माॅं भवानी का अंश स्वरूप, सतीत्व की अनूठी मिशाल क्षत्राणी राजकुमारी ताजकुंवरी जी।।
कानपुर के समीप गंगा किनारे किसोरा नामक राज्य स्थित था। किसोरा के राजा सज्जनसिंह की राजकुमारी ताजकुंवरी और राजकुमार लक्ष्मण सिंह, यह दोनों भाई-बहन बड़े वीर थे और इन दोनों को शस्त्र विद्या की शिक्षा भली-भांति दी गई थी। ताजकुंवरी के शस्त्र-कौशल पर उसके पिता सज्जनसिंह को बड़ा गर्व था। राजकुमारी ताजकुंवरी ने मुसलमानों की सेना को एक बार परास्त कर छोटी अवस्था में ही उसने अपनी वीरता का परिचय दे दिया था।
राजकुमारी ताजकुंवरी की वीरता और सुन्दरता की प्रशंसा दिल्ली के मुगल बादशाह ने सुन रखी थी। उसने किसोरा नरेश सज्जनसिंह को पत्र द्वारा सूचित किया कि "अपनी पुत्री को चुपचाप हमारे हवाले कर दो वरना किसोरा राज्य का नामोनिशान मिटा दिया जाएगा।" पत्र पाकर सज्जनसिंह का ख़ून खोल उठा, उसने बादशाह को कड़ा प्रतिरोध करते हुए पत्र लिखा। बादशाह ने इसे अपमान समझ उसे सबक सिखाने किसोरा पर अपनी सेना भेजी। दिल्ली की विशाल सेना के सामने उस छोटे से राज्य की सेना समाप्त हो गई। सज्जनसिंह युद्ध में काम आए।
विजयी यवन सेना ने नगर में प्रवेश किया तो देखा एक कि एक बुर्ज पर खड़े किसोरा के दो सैनिक निरन्तर अपने बाणों से प्रहार कर रहे हैं। सेनापति ने उन्हें ध्यान से देखा तो राजकुमार और राजकुमारी दोनों भाई-बहनों को पहचान लिया। सेनापति ने आज्ञा दी कि, "उन दोनों को जीवित पकड़ कर शीघ्र उपस्थित करो"। सेनापति ने आदेश देकर उनकी ओर संकेत किया ही था कि ताजकुंवरी ने शर-संधान कर सेनापति को यमलोक पहुंचा दिया। सेनापति को गिरते देखकर मुसलमान सैनिक बहुत क्रोधित हुए और बुर्ज पर जबरदस्त धावा बोल दिया। शत्रु को समीप आते देखकर ताजकुंवरी ने अपने भाई से कहा कि- "विधर्मियों के हाथ पड़ने से पूर्व तुम मेरे शरीर की और धर्म की रक्षा करो।" लक्ष्मणसिंह की आंखों में आंसू छलक आए। ताजकुंवरी ने डांटते हुए कहा- "राजपूत होकर रोते हो? मेरे सतीत्व की रक्षा करने में तुम्हारे हाथ क्यों कांप रहे हैं। घबराओ मत! अब तो यही अंतिम उपाय है।" भाई ने तत्काल तलवार खींच बहन के शरीर के दो टुकड़े कर डाले और स्वयं भी लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हो गया।।