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निराशा से सफलता की ओर

अमर

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                                भाग- 01                    आज जब उसका राज्य प्रसाशनिक सेवा की परीक्षा  का परिणाम आया था और वह इसमें डिप्टी कलेक्टर के पद पर चयनित हुआ था । घर में सभी लोग बहुत खुश थे कि बेटा बड़ा अधिकारी बन गया है पर वह ना खुश था, ना ही उदास था। वह किसी सोच में डूबा हुआ था ।          अपने कमरे में बिस्तर पर बैठा कुछ सोच रहा था, कि माँ आईं और बोली यहाँ क्या कर रहा है सभी तुझे बुला रहें हैं , चल बाहर चल । उसने झूठ बोला था-  कहा थोड़ा सिर दर्द है ।आराम कर लू ,तो थोड़ा ठीक हो जाएगा।                        माँ का दिल तो माँ का दिल है ,वह फिर सब छोड़ कर उसे बाम लगाने लगी तो उसने कहा आप मेहमानों के पास जाओ मैं सोना चाहता हूँ। माँ जाने लगी, उसने बोला कोई भी मुझे परेशान ना करे इसलिए आप दरवाजा बन्द कर देना।              माँ के जाने के बाद वह बिस्तर पर लेट गया और सोचना लगा कि जो रिश्तेदार आज उसकी सफलता की खुशी मना रहे हैं , मिठाई खा रहे हैं ।यही आज से 5 साल पहले कैसे-कैसे ताने मार रहे थे। उसे बहुत अच्छे से याद है, कि वह 5 साल पहले बारहवीं  कक्षा में फेल हो गया था और सभी रिश्तेदार जो आज आये है,उस दिन भी आये थे ।                                     बहुत सुनाया था। उसे की तेरे बड़े भाई बहिनों को देखा है हर साल प्रथम श्रेणी में परिणाम लाते हैं । उसके सबसे बड़े भाई शुरूआत से प्रत्येक वर्ष अपनी कक्षा में प्रथम आते थे और उनसे छोटी बहिन भी हर साल अपनी कक्षा में कभी पहले , कभी दूसरे स्थान पर रहती थी। वह सबसे छोटा था जो हर साल तृतीय श्रेणी में पास होता गया और आज वह बारहबी में फेल हो गया था। सभी उसे यही कहते कि इसने तो समाज में नाक ही कटा दी है , यह छोटा तो बड़ा ही खोटा निकला। पता नहीं क्या होगा इसका??? अच्छी नौकरी तो छोड़ो यह चपरासी भी बन जाये तो बहुत है । ऐसे कितने ही ताने सुने थे।               सभी लोग ताने मारकर अपने -अपने घरों को चले गए थे, पर पिताजी के पास जब वह गया तो पिताजी ने माँ से कहा कि इससे कहो कि यह यहाँ से चला जाये, मुझे इससे कुछ बात नहीं करनी है । आज इसने मेरा सिर शर्म से झुका दिया। मैंने कभी अपने बच्चों पर किसी भी बात के लिये दबाव नहीं डाला ,ना कभी पढ़ाई को लेकर ना कभी किसी और बात को लेकर ।           यह हर बार परीक्षा में तृतीय श्रेणी से पास हुआ , तब भी मुझे दुख नहीं हुआ । सोचता था ,चलो पास तो हो ही जाता है ,और जीवन में कुछ ना कुछ तो कर ही लेगा पर आज यह नालायक  फेल हो गया ।यह तृतीय श्रेणी में भी पास ना हुआ।         उन्होंने  माँ से कहा कि इससे कह दो कि आज के बाद मुझसे किसी भी प्रकार की बात ना करें ,और यदि कुछ चाहिए तो वह तुम मुझे बता देना ।              यह मेरा बेटा है ,तो इसके पालन पोषण की जबाबदेही मेरी है । यह कर्तव्य में हमेशा निभाउंगा पर यह मुझसे किसी भी प्रकार के संवाद की कोई भी उम्मीद ना रखे ।        अपने जीवन में यदि कुछ अच्छा करेगा और मुझे लगेगा कि इसके कारण मेरा सिर गर्व से ऊंचा हुआ है, तो मैं ही खुद इससे बात करूंगा और मुझे नहीं लगता कि शायद यह कभी होगा।         माँ ने कुछ कहना चाहा तो उन्होंने हाथ के इशारे से माँ को बोलने से मना किया और सीढ़ियों से छत की ओर चले गए। आज सही में उसने अपने पिता का दिल दुखाया था । घर में सभी जानते थे कि पिताजी जो निर्णय एक बार ले लेते थे, वह कभी भी किसी भी कीमत पर नहीं बदला जा सकता था।                 