कुछ मीठी,कुछ खट्टी,कुछ कड़वी,कुछ रंगीन,
कुछ बचपन की,कुछ जवानी की,कुछ संगीन।
ये ही तो हैं वो यादें,जो भूले ना भुलायी जा सकी;
कुछ यादें पूरी याद रही,याद रह गयी अधूरी बाकी।
कुछ यादें तड़पाती है,कुछ प्रफुल्लित कर जाती है;
यादें तो यादें हैं ,जो कभी हंसा तो कभी रुला जाती है।
कभी मुस्कान ,कभी शिकन,कभी शांति ,चेहरे पे लाती है;
ये यादें ही तो है,जो बैठे बैठे चेहरे के रंग बदल जाती हैं।
कोई अपनों के बिना, इन यादों के सहारे जी जाता है;
तो कोई यादों के बिना,जीते हुए भी नहीं जी पाता है।
यादों के इस विशाल समुंदर में, गोता कोई लगा जाता है;
वह मोती और सिप जैसे,रिश्तों की बुनियाद रख जाता है।
अकेलेपन का सहारा होती है,उसका विश्वास होती है यादें;
जीने का मकसद लिए,किसी को पुनर्जीवित कर देती है ये यादें।