महाराजा सर प्रताप सिंह राठौड़ (मारवाड़-जोधपुर)
की (21अक्टूम्बर 1845) 177वीं जयंती पर शत शत नमन....
राजपूत समाज में समकालीन परिस्थितियों को देखकर भविष्य कि पहचान अगर किसी ने वक्त रहते हुवे कि और समाज को शिक्षा के क्षेत्र में पिछङने से बचाने का श्रेय जाता है तो वह जोधपुर रियासत के प्रधानमंत्री सर प्रताप को जाता है।
अंग्रेजों के जाने के बाद जो कांग्रेस वामपंथीयो कि सोच थी कि इस कौम को हमारे यहाँ आकर घुटने टेकने होंगे साकार नही हो पाये क्योंकि कांग्रेस व वामपंथी यह सोच पाते उससे पहले ही शिक्षा का बीज हमारे समाज में महानायक बो चुके थे।
सर प्रताप का स्वप्न ही था का रियासत जागीर जमीन सब कुछ चले जाने व परम्परागत सैनिक कार्य छुट जाने के बाद भी राजपूतों ने अपने पुरुषार्थ का लोहा सबको मना दिया और लोकतंत्र राजतन्त्र में भी अपनी अहम भूमिका रखते है।
पुरुषार्थी कौम को शिक्षा के मार्ग पर सबसे पहले धकेलने का कार्य इन्हीं महामानव ने किया।
मारवाड़ के आम राजपूत को शिक्षा के जगत में महाराजा सर प्रताप सिंह जी के प्रयासो से ही सहयोग मिला।