‘मित्रो मरजानी’! हिन्दी का एक ऐसा उपन्यास है जो अपने अनूठे कथा-शिल्प के कारण चर्चा में आया। इस उपन्यास को जीवन्त बनाने में ‘मित्रो’ के मुँहजोर और सहजोर चरित्र ने विशिष्ट भूमिका निभाई है। ‘मित्रो मरजानी’ की केन्द्रीय पात्र ‘मित्रो’ अभूतपूर्व है...इसलिए भी कि वह बहुत सहज है। मित्रो की वास्तविकता को कृष्णा सोबती ने इतनी सम्मोहक शैली में चित्रित किया है जिसकी मिशाल हिन्दी उपन्यासों में अन्यत्र देखने को नहीं मिलती और वास्तविकता पूरे उपन्यास में एक ऐसा तिलस्म रचती है जिससे यह अहसास जगता है कि मित्रो कोई असामान्य, मनोविश्लेषणात्मक पात्र नहीं है। हाँ, यह सच है कि हिन्दी उपन्यासों में इससे पहले ‘मित्रो’ जैसा चरित्र नहीं रचा गया। जबकि हिन्दी समाज में मित्रो जैसा चरित्र अतीत में भी था और आज भी है। यह तो कृष्णा सोबती की जादूई क़लम और उनकी संवेदनशीलता का कमाल है कि ‘मित्रो मरजानी’ में ‘मित्रो’ के रूप में समाज की इस स्त्री को दमदार दस्तक देने का अवसर मिला। हिन्दी उपन्यास-जगत में अपनी उपस्थिति का उजास भरनेवाली मित्रो ऐसी पहली नारी पात्र है जिसकी रचना में लेखक को बहुत साहस, निर्ममता और ममता की ज़रूरत पड़ी होगी। ऐसे में अपने उपन्यास के एक चरित्र को ढालने के लिए कृष्णा सोबती को इस पात्र से आत्मीय परिचय और तादात्म स्थापित करना पड़ा हो तो आश्चर्य नहीं।
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