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I still remember, My first teacher ,Mr. Ravi ranjan कुछ अलग बात थी उनकी ,साइकिल उनकी सवारी थी ,और बातें उनकी निराली थी ,शब्द , अक्षर , संख्या और अल्फाबेट, का पहला ज्ञान उनसे ही मिला था
भारत एक लोकतांत्रिक देश है और यहां कोई भी फैसला लोकतंत्र के दायरे में रहकर करना चाहिए। अगर आप इस देश को निरंकुशता की तरफ धकेलना चाहते है तो फिर तो कोई बात नहीं लेकिन अगर लोकतंत्र की गरिमा बरकरार रखनी
मैं एक किताब लिखना चाहता हूँ ,मेरे सपनों की किताब ,जिसमें कहानियां हो ,कवितायें हो ,और उन कहानियों कविताओं में ,सिर्फ खुशियां हो ,उन कहानियों में ,लड़कियां आजाद हो ,उन्हें फैसले लेने का अधिकार हो ,उन्
शाम ढलने लगी है,इस से पहले की रात का अंधियारा दिल में उतर जाए,हम लौट जाएंगे आसियाने की तरफ,ताकि अगली सुबह जब सूर्य अपने किरणें बिखेडे,तो फिर एक बार दिल में,तेरे वापिस आने की आस जगे,और हम तेरे इंतजार म
सुनो,फिर एक बार, गुलाबी ठंड ने दस्तक दी है,पसंद था ना तुम्हे ये मौसम,हल्की गुनगुनी धूप,पर देखो ये मौसम,ठंडी हवा के साथ साथ,तुम्हारी यादें भी ले आई है,पर आलम ऐसा है की,ना तुम आई,और न पहले वाली वो
दर्द, तकलीफ और पीड़ा,ये क्या चीज है कभी उनसे पूछिए,जो अपने ही घर में,मेहमान बन कर आते है,दिवाली, छठ पूजा के आते ही,अपना बोरिया बिस्तर लेकर,कुछ सुकून के पल बिताने,अपने गांव आते है,और छठ के अगले दिन ही,
कुछ तो मौसम की खुमारी थी,और कुछ तुम्हारी अदाएं बेईमान थी,यूं ही नहीं हारा था दिल तुम पर,कुछ तुम्हारी आंखों का कमाल था,और कुछ खनकती पायल का आलम था.....
आज भी तुम मुझमें मौजूद हो,कभी चेहरे की हंसी बनकर,तो कभी आंखों की नमी बनकर......
मैं बनारस की घाट,तो तुम कलकल बहती गंगा की धारा बन जाना,मैं तपती धूप,तो तुम सुबह की ओस बन जाना, तुम कभी ढलती शाम,तो मैं चांदनी रात बन जाऊंगा,कितने हसीन वो पल होंगे,कभी तुम मैं बन जाना,और कभी मैं त
<div align="left"><p dir="ltr">कैसे कह दूं मुझे तुमसे प्यार नहीं,<br> आज भी हर सुबह तुम्हारा इंतज़ार