बीती रात तेज बारिश होने के कारण ठाकुर सुखवंत सिंह ग्राम पंचायत अपने घर के आगे जहां लगाते थे वहां जमीनी मिट्टी होने के कारण चारों ओर गीली मिट्टी ( कीचड़ )हो गईं। सुबह सवेरे छः बजे बजे जब घर से बाहर निकल कर चबूतरे पर खड़े होकर कीचड़ देखा तो सोचते रहे कि पंचायत कैसे लगाई जाए। गीली मिट्टी जो कीचड़ बनी इसे सूखने में दो तीन दिन लग जायेगा।
चबूतरे से सीढ़ी उतर कर जमीन पर नीचे आए। नौकर दीनू और कल्लू पहलवान से घर से गेट तक पहुंचने के लिए कीचड़ से भरी जमीन पर ईंटे रखवाया। फिर ईंटो के सहारे गेट तक आए। उसके बाद कल्लू पहलवान और दीनू के साथ गली में सड़क खरंजा बनी मोटरसाइकिल से सुनराही गली से होते हुए आगे नुक्कड़ पर बने प्राथमिक विद्यालय पहुंच कर प्रधानाध्यापक धीरेन्द्र मिश्रा उम्र 35 वर्ष सीधे साधे सरल व्यक्तित्व, से बात करने उनके कमरे में पहुंच गए।
प्रधानाध्यापक धीरेन्द्र मिश्रा , ठाकुर सुखवंत सिंह को देखते ही नमस्कार कर सामने कुर्सी पर बैठा कर उनसे विद्यालय आने का कारण पूछा। उन्होंने उनसे विस्तार पूर्वक सारा वृतांत बता दिया। फिर बड़े नम्र स्वर में बोले," हमरे घर मा कुछ न कुछ समस्या बनी रहत । काल का लड़का बिटिया का ब्याह होई तो रिस्तेदारन का तांता लगा रही। हम यू सोचित है कि हियन विद्यालय की हर हाल मा बारह बजे तक छुट्टी हुई जात है तो दोपहर एक बजे से हियन ग्राम पंचायत लगाई जाए। आपहु हमरी ग्राम पंचायत समिति केर सदस्य बन जाओ।" ये सुनकर धीरेन्द्र मिश्रा मुस्करा दिए।
धीरेन्द्र मिश्रा बड़े नम्र स्वर में बोले," ठाकुर साहब! आप की आज्ञा सर माथे पर किन्तु ग्राम पंचायत समिति मा कम से कम पांच सदस्य तो हुइबे करी। हम और आप हुई गै अउर बाकी के तीन कऊन हुईहैं।" ये सुनकर चिंतित हो गए कि किसे और ग्राम पंचायत समिति का सदस्य बनाया जाए।
ठाकुर सुखवंत बड़े चिन्तन के बाद बोले," संत गोपाल दास उम्र 50 वर्ष रौबदार व्यक्तित्व,दुर्गा मंदिर मा बैठत हैं, लाला खूबचंद सुनार उम्र 45 वर्ष वाकपटुता चातुर्य, और किसान गंगाप्रसाद सीधे साधे सरल व्यक्तित्व, जो पहिले बैठत राहे उनका ना बदलब। खाली मुंशीगंज अग्रहरि इन्टर कालेज के प्रधानाध्यापक राजनारायण पाण्डेय 35 वर्ष रौबदार व्यक्तित्व, जो समय पर ग्राम पंचायत कबहु न पहुंच पात। उनका अब न राखब।" ये सुनकर प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक धीरेन्द्र मिश्रा अचंभित हो गए।
ठाकुर सुखवंत सिंह ने कल्लू पहलवान और दीनू को भेजकर पंचायत समिति के तीनों सदस्यों को फूलचंद , धुनऊ का मसला सुलझाने के लिए , प्राथमिक विद्यालय दोपहर साढ़े बारह बजे आने को कहा।
अभी सुबह के सवा सात बजे थे। आठ बजे से बारह बजे तक प्राथमिक विद्यालय का समय था। सो प्रधानाध्यापक धीरेन्द्र मिश्रा से साढ़े बारह बजे आने का वादा कर ठाकुर सुखवंत सिंह अपने घर चले गए।
घर पहुंचने पर ठकुराइन कौशल्या देवी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। बोलीं," तुम खाली गांव भर के मसला ( समस्या ) सुलझाओ, हम कहे रहन कुछु तुमसे।" ये सुनकर ठाकुर सुखवंत सिंह मुस्करा दिए।
ठाकुर सुखवंत सिंह बड़े नम्र स्वर में बोले,"भागवान! बिटिया केर बाप होय के साथेय हम गांव केर प्रधान भी आहींन। गांव केर हर मसला सुलझाब हमार धर्म आही। गांव भर के लोग आपन मसला सुलझावे खातीन हमरा मुंह ताकत है। हम कई से मना कर देइ।" ये सुनकर उनकी पत्नी का गुस्सा शांत हो गया।
