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मुस्कुराते रहो!

18 नवम्बर 2015

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पंडित जी हवन करते समय एक
चम्मच घी आग में ङालते और
एक चम्मच घी अपने ङिबबे मे ङालते जा रहे थे!

पास बैठे अपने एडमिन साहब चिल्लाकर बोले,
घृतम चोरम, घृतम चोरम !

पंडीत जी एडमिन साहब को चुप कराते हुए बोले,
पुत्र ना कर शोरम, ना कर शोरम!
आधा तोरम, आधा मोरम

ॐ स्वाह ॐ स्वाह ॐ स्वाह !!

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आज कल के बच्चे रिफ्रेश होने के लिए जहाँ वाटर पार्क,
गेम सेंटर जाने की जिद करते हैं

वहीं हम ऐसे बच्चे थे जो मम्मी-पापा के एक झापङ से ही फ्रेश हो जाते थे.!

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वो भी क्या दिन थे….?

जब बच्चपन में कोई रिश्तेदार जाते समय 10 ₹ दे जाता था..

और माँ 8₹ टीडीएस काटकर 2₹ थमा देती थी….!!!

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जुड़वां बच्चे अपने कमरे में बैठे थे। 
एक हंस-हंस के लोटपोट हो रहा था, जबकि दूसरा उदास था। 

पिता: इतना क्यों हंस रहे हो
बच्चा: इतनी ठंड में मम्मी ने दोनों बार इसी को नहला दिया …!



अमित

अमित

हँसी वाली फोटो हाहा . .

18 नवम्बर 2015

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रचनाएँ
halkifulkibaatein
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मच्छर चालीसा!

10 सितम्बर 2015
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ओम जय! मच्छर देवा,स्वामी जय! मच्छर देवा,रात को सोने ना दो तुम,काट-काट करते हो बेहाल तुम,खून पियों सबका,ओम जय! मच्छर देवा!मलेरिया एवं डेंगू के तुम हो दाता,किसी का निद्रा-सुख तुम्हे ना भाता,राग सुनाते हो ऐसा,ओम जय! मच्छर देवा!

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एअर कंडीशन नेता ( हास्य कविता )

27 अक्टूबर 2015
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ओ घोड़ी पर बैठे दूल्हे क्या हँसता है! ( हास्य कविता )

27 अक्टूबर 2015
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ओ घोड़ी पर बैठे दूल्हे क्या हँसता है!!देख सामने तेरा आगत मुँह लटकाए खड़ा हुआ है .अब हँसता है फिर रोयेगा ,शहनाई के स्वर में जब बच्चे चीखेंगे.चिंताओं का मुकुट शीश पर धरा रहेगा.खर्चों की घोडियाँ कहेंगी आ अब चढ़ ले.तब तुझको यह पता लगेगा,उस मंगनी का क्या मतलब था,उस शादी का क्या सुयोग था.अरे उतावले!!किसी

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हंसी एक्सप्रेस

27 अक्टूबर 2015
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सरदार पटेल

31 अक्टूबर 2015
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हँसते-हँसते हो जाओगे लोटपोट!

5 नवम्बर 2015
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टीचर: सच ओर वहम में क्या फ़र्क़ है ?स्टूडेंट: आप जो हमें पढ़ा रही हैं वो सच है, लेकिन हम सब पढ़ रहे हैं ये आपका वहम है…….लड़की –बादल गरजे तोतेरी याद आती हैसावन आने सेतेरी याद आती हैबारिश की बुंदों मेंतेरी याद आती हैलड़का-पता है पता है तेरी छतरी मेरे पास पड़ी है लौटा दुंगा, मर मत….बंटू को सड़क पे 100

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मुस्कुराते रहो!

18 नवम्बर 2015
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पंखा पुराण (हास्य कविता)

23 नवम्बर 2015
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जब उसने मुझे भइया कहा ( हास्य कविता)

27 नवम्बर 2015
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मैंने ना जाने कितने सपने बुने सपने बुने फिर वे धुने किन्तु दिल का इकलौता अरमाँ आसुओं में बहा जब उसने मुझे देखते ही भइया कहा। होटल में गया वेटर को बुलवाया बिरयानी और न जाने क्या क्या मंगवाया किन्तु मेरा दिल वहाँ भी रोता ही रहा बिल चुकता करने के बाद  जब चिट पर लिख कर आय

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