आज तो तय कर ही लिया था कि इस चूहे को ठिकाने लगा कर ही रहूंगा। आज घर पर कोई नहीं था। बहुत अच्छा मौका था वरना घर के लोग नुकसान के डर से इस चूहे का कोई इलाज करने ही नहीं देते थे।
जी हां ! मैं चूहे की ही बात कर रहा हूं। वो कोई साधारण चूहा नहीं था। वो उछल कूद में अक्षय कुमार को भी मात करता था। तोड़फोड़ में अजय देवगन भी उसके सामने कुछ नहीं लगता था। दिमाग तो मिकी माउस से भी ज्यादा तेज था।
पूरा घर सिर पर उठा रखा था। मुझसे तो उसकी ख़ास दुश्मनी थी। मेरे कपड़ों को काटना उसका सबसे पसंदीदा काम था।
उससे छुटकारा पाने के मैंने सारे उपाय कर लिए थे और सभी में नाकामयाब हुआ था।
मेरे एक मित्र ने बताया कि भगौना को एक तरफ से थोड़ा उठाकर एक स्केल फंसा दो और उस स्केल में एक लंबी रस्सी बांध कर अपने पास दूसरा छोर पकड़ कर रखो। भगौने के नीचे कुछ खाने के लिए रख दो। चूहा जैसे ही खाने आए रस्सी खींच दो, भगौना गिरेगा और चूहा उसके अंदर बंद हो जाएगा।
मुझे ये आइडिया बहुत पसंद आया और मैंने वैसा ही किया। रात को जागता रहा कि कब वो आए, कब मैं रस्सी खींचूं और कब उस कम्बख्त से छुटकारा मिले। सब कुछ वैसा ही हुआ जैसा मैं चाहता था। चूहा भगौने के अंदर कैद था। मैं चेहरे पर विजयी मुस्कान लिए सो गया कि अब सुबह ही इसे ठिकाने लगाऊंगा।
सुबह श्रीमती जी की चीख के साथ मेरी नींद खुली। मैं तेजी से बिस्तर से उठकर किचन की तरफ़ भागा क्योंकि चीख की आवाज़ वहीं से आई थी।
किचिन में श्रीमती जी जमीन पर बदहवास बैठी थीं, सीने पर हाथ रखकर अपनी सांसें कंट्रोल कर रही थीं। सामने भगौना सीधा हुआ पड़ा था और चूहा कहीं नहीं था।
मैं देखते ही सारा माजरा समझ गया था। जरूर श्रीमती जी ने भगौना जमीन पर पड़ा देखकर उठाया होगा और उस पापी चूहे ने छलांग लगा दी होगी।
गलती मेरी थी, मैंने उनको अपने इस कारनामे के बारे में बताया नहीं था।
मैंने श्रीमती जी को सहारा देकर उठाया और हॉल में लाकर सोफे पर बैठाया, पानी दिया पीने को और सामने वाले सोफे पर अपराधी की तरह सिर झुकाकर बैठ गया।
श्रीमती जी के गुस्से से बचने का इससे अच्छा कोई तरीका नहीं था।
" क्या था ये ? " श्रीमती जी की गुर्राती हुई आवाज़ मेरे कानों में गूंजी।
" वो शर्मा ने.... आइडिया दिया था चूहे को पकड़ने का....बस वही किया था। पकड़ भी लिया था। " मैंने धीरे-धीरे कहा।
" मुझे क्यों नहीं बताया ? जानते हो वो यहां.. यहां..कूंदा मेरे ऊपर। मेरी तो जान ही निकल गई थी। तुम तो चाहते ही हो कि मैं मर जाऊं और तुम उस बाजू वाली चुड़ैल मिश्राइन को लाइन मारने के लिए फ्री हो जाओ। " श्रीमती जी ने घटना को राजनीतिक मोड़ दे दिया।
हर डिस्कशन बेचारी मिसेज मिश्रा पर ही क्यों पहुंच जाता है जहां मेरे सारे तर्क ख़त्म हो जाते हैं।
" आइंदा से ऐसे किसी भी आइडिया को दिमाग में भी नहीं लाना समझे। " उन्होंने आदेश दिया जिसे मानना मेरी नियति थी।
उस चूहे ने भी खूब बदला लिया उस रात का। उसने मेरी सबसे प्रिय शर्ट को मन लगाकर कुतरा।
अब उससे निपटने के लिए आम प्रचलित उपाय पिंजरे का उपयोग करने की सोची।
