रोजी की तलाश कर रहे हम
यतीम की जिंदगी जी रहे हम
भूख की मार सहन नही होती
धूप की गर्मी से सूख रहे हम।।
भटक भटक कर थक गए है हम
किस मुसीबत में फंस गए है हम
भूखे पेट अब रहा नहीं जाता
पेट की अगन से सूख गए है हम।।
दर दर जाकर मांग रहे है हम
कुछ तो दे दो मांग रहे है हम
काम नहीं करेंगे तो क्या खायेंगे
बिन रोजी के भटक रहे है हम।।
काम नही तो क्या करेंगे हम
बिन रोजी के नही मरेंगे हम
रोजी रोटी तन को कपड़ा
बिन आशियाना कहां जायेंगे हम।।
महेन्द्र "अटकलपच्चू" ललितपुर(उ. प्र.)
मो. +918858899720
रचना दिनांक–02/03/2022
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