माँ कहाँ गई
आज माँ को गुज़रे हुए साल होने को आया। धीरे-धीरे सब
नॉर्मल होने लगा था।सब काम धंधे पहले की ही तरह चलने लगे थे।
एक दिन गीता (मेरी पत्नी) सफाई करते समय माँ की अलमारी
को भी जो अस्त व्यस्त पड़ी थी, ठीक करने लगी जिसमे माँ
के पुराने कपड़े रखे थे।मैं उस समय वहीं खड़ा था। गीता मां का वह पीला सूट तहाने लगी
जिसे माँ सबसे ज्यादा पहनती थी, क्योंकि वह मैने अपनी
पहली जॉब की पहली सैलरी से खरीदकर मां को दिया था। माँ ने पहले मेरा माथा चूमा था, फिर इस सूट को।
गीता के हाथ मे वह
सूट देख कर सारी यादें फिर दिमाग मे घूम गईं ओर बरबस ही मेरे आंसू आंखों से बह
निकले, उससे
सूट छीन कर मैं उस सूट से लिपटकर खूब रोया। घर के सब सदस्य मुझे धीरज दे रहे थे।
पापा बोले, “बेटा तुम्हारी माँ मरी नही वो हमेशा जिन्दा रहेगी हमारी यादों, हमारे
दिल मे”।
मैंने मां का वो सूट
सम्हालकर रख लिया , जब माँ याद आती है उसमें
मुँह छुपा लेता हूँ।
आलोक फोगाट
नरेंद्र जानी
मेकानिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा भिलाई इस्पात संयंत्र में कार्यरत . खेल कूद , साहित्य , संगीत से विशेष प्रेम . पर्यटन , समाज सेवा , में रूचि .