ठकुराइन कौशल्या देवी बड़े नम्र स्वर में बोली," जाओ नहा धो लेव तब नाश्ता करौ। तड़के सुबह के निकले अब लौटे हो। तुमका भूख लाग होई।" ये सुनकर मुस्कराते हुए आंगन में एक तरफ बाथरूम की ओर चले गए।
दोपहर साढ़े बारह बजे प्राथमिक विद्यालय संत गोपाल दास, लाला खूबचंद, किसान गंगाप्रसाद पहुंच गए। वहां सवा बारह बजे करीब ठाकुर सुखवंत सिंह छोटे किसान धुनऊ और फुलचंद पहले से ही मौजूद थे। गांव भर के बड़े बुजुर्ग लोग भी पंचायत की बहस सुनने के लिए पहुंच गए।
इस समय थोड़ी धूप भी निकल आई थी। पंचायत के पांचों सदस्य विद्यालय के प्रांगण में कुर्सी डाल कर बैठे सामने गांव भर के लोग, धुनऊ और फूलचंद सहित सभी खढ़नजा ( ईंटों ) से बनी जमीन पर बैठ गए।
ठाकुर सुखवंत सिंह बड़े नम्र स्वर में धुनऊ से पूछने लगे कि बताओ तुम्हरी का समस्या है तो उसने पूरा वृतांत कह सुनाया। उसके बाद फूलचंद से बड़े नम्र स्वर में पूछा," का तुम वाकई मा भैंसियां 20,000₹ नगद देके मेला से लाए राहो।" ये सुनकर फूलचंद घबरा गया कि पंचायत मा पोल पट्टी (असलियत ) ना खुल जाए।
फूलचंद घिघियाते हुए बोला," मालिक! धुनऊ जब तीन दिन पहिले भैसिया का लेके हमरे खेते से निकल रहे राहे तो ई आगे बढ़त चले गए अउर भैसिया इनकेर हमरा थोरा खेत चर लिहिस। खेत चर के फिर पीछे पीछे इनके चले लाग। इनका कुछू पता नाही लाग। बाद मा हमरा लड़का रघुवा बताइस कि धुनऊ चाचा केर भैसिया यू खेत चर गै।" ये सुनकर धुनऊ किसान सकपका गया।
संत गोपाल दास बड़े नम्र स्वर में बोले," फूलचंद तौ तुमका यू बात धुनऊ से बतावे का राहे। एका मतलब यू थोरे ना है कि तुम ऊके ना होय पर ऊकी भैंसिया आपन घरै मा खूंटे से बांध लेव।" ये सुनकर धुनऊ बड़ी उम्मीद से पंचायत की ओर देखने लगा।
फूलचंद थोड़ा सा सकुचाते हुए बोला," मालिक! हमरा भैसिया चुरावे का इरादा ना राहे। हम यू सोच के धुनऊ केर भैसिया आपन खूंटा मा बांधा कि महीना खाड़ मा भैसिया केर दूध निकाल केर आपन नुकसान,जो थोडा खेते का चर गै, भरपाई कर लेब। ऊके बाद इनकेर भैसिया लौटा देब ।" ये सुनकर सभी मुस्कराने लगे।
प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक धीरेन्द्र मिश्रा बड़े नम्र स्वर में बोले," फूलचंद तुमका धुनऊ केर भैसी आपन खूंटा मा बांधे से पहिले ऊका सारी बात बताई कै नुकसान जो तुम्हार हुआ ऊ दे का कहते। धुनऊ ना देते तब हम लोगन से कहते। आखिर हम पंचायत समिति काहे का बनाए हन।" ये सुनकर फूलचंद खिसिया गया।
लाला खूबचंद बड़े उग्रता से बोले," अपने आप सब फैसला करै लगै तो हम लोगन की जरूरतै का भई।" ये सुनकर सभी मुस्कराने लगे।
ठाकुर सुखवंत सिंह बड़े नम्र स्वर में बोले," फूलचंद तुम धुनऊ की भैसिया लौटा देव। तुम्हरे खेते का नुकसान कितना भा?" ये सुनकर धुनऊ सकपका गै कि पता नहीं कित्ता नुकसान भा।
ठाकुर सुखवंत सिंह धुनऊ किसान का चेहरा देखकर समझ गए कि ये नुकसान की भरपाई नहीं कर सकता। फिर फूलचंद की ओर देखने लगे तो भैंस चुराने की वजह से डर गया कि पता नहीं क्या सजा मिले।
फूलचंद थोड़ा सा सकुचाते हुए बोला," मालिक आज सुबह हम भैसिया केर दूध निकारे का सोच के बलटिया दूध दुहे खातीन लगान तो हमका लात मार दिहिस। अब हम आपन नुकसान केर भरपाई कैसन करी।" ये कहकर घबरा गया।
पंचायत समिति के सभी सदस्य चिंतित की क्या फैसला लिया जाए कि धुनऊ अउर फूलचंद दोनों सन्तुष्ट हो।
क्रमश: