हमारे देश में अनेक विकट समस्याओं में बेरोजगारी भी एक प्रमुख समस्या है। आज बेरोजगारी का यह आलम है कि जब एक युवा जीवन को नए सिरे से प्रारम्भ करने के लिए हाथ में इंजीनियर, डॉक्टर, वैज्ञानिक, व्याख्याता, अधिवक्ता आदि डिग्री लेकर रोजगार की तलाश में निकलता है तो उसके हाथ बहुधा निराशा ही हाथ लगती है। उसके सामने एक तरफ बेरोजगारी अपना मुंह फैलाई खड़ी रहती है तो दूसरी और भ्रष्टाचार मुंह चिढ़ाता है। ऐसे में उसे अपनी लम्बी चौड़ी डिग्रियां व्यर्थ लगती है। बेरोजगारी का सबसे बड़ा कारण निरंतर बढ़ती जनसँख्या है। इस जनसँख्या वृद्धि में सबसे बड़ा हाथ कम पढ़े-लिखे उन निम्न वर्ग के युवाओं का होता है जो दो जून की रोटी की जुगाड़ भी नहीं कर पाते, झुग्गी-झोपड़ियों में बड़ी कठिनाई में सिर छुपाते हैं, फिर भी उनके संतान वृद्धि का क्रम रुकता नहीं है। जबकि शिक्षित युवा वर्ग जनसँख्या नियंत्रण में विश्वास रखते हैं और अधिक संतान के परहेज करते हैं। बेरोजगारी के लिए सबसे बड़ा दोष सरकार की गलत नियोजन नीतियोँ भी हैं। स्कूल में अध्यापक, कार्यालय में बाबू और अधिकारी, न्यायालयों में जज, पुलिस में सिपाही, फौज में सैनिक, तकनीकी संस्थानों में तकनीशियन व वैज्ञानिक आदि के उनके पद रिक्त होने के बाद भी सरकारी अधिकारियों की कुम्भकर्णी नींद, प्रमाद आलस्य अथवा लाल फीताशाही के कारण समय पर न भरे जाना है, बल्कि इसके स्थान पर काम चलाऊ रूप से संविदा और आउटसोर्स माध्यम से अस्थायी रूप से न्यूनतम वेतन भर्तियाँ करना हैं, जिससे अर्द्ध बेरोजगारी बढ़ने से युवा वर्ग में असंतोष, अकुलाहट, क्षोभ और विद्रोह उत्पन्न व्याप्त है।
बेरोजगारी के कई कारण हैं जैसे- जनसँख्या का निरंतर बढ़ना लेकिन उस अनुपात में रोजगार मुहैया न हो पाना। इसके अलावा हमारी दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली भी इसके लिए जिम्मेदार है। शिक्षा व्यावसायिक न होने से १०वीं, १२वीं करने के बाद एक बहुत बड़े युवा वर्ग का बाबूगिरी तक सीमित होना। देश की ओधौगिक नीति गलत होने से भी बेरोजगारी बढ़ी हैं। बड़े-बड़े उद्योग खुलने की कारण छोटे और माध्यम उद्योगों का काम-काज ठप्प हुआ है। सरकार की ओर से घरेलू उद्योग-धंधों को उचित प्रोत्साहन न मिलने से बंद हो जाते हैं। मशीनीकरण एवं यंत्रों के अत्यधिक प्रयोग होने से बेरोजगारी बढ़ी है। इसके अलावा कृषि पर दबाव बढ़ने, परंपरागत हस्तशिल्प में कमी,दोषपूर्ण नियोजन, स्वरोजगार की इच्छा का अभाव भी बेरोजगार के लिए जिम्मेदार है।
देश में बेरोजगारी दूर करने के लिए परिवार नियोजन पर बल देना होगा इसके लिए धर्म-विशेष के नाम पर प्रजनन में छूट को प्रतिबंधित करना होगा। शिक्षा का व्यवसायीकरण करना होगा, ताकि स्वरोजगार के प्रति युवा वर्ग प्रेरित हो सके। नई तकनीकी द्वारा विकास के साथ नए कौशल विकसित कर युवाओं को बाबूगिरी के मोह से मुक्त करना होगा। छोटे-छोटे स्तर पर लघु-उद्योगो को खोलकर उनके उत्पादन निश्चित करने होंगे, ताकि वे बड़े उद्योगों के चंगुल से दूर हो सके। शिक्षित युवा वर्ग को शारीरिक श्रम का महत्व समझाना होगा, ताकि उनके मन में श्रम के प्रति रूचि उत्पन्न हो सके। इसके साथ ही रोजगारपरक ग्रामीण विकास नियोजन तथा कृषि आधारित उद्योग-धंधों का विकास करना होगा।