बाजार जाकर पिंजरा लाया। उसमें एक धागे से रोटी का टुकड़ा लटकाया और किचन के प्लेटफार्म पर रख दिया। पिंजरा बेचने वाले ने बताया था कि ये सबसे आसान तरीका है और इसमें गारंटेड चूहा पकड़ में आता है। खासियत ये कि एक बार अंदर फंसा तो फिर बाहर नहीं निकल सकता।
अब मैं आश्वस्त था कि इस उपाय से सांप भी मर जायेगा और लाठी भी नहीं टूटेगी यानी चूहा भी पकड़ जायेगा और श्रीमती जी भी नाराज़ नहीं होंगी।
सुबह उठकर देखा तो पिंजरे में चूहा तो नहीं था रोटी का टुकड़ा गायब था। मैं हैरान था कि ऐसा कैसे हुआ। दूसरी रात मैंने फिर वही तरीका दोहराया और जागने का सोचा।
रात गुजरने लगी लेकिन मैं भी जिद्दी था। पिंजरे पर दूर से नज़र गड़ाए था।
जब नींद के मारे आंखें खोलकर रख पाना मुश्किल हो रहा था तब चूहा आया। उत्सुकता से मेरी धड़कनें बढ़ने लगीं। मैं बिल्कुल हिले डुले बिना किचन के दरवाजे से चिपका देखने लगा।
चूहे ने पिंजरे के दरवाजे से अंदर प्रवेश किया। पीछे के पैर से दरवाजे को नीचे दबाकर बिना पूरा अंदर गये रोटी का टुकड़ा पकड़ा और पीछे हटकर शान से चला गया।
मैं अवाक रह गया। ये चूहा है या आइंस्टीन।
अब कुछ और सोचना होगा।
वैसे तो मैं किसी भी प्राणी की जान लेने के खिलाफ हूं पर इस चूहे के लिए मेरे विचार बदल गए।
मैं बाज़ार से एक ट्रेप खरीदकर लाया। उसमें फंसे खाने को छूते ही स्प्रिंग से रोका हुआ लोहे का छल्ला तेजी से ट्रेप पर गिरकर काम तमाम कर देता था।
मैंने किचन में एक छुपे हुए कोने में जिसमें अंधेरा रहता था, ट्रेप में रोटी फंसाकर रख दिया और जाकर सो गया।
सुबह पांच बजे नींद खुली तो सोचा कि जाकर देखूं क्या हुआ।
किचिन में उस कोने की तरफ़ बढ़ा तभी मेरा पैर किसी चीज़ से टकराया और मेरी चीख पूरे घर में गूंज गई।
ट्रेप में मेरा पैर था और वो ट्रेप किचन में बीच में रखा था जिसे उस चूहे ने खींच कर यहां पहुंचा दिया था। उसमें से रोटी का टुकड़ा गायब था।
श्रीमती जी मेरी चीख सुनकर किचन में भागी भागी आईं और मेरे खून से लथपथ पैर को देखने लगीं।
मैंने कातर निगाहों से उनकी तरफ़ देखा। उनको मुझ पर दया आ गई और उन्होंने वो ट्रेप निकालकर मरहम पट्टी की और मुझे एक पेन किलर दे दी। उनके तेवर देखकर मैंने आंख बंद करके रजाई में मुंह छुपाना ही बेहतर समझा।
ऑफिस जाने के लिए जब मैं कार की तरफ़ जा रहा था तो लंगड़ा कर चल रहा था। तभी मिश्रा भाभी की आवाज़ आई,
" क्या हुआ भाईसाहब ? लंगड़ा रहे हो "
सच कहूं तो मिश्रा भाभी का "भाईसाहब" कहना मुझे कतई पसंद नहीं था। उनके मामले में मैं " भाभीजी घर पर हैं " के विभूति नारायण से कहीं भी उन्नीस नहीं था। फिर भी मैं मन मारकर जवाब देने के लिए मुंह खोलने ही वाला था कि श्रीमती जी की आवाज़ गूंजी,
" चूहे के लिए ट्रेप लगाया था आपके भाईसाहब ने, खुद फंस गए उसमें। चूहा इनसे ज्यादा होशियार था। "
मिश्रा भाभी की हंसी मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी इसलिए चुपचाप कार में बैठकर ऑफिस के लिए निकल गया।
