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अकेला

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कविता कभी अनकही बातों की अदा हैं कविता, कभी गम की दवा हैं कविता।कमी नही कहने वालों की कोई, वरना जमी पर खुद होती कविता। रात की चाँदनी ने सराहा तो दिन की तपन ने निगल लिया। फूलो की खुशबू को भौरों ने सराहा तो माली ने चुन लिया।कविता को जान समझा तो उसने भी झूठा समझ लिया। गर पता होता ये जुर्म मुझको तो खुद

अकेले ही आया था वह इस धरा पर,जाएगा भी अकेले ही इस धरा से; सबसे पहले मां साथ आयी,फिर पिता ने हाथ पकड़ा,और बाद में जुड़ गया परिवार से।थोड़ा बड़ा हुआ आसपड़ोस का हुआ सामना,कभी इस घर तो कभी उस घर खेलने लगा ;और बड़ा होने पर स्कूल में प्रवेश के साथ

"मुक्तक"पंक्षी अकेला उड़ा जा रहा है।आया अकेला कहाँ जा रहा है।दूरी सुहाती नहीं आँसुओं को-तारा अकेला हुआ जा रहा है।।-१जाओ न राही अभी उस डगर पर।पूछो न चाहत बढ़ी है जिगर पर।वापस न आए गए छोड़कर जो-वादा खिलाफी मिली खुदगरज पर।।-२महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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