कोई उनके पास नहीं हैI आज के प्रोटोकोल में कोई उनके पास नहीं जा सकता, इस महामारी पर रोज जोक-चुटकले भेजने वाला, मसखरी से हंसाने वाला खुद ऐसा मजाक कर जाएगाI आज ऐसे रुलाकर चला जाएगाI
मयूरी के कोरोना की खबर पर हम सब परेशान थे, हैरान भी थे, मयंक ,मयूरी को कोरोना से जुड़ी सावधानियों को बरतने वाली ब्रैंड अम्बेसडर कहा करता थाI इसलिए वो बहुत आशावादी था कि बस ठीक हो जायेगी, लेकिन जब वो खुद भी उसकी चपेट में आ गया तो हम सब स्तब्ध थेI दोनों अस्पताल में भी साथ–साथ थेI वो भी एक तसल्ली थीI मंजरी से जब फोन पर बात करो तो मजाक करती, हमें ब्रैंड अम्बेसडर कहकर मजाक करते थे, यहाँ ‘ हैल्पिंग–मॉरल बुस्टिंग मिशन’ के चेयरमैन कहकर लोग मजाक करते हैं, जिसको देखो, उस मरीज के साथ आगे बढ़कर चल देते हैंI लोग मना करेंगे तो कहेंगे, हमें कुछ हुआ थोड़ी है, हम तो झूठी रिपोर्ट बनाकर पत्नी को कंपनी देने के लिए भर्ती हुए हैंI सब हँसते हैं इसकी बातों परI
शरीर और मन से इतने मजबूत मयंक को कोरोना ने मयूरी से भी कम समय दियाI मयंक के पैरामीटर तेजी से बिगड़ रहे थे, मयूरी से बात होती रहतीI मयूरी अपने आप की तकलीफ से कम, मयंक को ऑक्सीजन सपोर्ट पर देखकर ज्यादा टूट रही थीI प्रोटोकोल में पास भी नहीं जा सकते, बस दूर से देखते रहते हैं, बहुत सारे लोग ठीक भी हो रहे हैं, मयूर-मयंक ठीक नहीं होंगे, ये कैसे भी कोई सोच सकता हैI मयूरी की बिगडती हालत के बाद तो सिर्फ डाक्टरों से मिलती ख़बरों का ही आसरा रह गया थाI मयूरी तो शायद कोरोना से नहीं सदमे से चली गईI
दोनों शायद इस अनहोनी से बेखबर हैंI दोनों अलग होकर भी इतने पास-पास हैं, उन्हें इसकी भी खबर है कि नहींI
शमशान घाट पर, बाहर उन लोगों से दूर, बेबस अकेले कार में, सब कुछ ख़त्म होने के दृश्य के मूक साक्षी बने बैठे हैंI प्रेम की कहानी इस अंत के लिए शुरू हुई थी, मन कैसे मान लेI
कितनी बातें याद आ रहीं हैं, सब जानते थे मयूरी अकेले होने से कितना डरती थीI श्याम जीजाजी की अंत्येष्टि से लौटकर आने के बाद ,सब लोग नहाकर बैठे आम बातें किस्से कर रहे थेI मयूरी एकाएक बोली, शमशान कितनी खराब जगह है, हमें शमशान से बहुत डर लगता है, उसका इतना कहते ही सब लोग हँस पड़े, अरे, शमशान अच्छा किसे लगता हैI मयूरी मजाक से निर्लिप्त बोली, मयंक ! हम मरेंगे तो हमको शमशान में अकेले मत छोड़नाI I सब लोग फिर हँस पड़ेI मयंक, जैसी उसकी आदत थी, उसे आलिंगन भरते हुए बोले, बिलकुल नहीं, पूरी रात वहाँ बैठे रहेंगे, राख को हाथ में मसल-मसल कर देखते रहेंगे, जब तक राख ठंडी नहीं हो जायेगी, वहाँ से नहीं हटेंगेI रात भर तुम्हारे साथ बैठ कर दारू पियेंगेI
सोच भी सकते थे कि उस पल का वह मजाक इतना भयानक होकर आज अपनी हकीकत के साथ यूँ खडा हो जाएगाI दोनों इतनी जल्दी चले भी गएI सच में मयंक ने उसे अकेले नहीं छोड़ाI दोनों साथ-साथ हैं, ऐसा भी होता हैI
कितना मसखरापन इसकी फिदरत में था I पहली बार शादी के बाद हम लोगों के पास घूमने दोनों आये थेI अपनी कार से ड्राइव करके पहुंचे थे I पति मुनाल गेम के लिए जाने को तैयार ही थे, अभी बस सामन उतरा भर था, लेकिन मयंक तो मयंक थे, मुनाल के साथ जाने को तैयार, अरे रुको! हम भी एक चक्कर लगा कर आते हैं तुम्हारी छावनी का, और हम कुछ बोल पाते की इतनी लम्बी ड्राइव करके अभी पहुंचे हो, थोडा फ्रेश तो हो लो, साले के आज्ञाकारी बहनोई उनको साथ में बिठाकर गाडी में निकल गएI
मयूरी जब तक फ्रेश हुई, तब तक चाय भी बन गई, वो दोनों लौट कर भी आ गएI ‘ देखिये, साले साहब क्या शौपिंग करके आये हैं’ ‘ शौपिंग?? यहाँ ??? ‘ ‘ जरा डिकी खोलिए तो’ ‘क्या हुआ डिकी में’ डिकी खुली तो मुँह खुला रह गया, डिकी भर के अचार की बोतलें! ‘ इतना गंदा नमक भरा अचार होता है, हम लोग कोई खाते भी नहीं हैं, क्यों खरीदी हैं इतनी बोतलें...पागल हो ...’ मीनल झुंझला रही थीI ‘ तुमने सिर्फ पति देखा है! हमारे जैसा प्यार करने वाला पति नहीं! अभी देखो वापस जाकर सारी बोतलें इमरतबान में उलटवाऊँगाI सास कितनी खुश होंगी इतनी होशियार बहू और तुम्हारी सहेली मयूरी को देखकर, इतनी जल्दी इसने अचार भी बना लिया! सुघड़ गृहणी ! इसे सास से अभी मुँह दिखाई में भारी वाली हंसली झपटना है न I ‘क्या बताएँ मीनल ! सास ने हमसे कहा था, तुम्हारी बहिन की नजर उस पर है, अब हँसली तो बीबी को दिलाना ही है ‘ ‘ क्या सास-सास लगा रखी है, कुछ भी बोलता है, पागल है एकदम ड्रामेबाज ! मयूरी तुम इसे सुना मत करो ! ‘ मयूरी बैठी–बैठी मुस्करा रही थी I
उसके मजाक कहाँ से कहाँ पहुँचते थे, और आज हमें मजाक बना कर चला गया I
कभी–कभी हमें मयंक और मुनाल के रिश्ते पर नजर उतारने का मन करताI चेतन और अवचेतन में भी एक ने कुछ सोचा तो दूसरा उसे अंजाम तक ले जाएगाI उसे मुनाल पर कितना गुस्सा आया था मयंक का घोड़े का शौक पूरा करने के लिएI ‘ घोड़ा पालने का मतलब समझते हो? मयंक पर तो ऐसे फितूर हमेशा ही रहते हैं, तुम क्यों और हवा देते हो? ‘ ‘अरे वाह ! चित भी मेरी पट भी मेरी, करो तो डांट बहिन की खाओ और न करो तो भाई की, मैंने तो बस सेना की नीलामी से खरीदवाया है, शौक तो उसका हैI साला है कोई मजाक है!’
एक-एक बात इस लवबर्ड जोड़े की याद आ रही थी, सु बह के पाँच बजे थेI मीनल बाली में बोर्डिंग स्कूल में टीचर थीI गुरुकुल के आश्रम जैसी जिन्दगी में घड़ी की सुइयाँ अपने आप बदल जाती हैं ..वो कमरे का ताला लगाकर बस सीढियां उतर ही रही थी, आने के बाद यह उसकी दिनचर्या थी, सुबह चार बजे उठना, उठने के लिए अलार्म की जरूरत उसे कभी नहीं पड़ी, मजाल है जो न उठ पाने का मलाल कभी हुआ हो, वो बात अलग है की मूड और आलस में कभी घूमने को टाल दिया जाए, और दोबारा अपने को नींद की बाँहों में डाल दिया हो, मयंक और मुनाल मजाक बनाते थे चार बजे की सुई तब तक आगे नहीं बढ़ेगी, जब तक मीनल को उठा नहीं लिया होता, कभी नाटकीय होकर कहता ‘ सुबह के धुंधलके में, जब तारे अभी अस्ताचल को प्रस्थान कर रहे हों, आकाश सितारे जडित यामिनी को अपने में लपेटे अलसा ही रहे हों, रात अलसायी है अपनी मदहोशी में, हम अपनी दारु की मदहोशी में हैं, मेरी बहिन की भोर बेताब है धरती पर छा जाने को, भोर की रश्मियाँ भी डरकर देर किये बिना बेचारी दस्तक देने आ ही पहुँचती हैं I
लेकिन ये सच था, शान्त नीरव उन पलों को हर दिन आँखों में पीने का लोभ पागलपन की हद तक मीनल को बिस्तर पर टिकने ही नहीं देता था .....हाँ तो ताला बंद करके बाहर निकली, क्यारी से तुलसी के पत्ते तोड़ कर मुँह में रख ही रही थी, सारी क्रियाएँ एक ही क्रम का हिस्सा थीं i कमरे के बाहर तुलसी के झाड़ थे, तो तुलसी के पत्ते मुँह में रखकर तेज चाल से सुबह का टहलना दिनचर्या थी I
......लेकिन कमरे से फोन की घण्टी बजती सुनाई दी ..विदेश की इस जमीन पर इतने सुबह कौन फोन कर सकता है ?...इतना अपना है कौन ? गुरु गेस्ट हॉउस के सारे अध्यापक साथी तो साथ ही रहते हैं, वे फोन क्यों करेंगे? हो सकता हो कोई इमरजेंसी ही हो ..इंडिया से घर से भी ही हो सकता है, ..लेकिन वहाँ तो अभी रात के तीन बज रहे हैं, बिना इमरजेन्सी के इस समय कोई क्यों फोन करेगा ? एक सेकेण्ड में संभावित समस्त दुर्घटनाओं की आशंका ने धड़कन को सौ गुना की रफ्तार दे दी ....हडबडाते हुए ताला खोला, दौड़ कर फोन उठाया, मयंक का फोन था ‘ क्या हुआ? क्या हो गया? दस प्रश्न कर डाले, मयंक था तो सामान्य पर कुछ घबरा गया, ...क्या तुम सोई हुई हो? तुम आज टहलने के लिए नहीं निकल रहीं थीं? मीनल की बेताबी और बढ़ गई थी, क्या मजाक है ..हमारा घूमने का टाइम है,लेकिन तुम तीन बजे क्यों जग रहे हो ? तुम तीन बजे फोन क्यों कर रहे हो ..बताते क्यों नहीं क्या हुआ है? पीछे से जोर से हँसने की कई आवाजें एकसाथ थीं, गुड मार्निंग! ...गुड मार्निंग ! हमारा गैस कितना सही निकला, कितनी अच्छी तरह जानते हैं बहिन को, हमने मुनाल से कहा था, मीनल का तो वहाँ मार्निंग वाक् का टाइम है, अब उसे गुडमार्निंग करके सोने जाना , बस यहाँ अब रात शुरू होने जा रही है, गुड नाईट !
उस घबराहट में भी मीनल को हँसी आ गयी, ये भाई ही कर सकता है I
किसी दुर्घटना की संभावना मात्र से जो मीनल उस दिन अन्दर तक सूख गई थी ,आज इतनी बड़ी अनहोनी पर ऐसे–कैसे मूक दर्शक बनी सब देख रही हैI सब कुछ अपने सामने ख़त्म होते देख रही है I
बहुत कुछ रोज पढ़ रहे थे, सुन रहे थे, सीख रहे थे कि कोरोना महामारी है, लेकिन ऐसे मारकर चली जायेगी, अन्दर से कलेजा निकाल कर ले जायेगी, दिल को ये कैसे समझा लें I
मीनल सोच रही है, काश मैं इस वर्तमान को जिन्दगी से डिलीट करके बस अतीत के उन छूटे हुए छोरों के सहारे जी सकूँ I
विवशता न समझे ममता