दिन भर कानों में श्रीमती जी का डायलॉग " चूहा इनसे ज्यादा होशियार था " और मिश्रा भाभी की हंसी गूंज रही थी।
ऑफिस के महाग्यानी शुक्ला जी से सलाह ली तो उन्होंने कहा,
" अरे खरे साहब ! आप भी कहां इन चक्करों में पड़े हैं। बाज़ार से चूहा मारने वाला केक लाइए और रोटी के टुकड़ों के बीच में छोटे छोटे पीस करके रख दीजिए। चूहा आपको मरा मिलेगा सुबह। हमने तो ऐसे पचासों चूहे मारे हैं। आपके इस इकलौते चूहे की बिसात ही क्या। "
मन तो नहीं हो रहा था ऐसा करने का लेकिन अब वो चूहा मेरे होशियार होने पर भी प्रश्नचिन्ह लगा चुका था इसलिए मान गया।
केक लाया और जैसा शुक्ला जी ने बताया था वैसे ही एक प्लेट में किचन में प्लेटफार्म पर रख दिया।
" अलविदा मिस्टर चूहे " बुदबुदाते हुए जाकर सो गया।
सुबह-सुबह उठ कर किचन की तरफ लगभग भागते हुए पहुंचा। प्लेट में सिर्फ केक के टुकड़े रखे थे और रोटी के टुकड़े नदारद थे।
मैंने माथा पीट लिया।
तभी श्रीमती जी आ गईं और गुस्से से बोली,
" आप इतना पागल हो गए हो उस चूहे के कारण कि बिना सोचे-समझे कुछ भी कर रहे हो। मालूम है ना कि घर में छोटे छोटे बच्चे हैं। अगर उन्होंने उठा के खा लिया ये सब तो क्या होगा, सोचा है ? खबरदार अब उस चूहे के चक्कर में कुछ भी किया तो। "
बात वो सही कह रहीं थीं कि अब मैं जुनूनी होता जा रहा था उस चूहे को लेकर लेकिन मुझे उस चूहे से हार बर्दाश्त नहीं हो रही थी।
तो ये था अभी तक का किस्सा मैरी नाकामयाबी का। आज मैंने तय कर लिया था कि अब लुकाछिपी बहुत हो गई। अब उस चूहे का खुलेआम सामना करूंगा।
इसके लिए मैंने हथियार भी जुटा लिए थे। एक डंडा जो पिताजी उपयोग करते थे, पुरानी पेटी से गुलेल निकाल ली थी और छोटे छोटे पत्थर के टुकड़े इकठ्ठा कर लिए, गार्डन के स्टोर से एयर गन उठा लाया और बच्चों का क्रिकेट का बैट ।
अब मैं तैयार था।
मैंने बाहर का दरवाजा लटका दिया जिससे वो बाहर न भाग सके और उसके आने के इंतजार में किचन की खिड़की पर नज़र गड़ा दी क्योंकि वो अक्सर वहीं से आता था।
वो आया भी वहीं से जैसे मुझे चैलेंज कर रहा हो कि मैं तो आऊंगा तुझसे जो उखाडते बने उखाड़ ले। मैंने भी आज उसको आने दिया।
वो अंदर आकर प्लेटफार्म पर से गुजरकर उस तरफ़ चला गया जहां सब्जियां रखी होती हैं।
मैंने धीरे से जाकर खिड़की इस तरह बंद कर दी कि वो वहां से वापस न जा सके। अब मैंने नज़र दौड़ाई तो वो मुझे टमाटर की टोकरी पर चढ़ा दिखा। मैंने एयर गन लोड की और निशाना लगाकर फायर किया।
छर्रा टोकरी से टकराया और टोकरी पलटकर जमीन पर आ गिरी। साथ में वो भी गिरा। सारे टमाटर किचन में फैल गये पर मुझे इस बात की परवाह नहीं थी।
उसके गिरने ने मेरा जोश बढ़ा दिया था।
मैंने फिर उसको निशाने पर लेकर फायर किया। छर्रा उसको लगभग छूते हुए पीछे रखे ऑईल के डब्बे में जा घुसा। उसमें से ऑईल रिसने लगा।
चूहे ने खतरा भांप लिया था इसलिए उसने किचन के बाहर दौड़ लगा दी और बेडरूम में घुस गया।
" अब यहां तुझे कौन बचाएगा बच्चू " ऐसा सोचते-सोचते मैं भी बेडरूम में पहुंच गया।
वो ड्रेसिंग टेबल के ऊपर बैठा था।
