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अभिशप्त नंबर तेरह

14 अक्टूबर 2022

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आज उसका वार्ड बदला जा रहा थाI स्ट्रेचर पे लेट हुए रोगी की विवशता भी कितनी असाध्य होती हैI जिसकी जिन्दगी पिछले पाँच माह से एक पलंग के आसपास सीमित हैI उसे क्या फर्क पड़ता है कि वो किस वार्ड में शिफ्ट हो रहा है ,लेकिन स्ट्रेचर पर लेटा वो मरीज बार–बार प्रश्न कर रहा था की वार्ड का नंबर कौन सा है? यूसूफ को लेने के लिए मै उसके वार्ड की तरफ जा रहा थाI मैंने कोई जबाब नहीं दिया, क्या जबाब देता, मुझे कुछ समझ ही नहीं आयाI बरामदे से होता हुआ मैं सीधे यूसूफ के कमरे में पहुँचाI हम दोनों को सेकेण्ड शो में सिनेमा देखने का कार्यक्रम थाI सिनेमा के बाद ज्ञान वैष्णव में डिनर लेंगे और रात को युसूफ के पास ही सो जायेंगेI एक माह से काम के दबाब में इस कदर थका दिया था कि में बस बाहर जाना चाहता थाI युसूफ अभी वार्ड में लौटा नहीं थाI ओ.टी. में था उसका एक आपरेशन लगा हुआ थाI मै टहलते हुए बाहर आ गयाI वहीं प्रतीक्षा करने की बजाय समय पास करने के लिए टहलते हुए थोड़ा आगे कोरिडोर से निकल कर ओ.टी. की ओर ही बढ़ गयाI वार्ड के आगे से गुजर रहा थाI वार्ड की नंबर प्लेट उलटी हो रखी थी, तो उसे सीधा कर दीI अभी खड़ा ही था कि ,दौडती–हाँफती सी महिला आकर मेरे सामने खड़ी हो गयी, प्लीज ! रहने दीजिये ! रहने दीजिये ! इसे ऐसे ही पलटी रहने दीजिये, अगर इनको पता चल गया की वे इस नंबर के वार्ड में आ गए हैं, तो वे एक घंटे भी न जी सकेंगे ....भगवान के लिए इसे ऐसे ही रहने दीजियेI मैं भौंचक्का रह गयाI कुछ समझ नहीं आयाI मैंने तो उसे ऐसे ही पलट दिया थाI क्या मुसीबत में फंस गए, डा० यूसूफ आ जाए ,पीछा छूटताI उस रोगीके घर के सभी लोगों की आँखों की उदासी से ऐसा लग रहा था रोगी की बीमारी पुरानी है और शायद लाइलाज भीI वे सब निर्विकार भाव से मानों उस आने वाले कल को देखने के लिए ,सहने के लिए समझने और समझाने के लिए एकत्र हुए हैं ,जरूरी था इस आयोजन के लिए अपने को तैयार कर लें .
मै कमरे में वापस आ गया, अपसेट हो रखा था, घटना ज़हन से हट नहीं रही थी I यूसूफ कैसे इस असामान्य माहौल में हर समय सामान्य रहते हैं ..यूसूफ आये ,सारी यार! देर हो गयी, बस दो मिनट दो मैं चेंज करके आता हूँ, आपरेशन तो ख़त्म हो गया थाI सीरियस मरीज तो रहते ही हैं, पता नहीं कल की सुबह भी देखेंगे की नहीI आमतौर से सीरियस मरीजों के डैथ सार्टिफिकेट हम लोग तैयार करके, हस्ताक्षर भी करके रात को फ़ाइल में लगार चले जाते हैं, जिससे रात को बिना बात के सबको इधर–उधर चक्कर न लगाना पड़े, जिनकी डैथ हो गई ठीक है ,बाकी सुबह जाकर फाड़ देते हैंI और बताओ ! मोना कैसी है?आई क्यों नहीं? “ अरे में अकेला हूँ, वो मंसूरी गई है, उसकी बहन रोमा अमेरिका से आयी हुई है ,किंजल की भी छुट्टियाँ थीं, दोनों को भेज दिया, एक माह साथ रह लेंगी .” “अरे! तुम्हारी भी तो सारी छुट्टियां पडीं हैं, तुम क्यों नहीं चले गए, साथ घूम आते, तुम्हारा तो घर भी है, चाचाजी–चाची भी खुश हो जाते, यूसूफ बोले “. “अमां यार तुम भी क्या चीज़ हो, मियाँ-बीबी को साथ ही रहना था तो फिर यहीं क्या बुरे थेI अरे! समझते नहीं हो, एक महीने के लिए ही तो मोना को भेजा है, वो वहाँ चैन से रहे, हम भी ठीक ही हैं, अगले महीने हम एक माह को चले जायेंगे, दोनों के दो महीने अमन से गुजर जायेंगे की नहीं ? अमां यार चीर–फाड़ के अलावा भी जिन्दगी को समझने की कोशिश करोI सफल वैवाहिक जीवन के कुछ नुस्खे सीखोI इस चक्रव्यूह में जाना सबको आता है निकलना नहीं आताI पति–पत्नी के आपसी तालमेल इन्हीं समझदारियों पर होते हैं” मैंने कहाI
