कविता
कभी अनकही बातों की अदा हैं कविता, कभी गम की दवा हैं कविता।
कमी नही कहने वालों की कोई, वरना जमी पर खुद होती कविता।
रात की चाँदनी ने सराहा तो दिन की तपन ने निगल लिया।
फूलो की खुशबू को भौरों ने सराहा तो माली ने चुन लिया।
कविता को जान समझा तो उसने भी झूठा समझ लिया।
गर पता होता ये जुर्म मुझको तो खुद को कविता के हवाले कर दिया होता।
आज न सहता ये ज़िल्लत तो कितना करीब पहुँच गया होता।
आज इस तनहाई को अकेला न सह रहा होता बन गई होती मेरे अधरो की कविता।
सासे भी नर्म होती दिल भी नर्म होता, इन्ही अनकही बातों की अदा हैं कविता।