मैंने एयर गन एक तरफ़ रखी और हाथ में क्रिकेट बैट लिया और जोर से उसको मारा।
ड्रेसिंग टेबल का सारा सामान कमरे में बिखर गया लेकिन वो छलांग लगाकर बेड के नीचे घुस गया।
मैंने गुलेल ली, जमीन पर झुका और निशाना साधकर पत्थर चलाया। पत्थर पलंग के नीचे से क्रास करके सामने की दीवार से टकराकर उछला और लौटकर पलंग के बाजू में रखे लेंप से टकराया।
लेंप धड़ाम से जमीन पर गिरा और चकनाचूर हो गया।
अब मेरा पारा और चढ़ गया।
वो पलंग के नीचे से निकलकर कवर्ड के ऊपर चढ़ गया।
मैंने दुबारा निशाना लगाया।
इस बार निशाना चूका और पत्थर कवर्ड के बगल में टंगी दौड़ते हुए घोड़ों वाली सीनरी में जा लगा। सीनरी के कांच ने स्पाॅट पर ही दम तोड़ दिया और सीनरी लहराती हुई इस तरह जमीन से जा टकराई कि उसमें बने घोड़े जमीन चाट रहे थे।
मेरा ध्यान सीनरी पर गया और चूहे को वहां से भागने का मौका मिल गया।
उसने इस बार हाल को अपना ठिकाना बनाया।
मैं भी अस्त्र-शस्त्र सहित हॉल में पहुंचा। वो बड़ी शान से सोफे पर विराजमान था।
मैंने बिना वक्त गंवाए डंडा सोफे पर चला दिया। उसने तो छलांग लगा दी लेकिन ढीले हाथ से डंडा चलाने के कारण मैं भी डंडे के साथ सोफे से जा टकराया।
मैं नीचे था और सोफा मेरे ऊपर।
मैंने ताकत लगाकर सोफा हटाया तो महानुभाव सामने शोकेस पर बैठकर टुकुर-टुकुर मेरी तरफ़ देख रहे थे।
मेरा गुस्सा अब सातवें आसमान पर था और मेरी सोचने-समझने की शक्ति हवा हो चुकी थी।
मैंने डंडा चलाया।
डंडा चलाते वक्त मेरा पैर कालीन में फंसा और मैं शोकेस के साथ जमीन पर था।
शोकेस का सारा सामान पूरे हॉल में बिखरा मुझे चिढ़ा रहा था और वो बेरहम चूहा बड़े आराम से टीवी के ऊपर बैठा मेरी तरफ़ अजीब सी नज़रों से देख रहा था जैसे मेरा मजाक उड़ा रहा हो।
मैंने क्रिकेट बैट लिया और उसकी तरफ़ बढ़ा।
वो मेरा इरादा समझ गया और उसने वहां से छलांग लगा कर किचन को फिर से अपना ठिकाना बनाया।
मैं विलेन की तरह चाल चलते किचन में पहुंचा।
इतनी भाग-दौड़ में वो भी हांफ गया था और प्लेटफॉर्म पर बैठा था।
मैंने उसकी तरफ़ क़दम बढ़ाए, अपना बैट वाला हाथ ऊंचा किया और पूरी ताकत से बैट घुमाया।
तभी मेरा पैर पूरे किचन मैं फैल चुके ऑइल पर से फिसला। बैट हाथ से छूटकर किचन में रखे डब्बों वाले रैक में जा लगा। मैं फ्रिज से टकराया। फ्रिज मेरे ऊपर गिरा। मेरा सिर जमीन से टकराया और मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया।
जब आंख खुली तो श्रीमती जी मेरे ऊपर झुकी हुई थीं और मेरे चेहरे पर पानी के छींटें मार रहीं थीं।
उनके पीछे मिश्रा भाभी खड़ी हुई थीं और मुझे मज़ाक उड़ाती नज़रों से देख रही थीं।
मैंने उठने की कोशिश की तो कमर ने धोखा दे दिया।
मैं कराह उठा।
मैंने इधर-उधर नज़र दौड़ाई तो वो पापी चूहा किचन के लाफट पर रोशनदान के पास बैठा मुझे देख रहा था।
मेरे देखने पर वो रोशनदान से बाहर जाने लगा जैसे मुझे कहकर जा रहा हो कि मैं फिर आऊंगा तेरे से जो बन पड़े कर लेना।
मैंने एक ठंडी आह भरी और अपनी आंखें फिर से बंद कर लीं।