कैसे रंग लेते है लोग खुद को के असली रंग दीखता ही नहीं, और किस रंग से रंगी है मेरी फितरत के कोई और रंग चढ़ता ही नहीं
29 जुलाई 2015
वाह वाह ......बहुत खूब ..मज़ा आ गया पड़कर .... २ लाइन और कितना विस्तार यही तो है शब्दों की रफ़्तार ...
2 सितम्बर 2015
'शब्दनगरी' में आपका स्वागत है ! आपकी प्रथम रचना प्रकाशन हेतु बधाई !
29 जुलाई 2015
सुन्दर रचना ! बधाई !
29 जुलाई 2015