कुछ अपना सा कुछ पराया सा
आज फिर घेर रहा है ये साया मुझे कुछ अंदर से कुछ बाहर से,हर तरह से जहन पर छाने की कोशिश है इसकी ये कुछ अपना सा कुछ पराया सा,हर खुशी को छन्नी छन्नी कर मेरेजज्बातों को कुचलता हुआ ये मेरे मन की गहराई में समाता जा रहा है कुछ निडर सा कुछ निर्भय सा मेरा खुद का अस्तित्व भीपता