अपने बारे में कुछ शब्द बयां करना कितना मुश्किल है ! मैं इंजीनियर हूँ ! अपने ब्लॉग से सामाजिक-आर्थिक व समसामयिक समयस्याओं पर अपने विचार रखना चाहता हूँ..वैसे "पार्ट टाइम " कवितायेँ भी करता हूँ !
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समसामियिकी से जुड़े मुद्दे
शायद ही ऐसा कोई दिन हो जब अखबार और न्यूज़ चैनलों में दुष्कर्म या छेड़खानी की कोई घटना न हो !आखिर ऐसा क्यूँ हो रहा है ? दिल्ली के उस आंदोलन के बाद भी ये घटनाये रुक क्यूँ नही रही है? आखिर समाज कहाँ जा रहा है?कहीं ये वो तथाकथित विनाश की शुरुआत तो नहीं है जिसका जिक्र माया सभ्यता में क
अँधेरे में बन अँधेरा खो जाना आसान है बन रौशनी चीरो उसे तो बात है !! रोना मुसीबतों का रोते है सब ही यहाँ लोहा मुसीबतों से लो तो बात है!! ठहरे समंदर में पा जाते हो साहिल मगर कश्ती भंवर से भी निकालो तो बात है!! बातें बड़ी बड़ी करते हो देश के हालातों पे.. खुद को बदलने से शुरुआत करो तो बात है !!!
बड़ी हिम्मत से गुफ्तुगू करने को हम जो उनकी तरफ मुड़े उन्होंने भैया बोल के बस का 'रुट' हमसे पूछ लिया हम हक्के बक्के संभल भी ना पाए थे उनके इस हमले से अभी की एक बाइक वाले ने उन्हें बैठाया और फुट लिया! 'रूट=रास्ता '
दूर आसमान के किनारे जब सूरज है धुंधलाता थामें, कस के हाथ तेरा कोई कांधे पे है सिर झुकाता हो गया जो दुश्मन ये ज़माना भी, तो क्या मैं साथ हूँ सदा तेरे ये कहते कभी थक नही पाता उदासी की स्याह रात में भी जो उम्मीद की किरण है जगाता तेरी हर मुश्किल को अपना बना के भी है यू हमेशा ही मुस्कुराता तू लड़ेंगा -