परिवर्तन
परिवर्तन गंगा की धारा बन कर बहता है
परिवर्तन है नियम सृष्टि का कण कण ये कहता है
परिवर्तन के प्रवाह में बह के जो जीवन जीता है
जीवन रूपी अमिट रसों को खुल कर के पीता है
वक्त प्रवाह में पत्थर बन कर जब भी जो अकड़ा है
काल चक्र के बंधन में जा कर के वो जकड़ा है
पीड़ी का अंतर जनरेशन गेप यही कहलाता है
जो भावों के रामघाट पे धुनी यहाँ रमाता है
हर पीड़ी का अधिपति है सबके मन का भाल है
तीन लोक में रमने वाला हर युग में “महाकाल” है