कठोपनिषद में युवा उसे बताया गया है, जिनकी ऊर्जा अक्षुण्ण, यश अक्षय, जीवन अंतहीन, प्राकर्म अपराजेय, आस्था अडिग और संकल्प अटल होता है। युवा किसी भी देश के प्राण तत्व, उसकी गति, स्फूर्ति, चेतना और ओज होते हैं। युवाओं के प्रतिभा, पौरष, तप, त्याग और गरिमा देश के लिए गर्व का विषय होता है। युवा देश की दूसरी पंक्ति की शक्ति, कर्णधार होते हैं, जिनके कन्धोँ पर भविष्य में देश का नेतृत्व करने का भार होता है। हमारे भारत के युवाओं की देश सेवा, समाज सेवा और विश्व कल्याण की कथाएं इतिहास के सुनहरे पन्नों में अंकित हैं। युवा नचिकेता ने यमराज तक को झुका दिया। युवा सिद्धार्थ भरी जवानी में सत्य की खोज को निकल पड़ा। १६ वर्ष की आयु में शिवा अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध कमर कस के खड़ा हो गया। भारतीय स्वतंत्रता सैनानी चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु आदि युवाओं ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद की चूलें हिलाकर रख दी। ऐसे ही अनेक उदाहरण इतिहास में हमारे भारत के युवा गाथा से भरे पड़ें हैं।
लेकिन आज स्थिति काफी हद तक विपरीत हैं। आज का अधिकांश युवा पथ भ्रष्ट हो रहा है। आज यदि भारत के युवा के बारे में बात की जाय तो मुझे सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक श्री अरुणा बूटा का कथन सटीक लगता है कि, " टेलीविजन और इंटरनेट के दुनिया ने युवकों के लिए सूचनाओं का अम्बार लगा दिया है। इसलिए उनका आई क्यू अर्थात बुद्धिलब्धि काफी ऊँचा होता है। इस 'हाई फाई ' सुचना तंत्र ने उनकी मौलिक कल्पना-शक्ति व तार्किक क्षमता को नष्ट किया है। वे स्थितियोँ से निबटने और विरोधी वातावरण में खुद को संतुलित रखने में अक्षम हैं। उनकी सहन-शक्ति कमजोर हुई है। वे जल्द होशो-हवास खो बैठते हैं। फलतः उसका संज्ञानात्मक विकास काम हो पाता है और मनोवेगपूर्ण व्यक्तित्व का स्वामी बन जाता है। उसके लिए उसकी मर्जी ही सब कुछ हो जाती है। "