इसलिए माँ की आँखों में आज पहली बार उसने आँसू देखे थे। वह भी माँ को देखकर रुआंसा हो गया था ,पर अब उसे घर में घुटन महसूस होने लगी थी। ऐसा लग रहा था कि कोई उसका गला दबा रहा था । वह पलटा और तेजी से घर के बाहर दौड़ लगा दी । उसे अपने कानों में माँ और उसके भाई-बहिन की आवाज कुछ दूर तक सुनाई दी थी जैसे वह उसके पीछे दौड़ती हुए आ रहे हो। पर वह तो अपनी आँखों में आंसू लिये सामने देखता हुआ पूरी ताकत से दौड़ा जा रहा था । माँ बेहोश हो चुकी थी और भाई-बहिन माँ को ठीक करने में लग गए, फिर उन्होंने उसके तरफ ध्यान ही नहीं दिया।                उसके दिमाग में केवल यही चल रहा था कि वह अब जीना नहीं चाहता ,मर जाना चाहता है। वह तब तक दौड़ता रहा जब तक थककर निढाल नहीं हो गया । जहां रुका वहीं पास में कच्ची सड़क जो खेतों को जाती थी । सड़क किनारे पेड़ का सूखा ठूठ पड़ा था ,उसपर बैठ गया ।कुछ देर बैठने के बाद उसे प्यास लगी तो देखा कुछ दूर पर सरकारी नल लगा हुआ था ,जाकर पानी पिया मुँह हाथ धोया । अब उसे कुछ ठीक लग रहा था।                  फिर आकर उसी लकड़ी के ठूठ पर बैठ गया और सोचने लगा अब लौटकर घर नहीं जाऊंगा । सबसे कहीं दूर चला जाऊंगा । एक दो साल बाद सभी उसे भूल जाएंगे और वह अब किसी की बदनामी का कारण नहीं बनेगा। शाम होने लगी थी ,किसान अपने -अपने खेतों से लौटकर घरों की ओर जाने लगे थे । चरवाहे अपने जानवरों को भी वापिस गाँव की ओर लेकर जा रहे थे।  वह वहीं बैठा हुआ था, वे सभी अपनी अपनी बातों में व्यस्त चले जा रहे थे । उसपर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। वह वहीं बैठा शून्य में देखता रहा ।                    जब अंधेरा हो गया और सड़क सुनसान हो गई, दूर गांव में कुत्तों के भौकने की आवाज आने लगी। तब भी वह कहीं खोया हुआ था । उसकी तंद्रा तब टूटी , जब सामने से आते हुए किसी वाहन की तेज रोशनी उसकी आँखों में पड़ी। वह वाहन उसके सामने सड़क पर रुका उसमें से कुछ दो-तीन यात्री उतरे , तो कंडक्टर ने उसे आवज लगाकर पूछा चलना है क्या???           उसे लगा कि यह लकड़ी का ठूठ यात्रियों के बैठने की सुविधा के लिये किसी ने रख दिया होगा। इसलिए यह कंडक्टर मुझे भी यात्री समझ रहा है , उसे खोया हुआ देखकर कंडक्टर ने फिर एक बार जोर से आवाज लगाई तो उसने इधर-उधर देखा । वहाँ कोई भी नहीं था तो वह सीधा बिना बोले पिछले दरवाजे से  बस में चढ़ गया और आखरी सीट पर जाकर कोने में बैठ गया । उसे नहीं पता था कि यह बस उसे कहाँ लेकर जा रही है क्योंकि आज से पहले वह कभी आस-पास के गांव के अलावा कहीं भी नहीं गया था । जो 5-6 बार शहर गया था तो वह भी अपने पिताजी के साथ ही गया था।               आज वह बस में अकेला ही था यह बस का सफर उसे कहाँ लेकर जाएगा उसे नहीं पता था उसे पता था तो केवल यह कि वह यहां से अपने घर , गांव रिश्तेदारों से बहुत दूर जाना चाहता था। जहाँ पर उसे कोई ताने ना मार सके।          यही सोचते -सोचते उसे कब नींद आ गई पता ही नहीं चला। उसकी नींद तब खुली जब बस के हेल्पर ने उसे जगाया और बताया कि भाई उठ बस स्टैंड आ गया है। अब बस यहीं खड़ी होगी रात भर। जाओ यहाँ से , घर जाकर सोना।           उसे लगा कि जल्दी-जल्दी में कंडक्टर किराया लेना भूल गया , क्योंकि जब वह बस में बैठा था तो अगले गांव से 20-25 लोग बस में और चढ़े थे और यहीं क्रम तीन -चार स्टाप पर अनवरत चलता रहा।          