"किसी ने किसी सेेेे कहा था कभी,
सच्चा प्रेम अधूरा होता है।
मुझे वह कोई जो भी है मिल जाए,
तो पूछना है उससे,
किसने कहा था भाई,
प्यार कभी पूरा नहीं होता है।।
खैर वह जो भी है,
मेरी सिर्फ संवेदना उनके साथ है।
क्योंकि उन्होंने जो भी कहा,
वह उनका अधूरा एहसास है।।
उनको नहीं पता जीवन में,
तुम जैसा जीवन साथी भी होता है।
वह क्या जानें यह प्रेम विटप,
कोमल उर्वर हृदयों में सोता है।।
नयनों में लहराता सागर,
वाणी में मधु सा मधुर मास।
अधरों पर मुस्काता जीवन,
खिलती है जिसमें प्रगढ सांस।।
मुक्त हृदय अनुराग राग,
रस मधुमय कुशल चितेरी हो।
जीवन वर्षा ऋतु सा कोमल,
तुम उसमें घटा घनेरी हो।।
मान पान सम्मान उरित,
वरदान दिए हैं उपवन में।
जागृत चेतन प्राण प्रिए,
मुस्कान बनी तुम सदर्जन में।।
मात पिता की ललना सम,
तुम दग्ध उरुश की शीतलता।
जिमि गागर भरी माखन की,
तुम मृदुल प्रीत की प्रेमलता।।
जनक जननी विप्र वरिष्ठ गुरुजन के,
आशीष की शोभा हो।
आ बनी केंद्र तुम नयनों का,
ज्यों सब कवित्त तुम दोहा हो।।
बीते पल सी यह बात,
नेत्र जब तुमने पलक उठाए थे।
सजल सलज मुस्कान अधर,
चिहुंके मन भर शर्माए थे।।
मन को मेरे स्पर्श किया,
जब प्रथम वचन तुमने बोले।
वर वधू हुए हम आजीवन,
जब पाणिग्रहण में रस घोले।।
मैं हार गया सारा जीवन,
जब भांवर में तुम अग्र हुई।
मैं भूल गया सारा कौतुक,
जब कौतुक में तुम सग्र हुई।।
मेरे गृह की तुम गृहलक्ष्मी,
मेरे कुल की तुम नम्र धरा।
तुम वामा हो, तुम वनिता हो,
अर्धांगिनी हो तुम शुभ्र शिरा।।
तुमको पाकर में पूर्ण हुआ,
तुम संग आकर में तृप्त हुआ।
जब तुम मेरे संग में आई,
तब मैं देव ऋणों से मुक्त हुआ।।
जो साथ लिए थे सात वचन,
वचनों की डोर से सम्मुख हूं।
जन्मों तक प्रेम का साधक हूं,
जन्मों तक प्रेम को प्रस्तुत हूं।।"
समाप्त . . . . . . . . . . !!'