होली रंग एक ना था जीवन के। होली ने रंगे सबके तन मन चोल के।। कितना उत्सव और उल्लास भरा। थिरकते पाँव गीत मीठे बोल के ।। बौराई आम मदहोश का संदेश देते। मानवता में मीठे रस घोल के।। ऐसा प्र
!!मां!! कभी पेट में मारी होगी लात तो कभी गोदी में भी सताया होगा मां तुमनें तो हर दर्द सहकर अपनें हाथों से गोदी में खिलाया होगा.. जब भी लगती होगी भूख तो तुमने अपने खाने का हर कतरा अपने स्तन से
तुम फिर से बोल दो तो गीत मैं गाऊँ।। तुम प्यार से बोल दो तो गीत मैं गाऊँ।। तुम दिल से मिलो तो दिल खुश हुआ। तुम दिल से बोल दो तो गीत मैं गाऊँ।। तुम साथ ही रहो तो दिल खुश हुआ। तुम अपना बोल दो तो गीत
ऐ मन बता देक्या ढूँढ रहा है तूऐ मन बता दे तूमन बोला ये ज़िंदा हूँ मैंकोई याद बचपन की दिला रहा हैरास्ते वो बता रहा हैमन का ये आँचल चाहता तो है खुले आसमान में उड़नाख़्याल कब से ये छुपा के रखा हैये ख़्वाहिश है मेरे मन कीउस को ढूँढ रहा हूँ-अश्विनी कुमार मिश्रा
मन के सांचे जो ढल जाए, प्रेम सुधा वो पी जाएं.. वो हमराही, हमसफ़र सबको कहां मिलता है? मन से ही जो ठोकर खा जाएं, फिर भला वो कहां जाएं? जज्बातों का ज़लज़ला है, जिंदगी में सुख दुःख का फलसफा है... कुछ कह जाए, कुछ रह जाएं.. पूर्ण करने को सबकों मनमीत कहां मिलता है? जीने के लिए साथी है पर साथ कहां मिलता है
बुंदेलखण्ड की हीरा नगरी कहे जाने वाला पन्नाजिला वास्तव में आदिवासी बहुल क्षेत्र है। इसी पन्ना जिले के देवेन्द्रनगरविकासखण्ड के ग्राम फुलवारी
बिहार चुनाव फैसला किसके पक्ष में।बिहारदेश का पहला ऐसा राज्य बनने जा रहा है जहाँ कोरोना महामारी के बीच चुनाव होने जारहे हैं और भारत शायद विश्व का ऐसा पहला देश। आम आदमी कोरोना से लड़ेगा औरराजनैतिक दल चुनाव। खास बात यह है कि चुनाव के दौरान सभी राजनैतिक दल एक दूसरेके खिलाफ लड़ेंगे लेकिन चुनाव के बाद अपनी
सागर सा गम्भीर,नदियों सा चंचल मन है मेरा;बड़े वृक्ष की तरह देता सुकून,छोटे पौधे की तरह ये कोमल मन है मेरा।घर से बाहर निकलने को आतुर ,जल्दी ही घर लौटने को उत्सुक ये बच्चा मन है मेरा ;पर्वत की तरह अडिग,पानी की बूंद की तरह सूक्ष्म ये मन है मेरा।हरी भरी फसल की तरह लहलहाता
क्यों मुझको ऐसा लगता है?, दूर कहीं कोई रोता है।कौन है वो? ,मैं नही जानता, पर मुझको ऐसा लगता है,दूर कोई अपना रोता है। क्योंमुझको ऐसा लगता है?दूर कहीं कोई रोता है। 2पर्वत की हरी-भरी वादियाँ
मैं अबला नहीं, सबला बनना चाहती हूं; मैं आज बॉलीवुड में पनप रहे ,अपराधों का भंडाफोड़ करना चाहती हूं।बॉलीवुड पर कुछ गुंडों का, एकाधिकार मिटाना चाहती हूं।बॉलीवुड हमारी संस्कृति और राष्ट्रप्रेम ,युवा वर्ग की प्रगति का दुश्मन जो ठहरा;उसे सुधारने
