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वो पगली दीवानी थी

29 दिसम्बर 2017

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हैं ये उन दिनों की बात हमारी जब कॉलेज में कहानी थी ,

वो अमावस की काली रात पर जब रोशनी की मेहरबानी थी,

चिन्ताओ के अधरों में जब खान पान हम भूले थे,

खोये थे ख्यालो में जिनके उनसे ज़िंदगी रवानी थी,

छुप कर ताका करती थी,

वो पगली दीवानी थी|

जात पात को समझ नहीं जब धर्मो को पहचानी थी,

तानो के पहनावे से जब मन में बोझिल होती थी,

खयालो की बातों से जब हम पैबस्त (गुस्सा) हो जाते थे,

नयन तरसाते नज़रो से जब भेंट नहीं हो पाती थी,

छुप कर रोया करती थी,

वो पगली दीवानी थी|

छुप-छुप कर मिलने आती जब सखी साथ होती थी,

बुत बन जाता रूह मेरा जब कोई अनभूति थी,

शब्दो की गलियारों में जब मकान उसने बनाया था,

दर्द गम भी सो जाते जब वो साथ होती थी,

गुलाब सी शर्माती थी,

वो पगली दीवानी थी|

वो पगली दीवानी थी|

कोई और नहीं थी वो पगली बस शब्दों की कहानी थी,

वो पगली दीवानी थी|

वो पगली दीवानी थी|

अतुल हिंदुस्तानी

(atul kumar)

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वो पगली दीवानी थी

29 दिसम्बर 2017
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हैं ये उन दिनों की बात हमारी जब कॉलेज में कहानी थी ,वो अमावस की काली रात पर जब रोशनी कीमेहरबानी थी,चिन्ताओ के अधरों में जब खान पान हमभूले थे,खोये थे ख्यालो में जिनके उनसे ज़िंदगीरवानी थी,छुप कर ताका करती थी,वो पगली दीवानी थी|जात पात को समझ नहीं जब धर्मो को पहचानीथी,त

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ऐ माँ

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