लम्बे समय से प्रसिद्द समाजसेवी अन्ना हजारे द्वारा महाराष्ट्र सरकार से लोकायुक्त कानून लाने की मांग की जा रही थी। इस कानून को लेकर वर्ष 2016 में भी अन्ना हजारे ने रालेगण सिद्धि में अनशन किया था। तत्समय महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अन्ना हज़ारे का अनशन तुड़वाकर उनकी सभी शर्ते मानकर लोकायुक्त कानून बनाने के लिए एक कमेटी गठित की थी, जिसमें सरकार और अन्ना हजारे के पांच-पांच सदस्यों ने मिलकर लोकायुक्त कानून का ड्राफ्ट तैयार किया था। किन्तु उसके बाद उद्धव ठाकरे की सरकार सत्ता में आई तो मामला ठन्डे बस्ते में चला गया। लेकिन अभी जब फिर से अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में बंद ४ मंत्रियोँ के खिलाफ जन आंदोलन की चेतावनी दी तो वर्तमान शिंदे सरकार ने समाजसेवी अन्ना हजारे की मांग को मानते हुए महाराष्ट्र सरकार में लोकायुक्त कानून लाने का फैसला किया है। इस विषय पर गंभीर विचार करते हुए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने पारदर्शिता के साथ सरकार चलाने एवं राज्य को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए राज्य में लोकपाल की तर्ज पर लोकायुक्त नियुक्त करने का ऐलान किया है। इसके लिए वे कैबिनेट की बैठक में अन्ना हजारे कमेटी की रिपोर्ट को मंजूरी देते हुए इस विषयक बिल आने वाले विधान सभा सत्र में लाकर उसे पारित करेंगे। यह लोकायुक्त कानून मुख्यमंत्री से लेकर पूरे मंत्रिमंडल पर लागू होगा। भ्रष्टाचार दूर करने का लिए लोकायुक्त को कैबिनेट ने अपनी मंजूरी दे दी है।
लोकायुक्त की स्थापना के लिए उड़ीसा में सर्वप्रथम कानून पारित हुआ था लेकिन इसके गठन का श्रेय सर्वप्रथम महाराष्ट्र को जाता है। इसके बाद राजस्थान में और फिर एक-एक करके अब तक 20 से अधिक राज्यों में लोकायुक्त संस्था का गठन किया जा चुका का है। यह संस्था भारत सरकार द्वारा गठित की गई एक ऐसी संस्था होते है, जिसके द्वारा भ्रष्टाचार पर रोकथाम लगाकर उसे नियंत्रित करती है। देश के अलग-अलग राज्योँ में यह लोकायुक्त या उपलोकायुक्त नाम से जाना जाता है। इसका कार्य राज्य से मिली किसी भी प्रकार की शिकायत पर निष्पक्ष जाँच करना होता है। यह राज्य सरकार एवं मंत्रियो के विभागों के अधिकारी/कर्मचारियों के विरुद्ध मिली शिकायतों की प्राप्ति पर उनका पंजीकरण करता है। यह सभी प्रकार के भ्रष्टाचार सम्बन्धी शिकायतों की जाँच करता है तथा ठोस तथ्योँ के आधार पर दंड भी निर्धारित कर सकता है। यह किसी भी विभाग में हो रहे भ्रष्टाचार की शिकायत की जाँच के लिए सक्षम अधिकारी को वहां नियुक्त करता है, जो एक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष इकाई के रूप में अपनी रिपोर्ट लोकायुक्त संगठन को सौंपता हैं। लोकायुक्त इन रिपोर्ट को अपनी वार्षिक रिपोर्ट में राज्यपाल को देते हैं। लोकायुक्त के क्षेत्राधिकार में मुख्यमंत्री को छोड़कर पूरा मंत्रिमंडल आता है। जहाँ किसी मंत्री के भ्रष्टाचार सम्बन्धी शिकायत की जाँच एवं सजा देने का अधिकार लोकायुक्त को होता है। लोकायुक्त राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश या फिर उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त जज हो सकते हैं। इसमें अध्यक्ष का चुनाव राज्यपाल के द्वारा किया जाता है। इसमें अधिकतम आठ सदस्यों का प्रावधान है, जो न्यायिक क्षेत्र से सम्बंधित होने के साथ ही न्यायप्रिय एवं स्पष्ट न्याय करने वाले व्यक्ति होते हैं। इन्हें संविधान के अनुच्छेद 311 के अनुसार उसके व्यवहार क्षमता के आधार पर राज्यपाल द्वारा पद से हटाया जा सकता है।