मैं इस पुस्तक की लेखिका रश्मि गुप्ता, उम्र के हर स्वाद का रसपान कर चुकी हूँ और कहीं भी इसे मैंने नीरस नहीं पाया है। हर चीज यहां अपना एक विशेष स्थान रखती है। चाहे फूल ही या कांटा, दोनों की बराबर अहमियत है । लीक से हटकर अंधेरे, समस्या को ऊंची पायदान पर रखा है मैंने, जो अवश्य ही हमारी उर्जा को और बल देते हैं। कविता की कुछ पंक्तियाँ मुझे बहुत पसंद हैं । जैसे बत्तियां बुझा दो, क्योंकि अंधेरे को सौगात मिली है, सुख सुकून और शांति की । वो अंधेरा ही तो है, जो एक दिये से जगमगा उठता है। अंधेरा होते ही पक्षी भी चले जाते हैं अपने घौंसले में। पक्षी ही क्यों मंदिर के कपाट भी बंद हो जाते हैं भगवान् भी कुछ देर चैन से सो जाते हैं । एक कविता कुछ यूँ है । राह में यदि दीवार ना होती तो कूदने की यह रफ्तार न होती। सब के लिए बहुत कुछ है इसमें मनोरंजन के लिए भी और एक सार्थक मनन के लिए भी । पढ़कर हंसी आये तो मुझे जरूर बताना । अलबत्ता कभी उदास न होना क्योंकि ये किताब लिखी है मैंने हर चेहरे पर मुस्कान बिखेरने के लिए। आपकी प्रशंसा और आपके सुझाव दोनों ही शिरौधार्य है। मैं इतजार करुंगी आपके प्यार का । आप सबको सुख समृद्धि सफलता और सम्मान के लिए मेरी अनेकोनेक शुभकामनाएँ । सदैव सब की शुभचिंतक ---------रश्मि
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