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शास्त्रों में अंक 3 का विशेष महत्व बताया गया है। पूजन, आरती और अन्य
कर्मकांड में हर काम तीन-तीन बार किया जाता है। ऐसा इसलिए कि मानव जीवन के
तीन बिंदु हैं जन्म, जीवन और मृत्यु। इन तीनों अवस्थाओं के तीन देवता
क्रमशः ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं। तीन बार आरती लेना, तीन परिक्रमा
करना, तीन बार प्रसाद लेना ये सब इन तीन देवता या इन तीन अवस्थाओं के लिए
किया जाता है।
ज्योतिषीय आधार पर भी अंक तीन का बहुत महत्व है। सौर
मंडल में तीन ग्रह प्रमुख हैं, जो हमारी कुंडली को भी सबसे ज्यादा
प्रभावित करते हैं। ये तीन ग्रह है सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति। सूर्य को
पिता और आत्मा का कारक माना जाता है, चंद्र को माता और मन का तथा बृहस्पति
को ज्ञान और संतान का। इन तीन ग्रहों की पूजा हमें संसार के सभी सुख दे
सकती है। इसलिए कई जगहों पर हम अंक तीन को इन तीनों का प्रतीक मानकर भी
कर्म करते हैं।
तीन देव... 1) ब्रह्मा 2) विष्णु और 3) महेश अखिल
सृष्टि के नियामक माने गए हैं। उत्पत्ति, पालन और समापन व्यवस्था क्रमश:
इन्हीं के हाथों में संंचालित हैं।
तीन लोक... 1) स्वर्ग लोक 2) पृथ्वी लोक और 3) पाताल लोक का वर्णन शास्त्रों के तहत किया गया है।
तीन गुण... 1) सत्व 2) रज और 3) तम संसार में सारभूत तीन गुण माने गए हैं।
इन्हीं के आधार पर सात्विकता, राजसिकता और तामसिकता को परिभाषित किया जाता
है।
तीन रोग... 1) वात 2) पित्त 3) कफ के बारे में आयुर्वेद बताता है।
शरीर में इन्हीं तीन अवयवों का संतुलन बिगड़ने पर तरह-तरह की स्वास्थ्य
समस्याएं खड़ी होती हैं।
तीन रूप... 1) ठोस 2) द्रव और 3) गैस में विभिन्न पदार्थों की मूल अवस्थाओं को वर्गीकृत किया गया है।
तीन काल... 1) भूत 2) भविष्य और 3) वर्तमान समय के हर रूप को बयान कर देते हैं।
अंक-3 की विशेषता बताने वाले कई और भी उदाहरण दिए गए हैं। चूंकि विश्व में
अधिकांशत: त्रिगुणात्मक शक्ति के महत्व को माना गया है, इसीलिए व्यवहार
में भी 3 को विशिष्ट माना गया है। यही वजह है कि पूजन परंपरा के दौरान भी
अनेक क्रियाओं को 3 बार दोहराने पर ज़ोर दिया जाता है। इन विधियों के अर्थ
के बारे में जानिए...
मुख शुद्धि के लिए आचमन... पूजन से पहले मुख की
शुद्धि या कंठ शोधन के लिए 3 बार आचमन किया जाता है। शास्त्रों में वर्णित
है कि इससे कार्मिक, वाचिक और वैचारिक पापों का नाश होता है।
ध्यान के
लिए अगरबत्ती... पूजन के दौरान हम इष्टदेव, कुलदेव एवं स्थानदेव का ध्यान
करते हैं। इसलिए प्रभु के समक्ष हमेशा 3 अगरबत्ती लगाने की सलाह दी जाती
है।
आरती और प्रदक्षिणा के अनेक मत... भगवान की प्रदक्षिणा 3 बार की
जाती है और आरती भी 3 बार ली जाती है, लेकिन इसके लिए अलग-अलग मत हैं।
कुछ लोग इसे त्रिदेव से जोड़कर देखते हैं। इनके अनुसार सृष्टि के इष्टदेव
ब्रह्मा, विष्णु, महेश हैं, इसलिए उनका ध्यान कर तीन बार प्रदक्षिणा करने
और आरती लेने की परंपरा बनाई गई है। इसके अलावा पूजन के दौरान हम स्थानदेव,
कुलदेव एवं इष्टदेव की आराधना करते हैं। इसीलिए इन तीनों के लिए
प्रदक्षिणा करने और आरती लेने का तथ्य सामने आता है। वहीं, कुछ लोग
त्रिदेव, त्रिदेवी, त्रिनाड़ी (इंगला, पिंगला, सुषुम्ना), त्रिलोक आदि तीन
रूप की अधिकता के कारण तीन बार प्रदक्षिणा और आरती लेने के विधान पर अमल
करते हैं।
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