आज भी विश्व का शायद ही कोई ऐसा देश होगा जहाँ किसी न किसी रूप में आतंकवाद देखने को नहीं मिलेगा। यदपि आज विश्व के विकसित देशों के साथ ही विकासशील देशों की एकजुटता के कारण वे आतंकवाद के पर कतरने में बहुत हद तक सफल हुए हैं,. लेकिन आज भी यह कई रूपों में हमारे सामने आकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर गहन चिंतन करने के लिए बाध्य करती हैं। इनके आगे विश्व की ख़ुफ़िया एजेंसियां भी बहुत बार फेल हो जाती हैं। आतंवादियों द्वारा लोगों को अकारण गोली मारकर मौत के घाट उतार देना, उनके घर फूंक देना, उन्हें बम से उड़ा देने जैसी घटनाएं तो देखने को मिलती ही हैं, लेकिन जब कोई पटाखों में ही बम लगा तो फिर कैसी दिवाली होगी, इसे गीतकार श्रवण राही ने बहुत ही मर्मस्पर्शी ढंग से प्रस्तुत किया है, जिसमें वे कहते हैं -
उनकी आँखों में बम , उनकी साँसों में बम
सिक रहे नित नए अब सलाखों में बम
हम दिवाली मनाये भला किस तरह
रख दिए हैं किसी ने पटाखों में बम
विश्व में किस तरह किस रूप में आतंकवाद फैला है, इससे आज सभी विज्ञ हैं। बहुत हद तक इस पर नियंत्रण भी है, लेकिन इस पर पूरी तरह से नियंत्रण रखने के लिए इसके कारणों जिसमें सबसे बड़ा कारण आर्थिक है, उसमें सुधार करना होगा। इसे रोकने के लिए सरकारों पर ही निर्भर नहीं रहना होगा। सामाजिक स्तर पर भी उपाय करने होंगे। केवल गोली मारने से काम नहीं चलने वाला इसके लिए आपसी बातचीत के जरिये इस पर बहुत हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। इसके लिए आवश्यकता विवेक और सामंजस्य बनाने की हैं, जिसके लिए राजनेताओं से अधिक समाज सुधारकों की आवश्यकता है। ऐसे समाज सुधारक जो राजा राममोहन राय जैसे विवेकशील और समृद्धिशाली प्रतिभावान हो जिन्होंने अकेले ही सतीप्रथा का अंत कर दिया। इसके साथ ही इसके लिए महात्मा गाँधी, गौतम और नानक जैसे दिशा-निर्देशक चाहिए, जो आतंकवादियोँ को सत्य अहिंसा और प्रेम का पाठ पढ़कर सत्मार्ग पर ला सके।