इंसान का जीना ही एक रचना के जैसी होती है, कभी कविता के रूप में तो कभी कहानी के रूप में उसमे भी बिरह प्रेम छल आदि को कवि के द्वारा दर्शन किया जाता है
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मैं हिंदू हूं मुसलमा तु ये सब बाकी कहावत है के रब के घर पर सब इंसा नहीं कोई बनावत है के बन के फूल एक बगिया के दोनो मुस्कुराते हैं चलो हम साथ मिल के आज फिर होली मनाते हैं