‘क्या बात है, बस इस बात पर तो अभी गर्मागर्म चाय पिलाता हूँ,’ यूसूफ बोले, ‘ ‘तुम फ़ौरन उठो, बाहर निकलो और ताला बन्द करो, गनीमत है, मै पागल नहीं हो गया, कुछ देर और न आते तो हमारी इमरजेंसी अटैंड कर रहे होतेI काम ठीक है, इस माहौल में रहते कैसे हो?’ यूसूफ समझ गए, “ अरे बाबा ठीक है ,चलो “
देर रात लौटे, शाम की गमगीनी लुप्त हो चुकी थीI मैं गेट पर ही उतर गयाI यूसुफ गाड़ी रखने गैराज की तरफ चले गएI मै शाट-कट लेने के विचार से अस्पताल के भीतर की लेन से निकल कर यूसूफ के फ़्लैट की ओर चल दियाI
रात का नीरव सन्नाटा था, काले बादलों पर चमकते हुए तारे, गगनचुम्बी पेड़ों की कतारें, शान्त - निश्छल पत्ते, वैसे भी रात की भयावहता को और बड़ा रहे थे मैं सोच रहा था , रात्री का यह् विस्तृत आवरण सारी सृष्टि को अपने में समेंट लेता है, और सृष्टि भी दिन के सारे कोलाहल को भूल कर, अजान शिशु की भांति बिना किसी न नुकुर के लिपट जाती हैI किसका सबेरा होता है या कौन इस अँधेरे में चिर विलीन हो जाता है, आज तक किसने इस रहस्य को समझा है! कितने परिचित–अपरिचित चेहरे हर रोज इस मिट्टी में समा जाते हैं, इसका लेखा–जोखा उस खुदा के सिवाय दूसरा कौन रख पाया हैI
मै अपनी धुन में बड़ा जा रहा था, कि उधर से स्ट्रेचर पर मृत शरीर को रखे हुए ,अनजाने–अपरिचित अनेक चेहरे, कुछ मासूम आँखें, फड़फाड़ाते ओठ, चुपचाप स्ट्रेचर के साथ चले जा रहे थेI एकाएक मैं हतप्रभ रह गया, जीवन दर्शन के सारे तार, तार–तार हो गए ...बौखला सा गया, फिर अपने को संभाला “अरे ऐसा तो अस्पताल में यहाँ रोज ही होता होगाI मेरा कौन सा परिचित यहाँ बैठा हैI ........आगे बढ तो गया....कान फिर पीछे ही जा रहे थे ....ये तो वही स्वर था “ डाक्टर साहब! में आपसे बराबर कह रही थी, इनका कमरा आज तेरह तारीख को मत बदलो, आज रहने दो आप नहीं माने, इन्हें तेरह नंबर का कमरा मत दो, आज ही तेरह नंबर में शिफ्ट कर दिया, डाक्टर इन्हें बारह ग्लूकोज़ की बोतलें चढ गयीं थीं, मैंने आपसे कहा था, इन्हें तेरहवीं बोतल मत चढ़ओ, इन्हें मेरे बच्चों के भाग्य पर छोड़ दो, आपने मेरी नहीं सुनी, तेरहवीं बोतल ने इनकी जान ले लीI डाक्टर चुप खड़े थे, इन वहम और आस्था के कोई जबाब उनके पास नहीं थेI
मै चुपचाप उस वार्ड की और गया, वहाँ का चौकीदार बिलख–बिलख कर रो रहा था ,मैंने आज उनकी जान ले ली, भगवान मुझे कही माफ़ नहीं करेगा, स्साला जमादार सफाई नहीं कर रहा था, बस मै तो गुस्से में उस पर चिल्लाया की तेरी शिकायत करूँगा, कंपलेन पर हस्ताक्षर कर! ‘मैंने तेरह नंबर वार्ड की सफाई नहीं की’ और जब तक मैं उनके कमरे में पहुँचा, उनकी हालत बिगड़ गयी थी, उन्होंने वार्ड का नंबर सुन लिया था, उनकी आँखों में झर–झर आँसू बह रहे थे, बाई साहब उनको बराबर समझा रहीं थीं लेकिन उनकी मूक और बेबस आँखें बस मुझे ही दोषी बता रहीं थींI उन्होंने उसके बाद कुछ भी नहीं लियाI कैसा देवता था खुद तो दो चम्मच खिचडी खाते थे, स्सारी क्रीम-दूध-फल चुपचाप मेरे बच्चे के लिए दे देते थेI इतनी तकलीफ़, लेकिन कभी उफ़ नहीं निकालीI
