आज सुबह साढ़े आठ बजे नाश्ता कर सूरज प्रताप सिंह घर के दरवाजे खड़ी मोटरसाइकिल पर सवार होकर अपने गांव कासगंज से जिले मुंशीगंज स्थित अपने अग्रहरि डिग्री कॉलेज को जानें के लिए निकलने ही वाला था कि उसके पिता चौधरी सुखपाल सिंह बड़ी उत्सुकता से बोले," आज तुम्हरे दोस्त बलवंत सिंह के पिता ठाकुर सुखवंत सिंह से रिश्ते के सम्बन्ध मा मिले चाहित है।" ये कहकर उसके पीछे बैठकर चल दिए।
आधे घंटे में पिता पुत्र मुंशीगंज स्थित बलवंत सिंह के घर पहुंच गए। घर के बाहर चारों ओर से दीवार बनी। बीच में बड़ा लोहे का गेट खड़ा। अंदर एक ओर ट्रक और बड़ी गाड़ी बोलेरो खड़ी तो दूसरी ओर पेड़ के नीचे चबूतरा बना जहां गांव की पंचायत लगती है। थोड़ी दूर आगे बढ़ कर दस कमरों का घर बना। घर में सभी सुख सुविधा उपलब्ध थी। यह देख कर चौधरी सुखपाल सिंह बड़े नम्र स्वर में बोले," हम आपके घर आपन बिटिया माधुरी का रिश्ता ले कर आए हन।" ये सुनकर ठाकुर सुखवंत सिंह मुस्करा दिए।
ठाकुर सुखवंत सिंह की पत्नी कौशल्या देवी ने चौधरी सुखपाल सिंह के बोरी भर आम नौकर दीनू उम्र 30 वर्ष सीधा साधा सरल स्वभाव, से अंदर बरामदे में रखवा दिए। बड़े नम्र स्वर में बोली," भइया यू सब ठीक है लेकिन बिटिया कईस है। हमार लड़का के जोड़ केर है कि नाही। घर केर काम काज आवत है की नाही।" ये सुनकर सभी मुस्कराने लगे।
चौधरी सुखपाल सिंह बड़े नम्र स्वर में बोले," गोर हमरे जैसी। पढ़ाई हाई स्कूल पास करीस है। घर के काम काज मा महतारी ( मां ) का पूरा हाथ बंटावत है। तुम्हरे लड़का से तीन साल छोट है।" ये कहकर फोटो दिखा दी।
ठकुराइन कौशल्या देवी ने सुखपाल सिंह की बिटिया माधुरी को देखकर हां कर दी। बड़े नम्र स्वर में बोली," बिटिया तो तुम्हार सुंदर लागत। अभई सावन शुरू होय वाला है। बहुतै बरखा ( बारिश) होत है। अच्छे दिन नवरात्रन से शुरू होई। हम पण्डित रामलोचन चतुर्वेदी से बिचरवाय के अच्छे दिन मा तुम्हरी बिटिया का देखे अइबे।" ये सुनकर सभी मुस्कराने लगे।
अभी सब लोग बातों में मशगूल थे कि दोनों दोस्त बलवंत सिंह और सूरज प्रताप सिंह लगभग डेढ़ बजे छुट्टी के बाद घर पहुंच गए। सुखपाल सिंह बेटे को देखकर ठाकुर सुखवंत सिंह से बड़े नम्र स्वर में बोले," अच्छा भइया! अब हम घरे चलित है।" ये सुनकर सुखवंत सिंह ने दोपहर का भोजन कर जाने को कहा।
ठकुराइन कौशल्या देवी ने नौकरानी रमिया उम्र 28 वर्ष सीधी सरल स्वभाव, से कहकर रसोई के बाहर बरामदे में चौकी पर भोजन लगा कर बैठने के लिए आसनी रख दी। खाना लगा देखकर चौधरी सुखपाल सिंह मना नहीं कर पाए और भोजन के लिए आसनी पर बैठ ,भोजन करने लगे।
भोजन की थाली रखने के बाद पानी का गिलास रखने पर चौधरी सुखपाल सिंह ने बलवंत सिंह की बहन कुसुम लता सिंह को देखा तो बड़े नम्र स्वर में बोले," बिटिया बहुत सुशील और संस्कारी है ,जी( जिस )घर जाई वह घर धन्य हो जाई।" ये सुनकर ठकुराइन कौशल्या देवी के चेहरे पर खुशी छा गई।
ठाकुर सुखवंत सिंह बड़े नम्र स्वर में चौधरी सुखपाल सिंह से बोले," भइया तुम्हरे नजर मा कोऊ अच्छा लड़का हो तो बताओ।" ये सुनकर सभी उत्सुकता से देखने लगे।
