स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भले ही हमारे देश ने हर क्षेत्र में प्रगति की हैं, लेकिन नौकरियाँ देने के मामले में आज भी हम बहुत पिछड़े हुए हैं। युवा वर्ग जब दिन-रात एक करके बड़ी-बड़ी डिग्री हासिल कर उन्हें हाथ में लेकर जीवकोपार्जन हेतु नौकरी तलाशने निकलता हैं तो उसे देश की उन्नति और प्रगति पथ पर भ्रष्टाचार, घोटाले और अनेक कांड तो आसानी से दिखाई दे जाते हैं, लेकिन जीविका रूप में एक अदद नौकरी दूर-दूर तक कहीं नज़र नहीं आती हैं। ऐसे हालातोँ में कई युवा तो अपराध की ओर तक रुख कर जाते हैं। जहाँ वे लूट, डकैती, मारपीट, हत्या, अपहरण और बलात्कार जैसे घिनौने कृत्य तक कर डालते हैं और हमेशा तनाव में जीने के लिए मजबूर हो जाते हैं। इसमें यदि गहन विचार किया जाय तो हम देखते हैं कि इसमें अपराधी बने इन युवाओं का पूर्ण दोष नहीं होता, बल्कि इसके लिए बहुत हद तक हमारी सरकार और उनकी व्यवस्था का अधिक दोष उजागर होता हैं।
आज जब युवा जीवन को नए सिरे से आरम्भ करने के लिए डिग्री हाथ में लेकर जीविका के क्षेत्र में प्रयास करता हैं, तब उसे लगभग निराशा ही हाथ लगती हैं। उनकी यह निराशा तब तनाव का एक बहुत बड़ा कारण बन जाता हैं जब वे देखते हैं कि कैसे सरकार अपने जनप्रतिनिधियों के पेट भरने के लिए तो उनके वेतन में वृद्धि के साथ अनेक सुख-सुविधा देने के लिए कानून बनाती हैं, लेकिन शिक्षित युवाओं के जीविकोपार्जन के लिए कोई सुनियोजित योजना नहीं बनाती है। वे उनके लिए अपने स्तर पर केवल स्वरोजगार की घोषणा भर करती हैं और इसी झुनझुने के दम पर उन्हें सुनहरे स्वप्न दिखाती रहती हैं। जबकि वास्तविक रूप से इसका थोड़ा बहुत मिलने वाला लाभ भी वे अपने-अपने नाते-रिश्तेदारों में बाँट देते हैं, जिसे देख युवाओं में तनाव होना स्वाभाविक होता है। इसके अलावा आज के युवाओं में तनाव का कारण उनकी सुविधाभोगी और फैशन परस्ती होना भी है, जिसकी पूर्ति के लिए वे कुछ भी कर गुजरने की जिद्द के चलते गलत कदम उठा लेते हैं और तनाव के निकट पहुँच जाते हैं। इसके अलावा आज उनके तनाव का एक बड़ा कारण यह भी है कि वे मोबाइल का बेतहाशा उपयोग करते हैं, जिसमें वे मोबाइल का विशेष कार्योँ के लिए कम और असामाजिक गतिविधियों के लिए बहुत अधिक उपयोग करते नज़र आते हैं, जिसके कारण वे पथभ्रष्ट होकर मानसिक कुंठाओं से घिरकर तनाव के शिकार बन रहे हैं।