17 जून 2019
वो दिन मन की उलझनों का दिन उमंगे जो सुप्त पड़ी थी मानो इसी की राह थी अब ना था बांध का रुकना असंभव -सा था सीमाओं का बंधना क्षण ही में टूटने का भय और कुछ पा जाने का लय मन को अनुनादित सा करता विचारो का जखीरा उठता उठता आंधी -सा हवा का झोका प