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नालायक

9 अगस्त 2018

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शादी करके, घर में कलह करके, अलग होकर, मुझे रुलाकर आज चार साल बाद घर से अलग होने के बाद बड़े बेटे का फ़ोन आया वह कुछ कहना ही चाहता था कि मैं आदतन शुरू हो गया, नालायक तेरी हिम्मत कैसे हुई, फ़ोन करने की तू तो उसी दिन ही मर गया था हमारे लिए, जिस दिन ये घर छोड़ कर गया था, वो कुछ कहना ही चाहता था कि मैंने फ़ोन पटक दिया।

कुछ देर बाद बाद मेरे छोटे भाई का फ़ोन आया कि भाई साहब मनोज का फ़ोन आया था क्या! हाँ,आया था, कुछ कहना चाहता था , मैंने खरीखोटी सुना कर फोन पटक दिया। " ये क्या किआ भाई साहब, उसे ब्लड कैन्सर है, कई जगह दिखा चुका है! सब डॉक्टर सिर्फ ढांढस ही दे रहे हैं,"
क्या!! मेरे मुंह से अचानक नकल पड़ा ओर आंसुओं की आंखों से झड़ी लग गई।

अब की बार मैंने फ़ोन मिलाया, लेकिन कुछ बोल न पाया सिर्फ आंखों से आंसुओं की झड़ी ओर आवाज़ की जगह सिसकी निकल रही थी, उधर से वह बोला पापा मुझे पता है कि चाचा ने बताया दिया होगा आपको, मुझे माफ़ कर देना सच्चे दिल से बददुआ ली थी ये तो होना ही था।
मैने कहा नहीं बेटा, कुछ नही होगा। मैंने कभी बददुआ नहीं दी। आपने नहीं दी, लेकिन उसकी लाठी में आवाज़ नहीं होती आपकी वह बात आज मुझे आ समझ आ गई है, लेकिन समझ आते बहुत देर हो गई है कहकर उसने फ़ोन रख दिया।

आज मनोज तो नही है। बहू मेरी सेवा करती है, लेकिन अपने शब्दों पर मुझे पछतावा हो रहा है।

आलोक फोगाट

नरेंद्र जानी

मेकानिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा भिलाई इस्पात संयंत्र में कार्यरत . खेल कूद , साहित्य , संगीत से विशेष प्रेम . पर्यटन , समाज सेवा , में रूचि .

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