श्रीमद्भागवत गीता का सरल काव्य रूपांतरण
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धृतराष्ट्र ने संजय से पूछा :-- धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में , युद्ध इच्छा से आये । पांडु और मेंरे पुत्रों ने, किया क्या देओ बताय। 1-1 संजय ने बताया :-- व्यूह बद्ध पांडव सेना को
संजय बोला;--- कायरता से भरे हुए और, अश्रु पूर्ण हैं आंख। दुखी हुए उस अर्जुन को, मधुसूदन ने बोली बात। 2---1 भगवान ने कहा:-- किस प्रकार असमय में, आया अपयश का भाव। ना ये स्वर्ग की रा
अर्जुन कहते हैं:---- श्रेष्ठ मान्य है ज्ञान यदि, कर्म से जनार्दन। फिर भयंकर कर्म करने का, क्या है प्रयोजन। 3---1 मिश्रित वचनों से मेरी, बुद्धि हो रही भ्रमित। निश्चित बात बताइये, ज
श्रीभगवान् बोले--- ये अविनाशी योग मैंने, सूर्य को बतलाया। सूर्य ने, अपने सुत, वैष्वतस्य मनु, और मनु ने अपने पुत्र, इक्ष्वाकु, को समझाया। 4---1 परम्परा से प्राप्त योग ये, राजर्ष
अर्जुन ने कहा :---- हे कृष्ण! कभी प्रसंशा कर्मयोग की, कभी कर्म संन्यास। उत्तम है जो मेरे लिए, वही कहो तुम बात। 5----1 श्रीकृष्ण ने आगे कहा :--- कर्म संन्यास व कर्मयोग, हैं दो
श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते हैं अनाश्रित हो कर्मफल पर, करे निष्काम भाव से कर्म। वास्तव में संन्यासी वही, और कर्मयोगी का भी, वही है असली धर्म। 6---1 & 6----2 जब करता है कर्म कोई
श्रीकृष्ण कहते हैं --- हे पार्थ! योगी होकर जिस प्रकार तू, जानेगा पूर्ण रूप से मुझको। वो ज्ञान तुझे समझाता हूं, कुछ और जानना, शेष बचे नहीं तुझको। 7---1 & 2 श्रीकृष्ण आगे कहते
अर्जुन उचाव-- कर्म है क्या? ब्रह्म है क्या? और क्या है अध्यात्म? कहते हैं अधिभूत किसे? किसका अधिदैव है नाम? 8---1 कौन यहां अधियज्ञ है। कैसे है वो शरीर में व्याप्त? अंतकाल मे
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं-- तू है, मेरा परम भक्त, है तू, दोषदृष्टि से मुक्त । परम गोपनीय ज्ञान है ये, ये है विज्ञान सहित। 9--_1 विज्ञान सहित ये ज्ञान है, है, सब विद्याओं का
श्रीकृष्ण कहते हैं---- हे महबाहो! एक बार फिर से सुनों, परम रहस्यमय वचन। करे प्रेम तू अतिशय (बहुत ज्यादा) मुझको, तेरे हित में ही हैं ,ये वचन। 10---1 ना जाने कोई देवता, और ना ही मह
अर्जुन कहते हैं --- मुझ पर अनुग्रह (कृपा) किया आपने, दिया गोपनीय उपदेश। हुआ नष्ट अज्ञान मेरा, और पूर्ण हुआ उदेश्य। 11---1 हे कमल नेत्र! पूर्ण रुप से सुनी है मैंने, सब भूतों की उत्
अर्जुन पूछते हैं--- सगुण रुप में भजते तुझको, या निर्गुण अविनाशी। दोनों में से श्रेष्ठ कोन है, बतलाओ घट ,घट वासी। 12----1 श्रीकृष्ण कहते हैं----- सगुण रुप में लगा निरंतर, भज
भगवान श्री कृष्ण बोले--- हे कौंतेय! इस शरीर को ही हम सब, कहते हैं क्षेत्र। और क्षेत्र को जानने वाला, कहलाता है क्षेत्रज्ञ। 13---1 हे अर्जुन! सब क्षेत्रों (शरीरों) में, मुझको ही तू जीवात्मा जा
श्रीभगवान् बोले, --- ज्ञानों में भी अति उत्तम है, ऐसा है वो परम ज्ञान। मुनिजनों को मिली परमगति उस परम ज्ञान को जान 14----1 प्राप्त करके इस ज्ञान को, पुनर्जन्म नहीं पाते। प्रलय क
श्रीकृष्ण कहते हैं--- आदिपुरुष, परमेश्वर मूल वाले, और ब्रह्मारुप मुख्य शाखा वाले। इस संसार रुपी वृक्ष को, कहते हैं अविनाशी। चारों वेद कहे गए हैं, पत्ते इसके। मूलसहित(पूर्ण रुप से
भगवान् श्रीकृष्ण दैवी सम्पदा से युक्त पुरुष के लक्षण बताते हुए कहते हैं --- जो होता है भयरहित, और शुद्ध है, अंत:करण। ज्ञान योग में रत रहे, करे दान यज्ञ और इंद्रियों , का संयम। पठ
अर्जुन पूछते हैं---- हे कृष्ण! श्रृद्धा से जो पूजन करते, पर करते शास्त्र विधि से रहित। सात्विक, राजस या तामस, किस गति में होते हैं वो, स्थित। 17---1 भगवान् श्रीकृष्ण बताते
अर्जुन बोले---- हे महाबाहो! हे अंतर्यामी! हे वासुदेव! हे घनश्याम! मेरी इच्छा है मैं जानूँ, असल रुप में ज्ञान। त्याग और संयास का, भेद मैं जाऊ जान। 18----1 कुछ पंडित तो कहते