ना जाने किन ख्यालों में गुम रहते हों, अब आनलाइन कम, आफलाइन तुम रहते हो। गुनगुनाने वाली आवाज अब कानों से दूर रहतीं हैं। मुस्कुराते होंठ अब ओझल रहते हैं। बस यही सोच कर आंखें नम रहतीं हैं। ना जाने किन ख्यालों में गुम रहते हों। सामने बनें छज्जे पर कबूतर चंद रहते हैं। गौरेयों का भी होता है आना जाना, छत प
सुनो! तुम सच बोल दिया करो.. हम मानते हैं कि सच सुनकर खफा होंगे, रूठेगे लेकिन विश्वास है ना हम दोनों के बीच। यह विश्वास सब समझा देगा ... तुम्हारे मैं को मेरे तुम को हम बना देगा। मन ही तो है, कभी उड़ता है, कभी डरता है। जैसे सूरज का तेज हर समय, हर दिन हर मौसम में एक जैसा नहीं होता है। जैसे चन्द
वक्त की पुरानी अलमीरा से एक याद.. वक्त आने जाने का नाम है लेकिन आप अपने काम से वक्त के हिस्से से कुछ यादें संभाल कर रखते हैं। यही यादें हैं जो आपको बदलाव का आइना दिखाती है। कमरें के कोने से लेकर छत की धूप तक ले जाता था यह काम। खैर काम तो सर्द दर्द है। यही काम ही तो नहीं हो पा रहा था। काम का रोना ही
अगले दिन कल्पना धीर से मिली। वह अपनी खुशी से लाए हुए सामान को देना चाहती थी फिर यह सोच कर रूक गई कि धीर अभी तो यही है। दो दिन बाद दे दुंगी लेकिन मन में सपना की शंका और धीर के सवाल के डर से वह उसे बता ही नहीं पाई। हालांकि वह खुश थी। कल्पना का मन होता कि वह उसे बनवाने के लिए दें दे कि आ
कैसी विडम्बना है ये, कि भ्रम में पड़ा ये मन है, बहुत सोचा बहुत समझा,पर बांवरा ये मन है।विचार बहुत आये मन में,पर चंचल ये मन है,कोशिश की बहुत रुकने की,पर ठहरता नहीं ये मन है।सोचा बहुत आगे बढ़ने को,पर थम गया ये म
आंखों से पर्दा और तकदीर के लेख अपने समय पर ही खुलकर सामने आते हैं। बातों के फेर और मन भ्रम के फेर एक न एक दिन टूटते जरूर हैं लेकिन जब भी टूटते हैं, सोचने के लिए सवाल और सीख देकर जाते हैं। मन का भ्रम हो या हो मन प्रेम। मन के रिश्ते हैं। मन को ही समझ आते हैं। दिमाग तो है उलझनों का पिटारा, देखते हैं, क
पुरुष का प्रेम समुंदर सा होता है..गहरा, अथाह..पर वेगपूर्ण लहर के समान उतावला। हर बार तट तक आता है, स्त्री को खींचने, स्त्री शांत है मंथन करती है, पहले ख़ुद को बचाती है इस प्रेम के वेग से.. झट से साथ मे नहीं बहती। पर जब देखती है लहर को उसी वेग से बार बार आते तो समर्पित हो जाती है समुंदर में गहराई तक,
🏵💐🌼🌹🏵💐🌼🌹🏵💐🌼🌹🏵💐🌼🌹 *श्री राधे कृपा हि सर्वस्वम*🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼 *जय श्रीमन्नारायण* सभी मित्रों को की श्री सीताराम -------------- आज जीवन में ना जाने कितने उतार-चढ़ाव आते रहते हैं और अक्सर देखा जाता है की एकता अत्यधिक चिंता ग्रस्त होकर अपने जीवन को समाप्त करने तक की योजना
मन रे,अपना कहाँ ठिकाना है?ना संसारी, ना बैरागी, जल सम बहते जाना है,बादल जैसे