बदले हो तुम , बदला है अंदाज तुम्हारा,
क्या सचमुच तुम्हें याद नहीं promise हमारा।।1।।
ये कैसा प्यार है तुम्हारा ,
हर रोज जताना पड़ता है ,
खुद को बेरहमी से हराकर ,
तुम्हें जिताना पड़ता है ,
कोई तो तकलीफ है तुम्हें ,
तुम कुछ बताते क्यों नहीं ?
क्या सचमुच तुम्हें याद नहीं promise हमारा ।।2।।
करते हो कोशिश तुम ,
अपने मन में मस्त रहने की ,
नहीं है मतलब क्या तुम्हें हमसे भी ?
फिर भी करता है मन ,
तुमसे बात करने का,
क्या सचमुच तुम्हें याद नहीं promise हमारा।।3।।
कहते हो नहीं है उम्मीद तुम्हें ,
किसी से भी,
कहते हो नहीं है सुननी तुम्हें ,
किसी की भी ,
कहा तो यह भी था तुमने,
जब भी बुलाएंगे तुम्हे हम,
तुम्हें दौड़े चले आओगे तुम ,
क्या इस भाग दौड़ - सी जिंदगी में,
सच में था जरूरी तुम्हारा इतना बदलना ,
है कुछ शिकायतें और सवाल हमारे मन में,
क्या सचमुच तुम्हें याद नहीं promise हमारा।।4।।
सब कुछ अपनों को जान लिए तुम ,
फिर भी क्यों हमसे अनजान रहे तुम ?
जान चुके हम भी तुम्हारे ,आलोचकों को ,
पर क्यों भूल गए तुम अपने ,समर्थकों को ,
नहीं है शिकायत तुम्हें किसी से भी,
पर हमें अब शिकायत है तुमसे भी,
न थी तुमसे ऐसी उम्मीद,
की बदल जाओगे तुम इतना,
गीता - सा मन था तुम्हारा,
मथुरा - सा सजता था ,
अब नहीं है तुम्हारा व्यवहार ऐसा,
जिसमें सचमुच वृंदावन बसता था,
कुछ शिकायतें की है शिव से तुम्हारी,
बदले हो तुम , बदला है अंदाज तुम्हारा ,
उम्मीद नहीं है अब कोई हमें,
क्योंकि सचमुच तुम्हें अब याद नहीं promise हमारा।।5।।