मैं क्या बोलता, चुपचाप वहीं से यूसूफ के फ़्लैट की और चल दियाI मूड फिर अपसेट हो गया थाI मैं तो इत्तफाकन ही वहाँ पहुँच गया था, लेकिन घटना जहन में बस गई थीI फ़्लैट का त्ताला खोला, यूसुफ की वार्डरॉब से लुंगी–कुरता निकाला और बिस्तर में लेट गयाI युसूफ भी तब तक कमरे में पहुँच गए, बोले “अरे वाह !बड़े स्मार्ट हो, कपड़े बदल कर सोने की तैयारी भी कर लीI ‘डाक्टर हैं या रंगमंच के कलाकार, ये रोज की घटना से ऐसे ही असम्पृक्त रहते हैं, या होने का स्वांग रचते हैंI‘ युसूफ हमें भापने की कोशिश कर रहे थे, ” अरे!तुम्हें क्या हो गया? सर दर्द है तो गोली खा लो, भाभी की याद आ रही है तो केबिल कर दो, वहाँ जाने का मन कर रहा हो तो रिजर्वेशन करा दें,” यूसूफ बोलते हुए बात बाथरूम में चले गए, उसके पीछे–पीछे दो यंग डाक्टर अन्दर आये, उन लोगों की आवाज सुनकर बाथरूम से ही बोले, ‘ज़रा काफी के लिए हीटर पर पानी चढाओ, मैं अभी आया, दो लोटे पानी डाल कर.’ यूसूफ बड़ा पाउडर–वाऊडर लगाकर बाहर निकलेI डाक्टर बोला, सारी सर ! इस समय आपको डिस्टर्ब करना पड़ा, केवल वार्ड नंबर तेरह के डैथ सार्टिफिकेट पर आप हस्ताक्षर करना भूल गए थे और आज उन्हीं की डैथ हो गयीI तब तक दूसरा डाक्टर काफी बनाकर ले आया था काफी रखी थी, चुप्पी तोड़ते हुए दूसरा हॉउस सर्जन बोला, सर ! मैंने ऐसा रोगी कभी नहीं देखा, कितना हैल्प फुल नेचर था, खुद अपनी बीमारी से बिलकुल असहाय थे लेकिन कोई भी हाउस सर्जन कभी भी उनकी केस स्टडी के लिए पहुँच जाता, एक दम उठ कर बैठ जाते, कभी नहीं झुंझलातेI प्रभाव वाला कोई और रोगी तो हॉउस सर्जन को अपने पास भी नहीं फटकने देते, दूसरा हॉउस सर्जन बोला, अधिकतर यही होता है की हम लोगों को स्टडी के लिए बेचारे गरीब, अनपढ़ मरीज मिलते हैं, जो कुछ भी तथ्य पूर्ण बता ही नहीं पाते, लेकिन वो बड़ी ख़ुशी और उत्साह से ब्यौरेवार अपनी बीमारी की हिस्ट्री विस्तार से बताते, हँसते भी थे, कहते, हम बचें न बचें, लेकिन हमारी बीमारी से तुम लोग बीमारी का इलाज खोज पाए तो हमें कितना सकून मिलेगा, इसका तुम अंदाज़ भी नहीं लगा सकतेI यूसुफ ने चुपचाप कलम उठायी ,डैथ सर्टिफिकेट हाउस सर्जन से लिया, बोले बस एक यही मरीज था जिसका डैथ सर्टिफिकेट मैं एक बार भी छोड़ कर नहीं आ पाया ..डैथ सार्टिफिकेट पर हस्ताक्षर करते हुए, मैं गौर से देख रहा था उनकी आँखों के कोर से आँसू आ गए थे, जिसे बड़ी तत्परता से उसने पोंछ दिया और चुपचाप बिस्तर पर जाकर लेट गएI
ओह! ये वही मरीज था, जिन्हें आज तेरह नंबर के वार्ड में शिफ्ट किया गया था .तेरह ग्लूकोज़ की बोतल उनके लग चुकी थीं ओह ! वो बीमारी या इलाज नहीं बस अनायास आये इस तेरह नम्बर को कोस रहीं थीं, कि ये नंबर अभिशप्त है, अब नहीं बचेंगे, मैं तो आज अनायास ही तुम्हें खोजते वहाँ पहुँच गया था और उंनसे सामना हो गया था, युसूफ से कोई जबाब नहीं मिला, लेकिन लगा की सब कुछ जानते हुए भी युसूफ को भी उतना ही विश्वास हो गया था कि वार्ड न बदलते तो शायद मौत कुछ पल और टल जातीI
इस ब्याही से कुँआरी भली थी
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रचनाएँ
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आभार स्वभाव की बहुत प्राकृतिक एवम व्याव्हारिक प्रतिक्रिया हैI शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, भावात्मक, भौतिक छोटी–बड़ी जरूरतों के लिए आँख खुलने से लेकर बंद होने तक, जीवन की पहली साँस लेने से लेकर अन्तिम साँ

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