चौधरी सुखपाल सिंह बड़े नम्र स्वर में बोले," इमा का ई लड़कन केर तीसरा साथी भानु प्रताप सिंह बहुत नीक लागत है। गांव चंदौली के रहे वाले।उकेर पिता चौधरी हरदयाल सिंह ग्राम प्रधान हैं। सीमेंट कांक्रीट सरिया का अच्छा कारोबार चलत। साथे खेती बाड़ी भी होत है।" ये सुनकर सभी अचंभित हो गए।
ठकुराइन कौशल्या देवी बड़े उत्सुकता से बोली," आप भानु प्रताप के पिता हरदयाल सिंह का कईसे जानत हो।" ये कहकर उनकी ओर उत्सुकता से देखने लगी।
चौधरी सुखपाल सिंह बड़े नम्र स्वर में बोले," ऊ हमरे रिश्तेदारी मा है। हमरे स्वर्गीय पिता हरपाल सिंह के उनके स्वर्गीय पिता गुरदयाल सिंह दूर के चचेरे भाई लागत हैं।" ये कहकर थोड़ा सा सकुचा गए।
ठाकुर सुखवंत सिंह बड़े नम्र स्वर में बोले," फिर कल ही हम उनके गांव जा कै बात करित है।" ये सुनकर चौधराइन कौशल्या ने भी हामी भर दी।
दोपहर ढाई बजे चौधरी सुखपाल सिंह भोजन के पश्चात ठाकुर सुखवंत सिंह से बिदा ले मोटरसाइकिल पर सवार हो बेटे सूरज प्रताप सिंह के साथ अपने गांव कासगंज के लिए चल दिए।
भोजन के बाद बलवंत सिंह अपने कमरे में जाकर आराम करने लगा। कौशल्या देवी अपनी बिटिया कुसुम के साथ भोजन करे से पहले रमिया और दीनू का भी भोजन करे का कह दिहीन।
कौशल्या देवी बैठक में अपने पतिदेव ठाकुर सुखवंत सिंह को सोफे पर बैठे देख बगल में बैठ गई। थोड़ा सा सकुचाते हुए बोली," सुनो जी! अगर हमरे लड़का और बिटिया का ब्याह एक साथ तय हुई गैय तो का करब। हम पहिले बिटिया की करब या लड़का की। समझ मा नाही आवत।" ये सुनकर मुस्कराने लगे।
ठाकुर सुखवंत सिंह बड़े नम्र स्वर में बोले," भागवान! तनिक धीरज राखो। कल चंदौली जाए के भानु प्रताप केर घर बार देखन तो देओ। अइसे थोड़े ना आपन दुलारी प्यारी बिटिया केर ब्याह कर देबे।" ये कहकर अपनी पत्नी को समझाने की कोशिश करने लगे।
बैठक में ठाकुर सुखवंत सिंह इधर अपनी पत्नी को लड़का और बिटिया के ब्याह के रिश्ते नातों को समझा ही रहे थे कि बाहर लगे लोहे के गेट को खोलता हुआ नौकर कल्लू पहलवान उम्र 32 वर्ष हट्टा कट्टा, किसान धुनऊ उम्र 48 वर्ष खिचड़ी बाल दुबला पतला शरीर, धोती कुर्ता पहने के साथ अंदर दाखिल हुआ।
लोहे के गेट खोलने की आवाज सुनते ही ठाकुर सुखवंत सिंह बैठक से बाहर निकल कर चबूतरे पर खड़े हो गए। नौकर दीनू वहीं कुर्सी ले आया जिस पर वह तुरंत बैठ गए। नीचे सीढ़ियों पर धुनऊ हाथ जोड़ कर बैठ गया। बड़े रुआंसे स्वर में बोला," मालिक हमरे पड़ोस मा रहे वाले फूलचंद उम्र 49 वर्ष तेज चालाक, चतुर, हमरे ना रहे पे हमरी भैंसिया का खोल के अपने खूंटा मा बांध लिनिन। बोल रहे राहे , हम कल मेले से 20,000 रुपैया के खरीद के लावा है। तुम्हार भैसिया तुम्हई चरावे लै गै हो अउर चरत चरत कहूं दूर चली गै। अब बताओ मालिक हम का करी।" ये सुनकर ठाकुर सुखवंत सिंह के हंसी भी और गुस्सा भी आया।
ठाकुर सुखवंत सिंह बड़े उग्रता से बोले," तुम्है सब के पीछे हम पंचायत समिति बनावा है। अभई शाम चार बजे हैं। आषाढ़ केर महीना बादल बहुतई छाए रहे। अगर बरखा हुई गै तो सब का इकट्ठा कईसन करब। काल सुबह नौ बजे से पंचायत समिति मा इकट्ठा हुई जइहें, तबैं फैसला करब।" ये सुनकर धुनऊ किसान रुआंसे हो अपने घर चले गए।
क्रमशः