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नर्म

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कविता कभी अनकही बातों की अदा हैं कविता, कभी गम की दवा हैं कविता।कमी नही कहने वालों की कोई, वरना जमी पर खुद होती कविता। रात की चाँदनी ने सराहा तो दिन की तपन ने निगल लिया। फूलो की खुशबू को भौरों ने सराहा तो माली ने चुन लिया।कविता को जान समझा तो उसने भी झूठा समझ लिया। गर पता होता ये जुर्म मुझको तो खुद

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