अब वह उस हेल्पर को कैसे बातयें कि वह तो घर बहुत पीछे छोड़ आया था। उसने बस से उतरते हुए पूछा कि भैया कितने बजे गए हैं। हेल्पर ने बिना उसकी तरफ अपना काम करते हुए जबाब दिया, साढ़े ग्यारह बजे हैं।              वह बस से उतर गया , इधर -उधर नजरें दौड़ाई तो देखा कि अभी बस स्टैंड में कुछ भीड़ भाड़ थी।  कुछ बसें आ रहीं थी तो कुछ बसें रवाना होने की तैयारी में थी। अब उसे कुछ भूख का एहसास होने लगा था ।उसे याद आया कि उसने आज सुबह से कुछ नहीं खाया था।    सुबह घर से बिना कुछ खाये दोस्तों के साथ निकल गया था।  दोपहर को लौटकर आया तब तक उसका परीक्षा परिणाम आ चुका था, उसके बाद तो रिश्तेदारों के तानों और कड़वी बातों से ही उसका पेट भरा था। जैसे ही रिश्तेदारों का ख्याल उसके दिमाग में आया फिर से वह खीझ उठा और सामने पड़े पत्थर पर पैर मारा । जैसे ही पत्थर पर उसका पैर लगा पत्थर का नुकीला सिरा स्पंज की चप्पल होने के कारण उसके पैर में चुभ गया। दर्द से तड़प उठा वह।                    उसने पैर को देखा खून आ गया था। कुछ देर बैठकर पैर को सहलाता रहा जब कुछ दर्द कम हुआ तो उठकर पीने के पानी की टंकी के पास गया मुँह-हाथ धोया और फिर पानी से खून साफ किया। अब तक खून बन्द हो चुका था ,क्योंकि चोट ज्यादा नहीं लगी थी।            उसे भूख का एक बार फिर आभास हो आया। सामने देखा एक छोटी होटल अभी भी खुली हुई थी । जेब में हाथ डालकर देखा तो एक पुराना सा 50 का नोट पड़ा था , उसे याद आया कि जब नानी घर आई थी तो, सबसे छुपाकर उसे वह नोट दिया था। उसका कोई फिजूल खर्च नहीं था तो आज भी वह नोट उसके जेब में था।             होटल पर पहुंचा पूछा कुछ खाने को मिलेगा तो वहाँ काम करने वाले लड़का जो उसी की उम्र का था, कहा सब खत्म हो गया है । केवल चाय मिल जाएगी । उसने कहा एक चाय और बिस्किट। लड़के ने  बेंच की ओर इशारा करके कहा बैठो और एक चाय  एक पैकेट पारले जी बिस्किट रखकर चला गया।                 उसने तुरन्त चाय में डुबोकर 3-4 बिस्किट कहा लिये। अब उसे अपनी भूख में कुछ आराम था। चाय खत्म करके पैसे चुकाकर बाहर निकल गया।            बस स्टैंड के बाहर आकर वह सुनसान सड़क पर जिस पर एक्का-दुक्का साइकिल रिक्शा चल रहे थे , और कुछ यात्री वापिस पैदल ही अपने घर की ओर जा रहे थे। अब वह चलने लगा था, वह इस अंजान शहर में जहाँ ना वह किसी को जानता था,  ना कोई उसे जानता था, चला जा रहा था।                 फुटपाथ पर कई मजदूर सो रहे थे और एक  रेडियो में गाना चल रहा था। वह वहीं फुटपाथ पर खाली पड़ी जगह पर बैठ गया और गाना सुनने लगा, किशोर कुमार जी की मन को मोह लेने वाली आवाज में गाना था। ज़िन्दगी का सफ़र है ये कैसा सफ़र कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं ज़िन्दगी का सफ़र है ये कैसा सफ़र कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं है ये कैसी डगर चलते हैं सब मगर कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं ज़िन्दगी को बहुत प्यार हमने दिया मौत से भी मोहब्बत निभायेंगे हम रोते रोते ज़माने में आये मगर हँसते हँसते ज़माने से जायेंगे हम जायेंगे पर किधर है किसे ये खबर कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं ऐसे जीवन भी हैं जो जिये ही नहीं जिनको जीने से पहले ही मौत आ गयी फूल ऐसे भी हैं जो खिले ही नहीं  जिनको खिलने से पहले फिजां खा गयी है परेशां नज़र थक गये चाहकर कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं ज़िन्दगी का सफ़र है ये कैसा सफ़र कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं @ अमर शर्मा            

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