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मैं नादान अच्छी थी

31 अक्टूबर 2021

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जब से पता चलने लगी,
झूठी दुनिया की हकीकत।
तब लगा कि मैं 
दुनिया के छल- कपट से,
अंजान अच्छी थी।
नहीं चाहिए मुझे यह समझदारी,
मैं तो नादान अच्छी थी।
अब तो वजह ढूंढ-ढूंढकर,
मुस्कुराना पडता है ।
बचपन की वो बेवजह,
मुस्कान अच्छी थी।
खोजनी पडती हैं अब तो,
जिंदगी में खुशियाँ।
लगता है वो खुशियों की,
खान अच्छी थी।
परेशान हो गई हूँ,
इस दुनिया की कहासुनी से।
जिंदगी शायद,
बेजुबान ही अच्छी थी।
वापस लौटना चाहती हूँ तुझमें,
ऐ बचपन की खुशनुमा जिंदगी!!
बहुत सह लिया, अब नहीं सहा जाता।
मुझे  लगता है कि,
मैं नन्ही जान ही अच्छी थी।।
              - संध्या यादव "साही"
आलोक सिन्हा

आलोक सिन्हा

सुन्दर रचना

1 नवम्बर 2021

संध्या यादव ''साही"

संध्या यादव ''साही"

1 नवम्बर 2021

Thanks

Amit Yadav

Amit Yadav

Bahut sundar rachana

1 नवम्बर 2021

संध्या यादव ''साही"

संध्या यादव ''साही"

1 नवम्बर 2021

Thanks

उमेश शुक्ल

उमेश शुक्ल

सुंदर रचना।

31 अक्टूबर 2021

संध्या यादव ''साही"

संध्या यादव ''साही"

1 नवम्बर 2021

Thanks

23
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